आदरणीय साथिओ,
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एक अच्छे विषय के चयन हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीया अनघा जी, रचना के शिल्प को अच्छा करने की दरकार है| इस हेतु जैसा आदरणीय योगराज जी सर ने बताया कि इस मंच पर लघुकथा से सम्बंधित बहुत जानकारी उपलब्ध है, आप उसका जितना चाहे लाभ उठा सकती हैं| सादर,
रोशनी के बॉर्डर
दरवाज़े के बाहर उसे खड़ा देखते ही मेजर ने अर्दली को उसे अंदर बुलाने इशारा किया। हाथ में एक फाइल लिए सिपाही की तरह चलने का असफल प्रयत्न करता हुआ वह वृद्ध अंदर आया और मेजर के सामने जाकर खड़ा हो गया। मेजर ने चेहरे पर गंभीरता के भाव लाकर पूछा, "कहिये?"
वृद्ध ने हाथ में पकड़ी फाइल टेबल पर मेजर के सामने रख दी, लेकिन मेजर ने फाइल पर नज़र भी नहीं डाली, उसे इस बंद लिफाफे में छिपे मज़मून का पता था। वृद्ध की तरफ दया भरी नज़रों से देखते हुए मेजर ने उस फाइल पर हाथ रखा और कहा, "यह हो नहीं सकता, आपकी उम्र बहुत अधिक है। आर्मी आपको सिपाही के लिए कंसीडर नहीं कर सकती। हाँ! किसी अफसर के घर बावर्ची या पिओन..."
"नहीं हुजूर... मुझे तो सिपाही ही बनना है..." उस वृद्ध का स्वर थरथरा रहा था, उसने आगे कहा, "मुझे बदला लेना है उससे जिसने मेरे बेटे की जान..." कहते हुए उसका गला रुंध गया।
मेजर चुप रहा, वृद्ध थूक निगल कर फिर बोला, "हुजूर... मैं उस दुश्मन को पहचान लूँगा..."
मेजर के चेहरे पर चौंकने के भाव आये, लेकिन वह संयत स्वर में बोला, "जानते हैं बंकर में दिन हो या रात, अंधकारमय ही होते हैं। रातों में छुपकर बाहर निकलना होता है, भाग कर नीचे उतरना, सामान लेना फिर चढना। आप उन अंधेरों में दुश्मन को देख भी नहीं सकते, पहचानना तो दूर की बात।"
"मैं नहीं मेरी आँखें... दुश्मन को पहचान सकूं इसलिए मुझ अंधे ने अपने शहीद बेटे की आँखें लगवा लीं हैं।" वृद्ध के स्वर में आतुरता थी।
मेजर उसकी आँखों में झाँकते हुए खड़ा हुआ और उसके पास जाकर उसके कंधे पर हाथ रख कर बोला,
“माफ़ कीजिये! लेकिन बॉर्डर पर हर रोशनी अंधेरों को चीर नहीं सकती...”
(मौलिक और अप्रकाशित)
रचना पर टिप्पणी कर मेरी हौसला अफज़ाई के लिए तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ जनाब तस्दीक़ अहमद खान साहब
इस लघुकथा की सबसे अच्छी बात यह है कि इसने ख़ुद को वास्तविकता के धरातल पर टिकाए रखा. //बॉर्डर पर हर रोशनी अंधेरों को चीर नहीं सकती...// बहुत ख़ूब. इस उम्दा प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए.
1. ///मेजर ने अर्दली को उसे अंदर बुलाने का इशारा किया।//
2. शीर्षक पर एक बार पुनर्विचार कीजिएगा.
सादर.
रचना पर टिप्पणी कर मेरे उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन हेतु बहुत-बहुत आभार भाई महेंद्र कुमार जी|
हार्दिक बधाई आदरणीय चंद्रेश जी। बेहतरीन लघुकथा।
आपके आशीर्वाद हेतु बहुत-बहुत आभार आदरणीय तेजवीर सिंह जी सर
रचना पर टिप्पणी कर मेरी हौसला अफज़ाई के लिए तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ जनाब समर कबीर जी साहब
रचना पर टिप्पणी कर मेरे उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन हेतु बहुत-बहुत आभार आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी साहब|
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