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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा-अंक 34" में प्रस्तुत सभी गज़लें, चिन्हित मिसरों के साथ ...

ASHFAQ ALI (Gulshan khairabadi) 

 

गुलशन ये ओ बी ओ है क्यूँ दिल मचल न जाये 
मिलती जहाँ ख़ुशी क्यूँ भेजी ग़ज़ल न जाये 

ये निसार तुझपे दिल है तोहफा बदल न जाये 
मेरे दिल से खेल जब तक तेरा दिल बहल न जाये

ज़रा रहम कर खुदारा मेरे दिल के गुलसितां पर 
न गिराना बर्क इसपर कोई साख़ जल न जाये

गुलशन अभी ज़मी पर उतरे हैं जो परिंदे 
सय्याद कोई आकर इनको भी छल न जाये 

ये झुकी झुकी निगाहें जो गिरा रही हैं बिजली
ये तेरी नज़र का जादू कहीं मुझपे चल न जाये

पत्थर को आज शीशा दिखला रहा हैं आंखें 
कहीं लहजा पत्थरों का देखो बदल न जाये 

बच्चों पे है नवाज़िश  उसका ही सब करम है 
रहता है माँ का साया जब तक संभल न जाये

है शब-ए-विसाल इसमें सुनो मेरी कुछ कहो तुम
न झुकाओ तुम निगाहें कहीं रात ढल न जाये

"गुलशन" अभी भी क़ायम सच्चाई पे है दुनिया 
सच के सिवा जहाँ में  कोई अमल न जाये

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वीनस केसरी 

 

मुझे सोगवार करके कहीं वो बहल न जाए
मेरे क़त्ल का इरादा कहीं फिर से टल न जाए

वो वफाओं का सिला दें, कि ज़फा का हो इरादा
मैं दुआ ये कर रहा हूँ कि वो दिल पिघल न जाए

मुझे शक्ले नज़्म आया जो सवाल है उधर से
तो जवाब में इधर से कहीं इक ग़ज़ल न जाए

ये फरेब था नज़र का मैं ये मानता हूँ लेकिन
गिरे अश्क तो गुहर में कहीं फिर से ढल न जाए

शबे वस्ल का ये लम्हा कहीं हो न जाए ज़ाया
न झुकाओ तुम निगाहें कहीं रात ढल न जाए

तेरा नाम लब पे आना जो गुनाह है तो 'वीनस'
ये गुनाह करते करते मेरा दम निकल न जाए


सोगवार - दुःखी
ज़फा - सितम
गुहार – मोती

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Mohd Nayab 

 

जब तक है गुंच-ए-दिल नायाब खिल न जाये 
मौसम कहीं सुहाना देखो बदल न जाये 

ये रात है सुहानी मौसम पे है जवानी 
न झुकाओ तुम निगाहें कहीं रात ढल न जाये 

सुन लें ज़माने वाले इतनी है बस गुज़रिश 
छूना नहीं कली को जब तक वो खिल न जाये 

जो शाह था जहाँ का मुमताज़ उसके दिल की 
दुनिया तो छोड़ जाये  छोड़ा महल न जाये 

गिरते नही कभी हैं नज़रों से पीने वाले 
चश्म-ए-करम हो उसकी वो क्यूँ संभल न जाये 

वादे में हो सियासत रग-रग में जो समायी 
देखो जुबां से कैसे फिसल न जाये 

हैं कीमती ये मोती बिखरे हैं सब जहाँ में 
'नायाब' है जभी तक जब तक वो मिल न जाये

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Rajendra Swarnkar
(1)
मिलने का शुभ मुहूरत , देखो जी , टल न जाए
शरमाइए न ऐसे , रुत ही बदल न जाए

 

मन बावरा बहक कर , फिर-से संभल न जाए
न झुकाओ तुम निगाहें , कहीं रात ढल न जाए

 

है अंग-अंग शोला , क्या आंच है बला की 
आंचल सरक न जाए , दुनिया ये जल न जाए

 

नाराज़ आप होंगे तो ज़लज़ला उठेगा
न उदास होइएगा , पर्वत पिघल न जाए

 

छलके न भूल से भी , अश्कों का ये ख़ज़ाना
कहीं सीपियों से कोई मोती निकल न जाए

 

यूं बेतकल्लुफ़ी से सजिए न इसके आगे 
दर्पण का क्या भरोसा , वो भी मचल न जाए

 

राजेन्द्र ख़ूबसूरत इस रात ने जो बख़्शे
वे राज़ शोख़ लम्हा कोई उगल न जाए

 

(2) 

बदलाव का ये मौक़ा’ कहीं फिर निकल न जाए
कहीं वक़्त की ये मिट्टी फिर से फिसल न जाए

 

जिन्हें बाग़बां बनाया , निकले हैं वे लुटेरे 
अब क़त्लगाह में ये गुलशन बदल न जाए

 

खटते हैं रात-दिन हम , हथियाते हैं वे आ’कर 
उन्हीं हाथों में ही ताज़ा फिर से फ़सल न जाए

 

सच है कि खोटे-सिक्के बरसों से चल रहे हैं
जनता फ़रेब खा’कर फिर से बहल न जाए

 

पिसती अवाम ! ताक़त समझो है वोट की क्या
फिर चाल गुर्गा लीडर कोई हमसे चल न जाए

 

कहते हैं जिसको संसद , यह है हमारा मंदिर
यहां कुर्सी-जूते-चप्पल फिर से उछल न जाए

 

मत घौंसले से बाहर चिड़ियाओं ! तनहा जाना 
वहशी-दरिंदा कोई तुमको मसल न जाए

 

कोई हो यतीम-बेवा , या हलाक ज़ख़्मी क्यों हो
न कहीं हो बम-धमाका , कोई फिर दहल न जाए

 

सर पर है ज़िम्मेदारी , हर दिन है हमपे भारी
न झुकाओ तुम निगाहें , कहीं रात ढल न जाए

 

बन’ सब्र का जो दरिया , बहता है ख़ूं रगों में
कुछ भी न होगा हासिल जब तक उबल न जाए

 

अब तक राजेन्द्र धोखे , हमको मिले मुसलसल 
फिर से ख़ुदाया ! क़िस्मत कहीं हमको छल न जाए

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arun kumar nigam
न पिलाओ प्रेम-मदिरा,मेरा दिल मचल न जाये
सुन बात मीठी-मीठी , कहीं जाँ निकल न जाये

 

अब   उम्र  तो  नहीं  है  ,  तुमसे  लड़ाएँ  नैना
डर भी ये लग रहा है, कहीं दिल फिसल न जाये

 

जुल्फें   सजी   खिजाबी , कपड़े  जवाँ – जवाँ  हैं
करी  लाख    रंग-रोगन , जुन्नी  शकल न जाये

 

अचरज  न  कीजे  जानूँ , इस बात में भी दम है
जल जाए  पूरी रस्सी ,  फिर भी तो बल न जाये

 

यह  शेर  आखिरी   है , पूरी  गज़ल  तो कर लूँ
न झुकाओ तुम निगाहें , कहीं रात ढल न जाये

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Abhinav Arun 

 

शबे वस्ल जो मिला है वो भी एक पल न जाए
अभी दिल नहीं भरा है अभी दम निकल न जाए

 

तू जो चाँद है फलक पर तुझे क्यों कहूं मैं रोशन
इसी बात की बिना पर मेरा चाँद ढल न जाए

 

मेरी आँखों को ये आंसू तेरी हिज्र ने दिए हैं
जो ये बात राज़ की है पता सबको चल न जाए

 

है ज़बान जिसकी शीरीं जो दिखाता रोशनी है
उसे रोकना मुसाफिर कहीं वो निकल न जाए

 

जो कबीर सा बुने हैं जो अमीर सा कहे हैं
कभी गा के उनको देखो कि ज़बान जल न जाए

 

मेरी खामियाँ बताता है जो शख्स उसके सदके
यही रोज़ सोचता हूँ कहीं वो बदल न जाए

 

इसी रात की सियाही में है चाँद मुस्कुराता
न झुकाओ तुम निगाहें कहीं रात ढल न जाए

 

ये सियासतों की बातें मेरे वास्ते नहीं हैं
मैं वतन को पूजता हूँ ये वतन बदल न जाए

 

तेरे आने की ख़ुशी में ये सितारे गा रहे हैं
बड़ा शुभ है ये महूरत कहीं ये भी टल न जाए

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Saurabh Pandey 

 

न दे अब्र के भरोसे.. मेरी प्यास जल न जाये
न तू होंठ से पिला दे मेरा जोश उबल न जाये

ये तो जानते सभी हैं कि नशा शराब में है
जो निग़ाह ढालती है वो कमाल पल न जाये

तू मेरी सलामती की न दुआ करे तो बेहतर
जो तपिश दिखे है मुझमें वही ताव ढल न जाये

मेरे नाम इक दुपट्टा कई बार भीगता है
कहीं आह की नमी को मेरी साँस छल न जाये

 

घने गेसुओं के बादल मुझे चाँद-चाँद कर दें
"न झुकाओ तुम निग़ाहें कहीं रात ढल न जाये"

मेरे तनबदन में खुश्बू.. कहो क्या सबब कहूँगा
जरा बचबचा के मिल तू, कहीं बात चल न जाये

मैं समन्दरों की फितरत तेरा प्यार पूर्णिमा सा
जो सिहर रही रग़ों में वो लहर मचल न जाये

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धर्मेन्द्र कुमार सिंह 

 

किसी बेजुबान दिल में कोई ख़्वाब पल न जाये

तेरी भौंह के धनुष से कोई तीर चल न जाये

 

है कहाँ ये दम सभी में के वो सह लें आँच इनकी

न उठाओ तुम निगाहें कहीं चाँद गल न जाये

 

तेरी आँख के जजीरों पे टिकी हुई है जाकर

न झुकाओ तुम निगाहें कहीं रात ढल न जाये

 

है तेरी नज़र से उलझा जो मेरी नज़र का धागा

न हिलाओ स्वप्न खिंच के ये मेरा निकल न जाये

 

तेरी आँख का समंदर मेरे तन को रक्खे ठंढा

न चुराओ तुम निगाहें कहीं दिल पिघल न जाये

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Kewal Prasad 

 

गुलशन है खूब सूरत, तबियत मचल न जाये
बच्चों से नाज नखरें, उलफत गजल न जाये

 

कहीं रूतबा जोश सानी, तेरी जिन्दगी दिवानी
रहती है आसमां पर, कहीं चांद खल न जाये

 

मयसर तो आज होगा, सच के हसीं नजारे
वो वफाओं का समन्दर, मेरे साथ जल न जाये

 

अच्छा है माल देखो, मेरे कत्ल का बहाना
दुनियां तो सांप समझे, कहीं वो बहल न जाये

 

ये गुलामी ताज पोशी, मेरा रंग - रंग होना
रहता है तन वतन में, कहीं दाग फल न जाये

 

मैं दुआ वो बद्दुआ हैं, अब शोर हो रहा है
न झुकाओ तुम निगाहें, कहीं रात ढल न जाये

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अरुन शर्मा 'अनन्त' 

चलो साथ मेरे हमदम नज़ारा बदल न जाये,

जवानी ये रेत जैसी जानेमन फिसल न जाये,

 

तेरे हुस्न का नशा है मेरी जान, जानलेवा,

तुझे देख मेरा दिल ये सीने से निकल न जाये,

एक दूजे से मिलन की बेला सालो बाद आई,
न झुकाओ तुम निगाहें कहीं रात ढल न जाये
नहीं फेंक कोई पत्थर बुराई में तू उठाकर,

भरोसा नहीं तुझी पे ये कीचड उछल न जाये,

सभी के घरों में इक बस यही बात चल रही है, 
कोई धूर्त अपनी फिर से कहीं चाल चल न जाये.

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rajesh kumari 

 

यूँ हज़ार क़त्ल करके कहीं वो निकल न जाये 

न समझिये हम हैं बुजदिल कहीं खूं उबल न जाये 

 

बिन नाम का लिफ़ाफ़ा मेरे हाथ में थमाया 
क्या यकीं  कि खोलने पर कोई बम निकल न जाये 

 

वो जफ़ा का तोहफा देकर हाल पूछते  हैं  

न कुरेदो जख्म मेरे कहीं हाथ जल न जाये 

 

तेरे ख्याल का तजाजुब पुरज़ोर खींचता है 

न कशिश में तुम जलाओ मेरा दिल पिघल न जाये 

 

ये हसीन रुत नज़ारे यूँ ही हो न जाए बेघर 

न झुकाओ तुम निगाहें कही रात  ढल न जाये 

 

ये घटाएँ घनघनाती मेरा दिल बिठा रही हैं 

कहीं "राज "उल्फतों के मौसम बदल न जाये 

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बृजेश कुमार सिंह (बृजेश नीरज) 

(1)

मेरी ख्वाहिशों का मंज़र किसी शाम ढल न जाए

ये शहर की भीड़ मुझको कभी यूं निगल न जाए

 

यूं ही जिंदगी की खातिर जो बेज़ार से रहे हम

मेरी आंख में शमा बन कहीं वो पिघल न जाए

 

जो सूरज की चंद किरनें मेरे घर में खेलती हैं

किसी रोज तो हमारी कहीं नींद जल न जाए

 

ये सब्र आखिर हमारा देगा भी तो साथ कितना

कहीं भूख की तपिश में वो शीशा उबल न जाए

 

जो उठी तेरी पलक तो यहां चांदनी है बिखरी

न झुकाओ तुम निगाहें कहीं रात ढल न जाए

 

देती हैं जो रोज लहरें किनारों को यूं चुनौती

कभी इस अदा पे साहिल का ही दिल मचल न जाए

 

किसी ख्वाब को भी हमने न छुआ तनिक उम्र भर

मुझे डर था इस बहाने जिंदगी ही छल न जाए

 

(2)

ये वज़ूद की लड़ाई किसी दिन बदल न जाए

मेरे हाथ में हो खंज़र ये समां यूं ढल न जाए

 

जो शहर की हर गली में ये पसर गयी खामोशी

तो सहर भी डर के अपना कही रुख बदल न जाए

 

यहां बह रही थी गंगा वो भी सूखने लगी है

कहीं रेत की तपिश में मेरे पांव जल न जाए

 

ये नज़र का ही तो जादू जो यूं चांद मुस्कुराए

न झुकाओ तुम निगाहें कहीं रात ढल न जाए

 

मेरा वक्त हर कदम पर दे रहा है ऐसे धोखा

मेरी जुस्तजू ही मुझको किसी दिन निगल न जाए

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आशीष नैथानी 'सलिल' 

 

तेरे हुस्न की तपिश से मेरा दिल पिघल न जाये
शबे-हिज्र की घडी में मेरा मन बदल न जाये

 

ये हसीं तुम्हारे लब की, ये उजाला जेवरों को
मुझे डर रहा हमेशा कि परिन्दा जल न जाये

 

ये सहर तुझे अता की, तू बहाना मत बना अब
न उठा पुराने किस्से कहीं दिन निकल न जाये

 

जो मिला था वक़्त हमको वो भी गुजरा तल्खियों में
'न झुकाओ तुम निगाहें कहीं रात ढल न जाये

 

वो 'सलिल' तुम्हें भुला दें, न भुलाना तुम उन्हें भी
कि गुहर सी बूँद आँखों से कहीं फ़िसल न जाये

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कल्पना रामानी 

 

चलो हर कदम सँभल के, कहीं पग फिसल न जाए,

जो मिला है आज अवसर, कहीं वो भी टल न जाए।

 

बड़े दिन के बाद आए, ज़रा देर पास बैठो,

यूं न छोड़ जाओ जब तक, मेरा मन संभल न जाए।

 

जो वफा की खाते कसमें, नहीं उनका कुछ भरोसा,

जिसे मन से अपना माना, वही मीत छल न जाए।

 

सुनो प्राणिश्रेष्ठ मानव, करो नेक कर्म भी कुछ,

यूं ही पाप बढ़ गया तो, ये धरा दहल न जाए।

 

ये खिली खिली सी धरती, हमें दे रही हवाला,

रहे जल का संतुलन भी, कहीं पौध गल न जाए।

 

करो कैद गीत नगमें, कि गज़ल ने है बुलाया,

है ये मंच शायरों का, क्यों ये मन मचल न जाए।   

 

बड़े दिन के बाद आया, तेरे दीद का ये मौका,

“न झुकाओ तुम निगाहें, कहीं रात ढल न जाए”  

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मोहन बेगोवाल 

 

तुझे देखने कि चाहत कहीं दिल मचल न जाये

न झुकाओ तुम निगाहें कहीं रात ढल न जाये

 

मेरे घर की दीवारें जब मुझ से न  बात करती

मुझ को डर घुटन से कहीं दम निकल न जाये

 

अभी रात बाकी है न कहीं नजर में सहर है

यकीं तो है,दिल मगर ये कहीं ओर चल न जाये

 

तुने जिस किताब में फूल कभी प्यार संभाल रखे

न जलाना मेरे दोस्त कहीं याद जल न जाये

 

कभी जख्म देते हैं, वो  कभी मरहम लगते हैं

उसी कस्मकस, मेरा कहीं दिल पिघल न जाये 

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विन्ध्येश्वरी त्रिपाठी विनय 

 

कलियों सम्भल के रहना मधुकर कुचल न जाए
तेरा बागवां ही तेरा दुश्मन निकल न जाए
निज आत्मजा को हमने धर ध्यान खूब पाला
हमको सता रहा डर बहशी निगल न जाए

 

ललकार आम जनता करने पे आमादा है
सम्भलो वतन फरोशों दिल्ली दहल न जाए

 

तुमसे ही था उजाला इस देश में ऐ दीपक
न झुकाओ तुम निगाहें कहीं रात ढल न जाए

 

सुधरा वतन जो चाहे खुद को सुधार लें हम
तुम ही गलत हो पापा सुत कह मचल न जाए

 

खतरे में देश भारी सरहद पे चीन धमका
फिर से कहीं न नक्शा दुश्मन बदल न जाए

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Ashok Kumar Raktale 

 

न पुकारो तुम हमें यूँ उसे बात खल न जाए,

न बिठाओ पास इतना ये नियत बदल न जाए |

 

न निगाह चार करना सरे राह जी किसी से,

देखना नया कहीं आँख में ख्वाब पल न जाए |

 

फेरकर निगाह जाना न मुझसे दूर यारा,

ठेहरी है जान तन में देखना निकल न जाए |

 

मिलता है कोई ऐसा कहाँ प्यार करने वाला,

न झुकाओ तुम निगाहें कहीं रात ढल न जाए |

 

चेहरा ‘अशोक’ उसका न चुरा ले दिल कहीं जो,

न गुजरना उस गली से कहीं दिल मचल न जाए ||

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डॉ. सूर्या बाली "सूरज"

 

मुझे डर सता रहा है कहीं तू बदल न जाये॥
कहीं हो गया जो ऐसा मेरी जां निकल न जाये॥

तू बला की खूबसूरत तेरा जिस्म संगमरमर,
तेरा हुस्न देख करके ये नज़र फिसल न जाये॥

तेरी आशिक़ी ने दिल में हैं खिलाये प्यार के गुल,
कहीं बेरुख़ी से तेरे मेरा ख़्वाब जल न जाये॥

अभी मुतमइन नहीं हूँ के तू हमसफ़र है मेरा,
मेरा साथ छोड करके कहीं तू निकल न जाये॥

न मेरे क़रीब आओ अभी फासले रखो तुम,
तेरे हुस्न की तपिश से मेरा ज़िस्म जल न जाये॥

हुआ चाँद भी है मद्धम ये सितारे सो गए हैं,
"न झुकाओ तुम निगाहें कहीं रात ढल न जाये" ॥

मेरा इश्क़ एक शोला तेरा हुस्न मोम सा है,
मुझे प्यार करते करते कहीं तू पिघल न जाये॥

अभी नासमझ बहुत हो अभी आग से न खेलो,
ये हैं आग आशिक़ी की कहीं हाथ जल न जाये॥

तेरा इंतिज़ार करते ये ढली है रात “सूरज”,
न सताओ मुझको इतना कहीं दम निकल न जाये॥

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shashi purwar
मुझसे न  दूर जाओ , मेरा दम निकल न जाये 
तेरे इश्क का जखीरा ,मेरा दिल पिघल न जाये

मेरी नज्म में गड़े है ,तेरे प्यार के कसीदे
मै कैसे जुबाँ पे लाऊं ,कहीं राज खुल न जाये 

खिड़की से रोज निकले ,मेरा चाँद सबसे प्यारा 
न झुकाओ तुम निगाहे ,कहीं रात ढल न जाये

तेरी आबरू पे कोई , कभी छाप लग न पाये
मै अधर को बंद कर लूं ,कहीं अल निकल न जाये

ये तो शेर जिंदगी के ,मेरी साँस से जुड़े है
मेरे इश्क की कहानी ,कही गजल कह न जाये

ये सवाल है खुदा से ,तूने कौम क्यूँ बनायीं
दुनिया बड़ी है जालिम , कहीं खंग चल न जाये

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VISHAAL CHARCHCHIT

न जताओ यूं मुहब्बत कहीं दिल मचल न जाए
कहीं तीर-ए-दिल्लगी से मेरा दम निकल न जाए

न बनो तुम इतने नादां खुलेआम इश्क खतरा
ये खयाल रक्खो हरदम कि जहां ये जल ना जाए

कभी तुम हो दूर मुझसे कभी मैं हूँ दूर तुमसे
अभी जो मिला है मौका वो भी यूँ निकल न जाए

ये भी है मजाक अच्छा मिले और 'जाऊं - जाऊं'
कभी तो रुको कि जब तक मेरा दिल बहल न जाए

अरे यार तुम भी 'चर्चित' ये कहां पे आ फँसे हो
ये जो आशिकी है बाबू कहीं ये निगल न जाए

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satish mapatpuri 

 

न हँसो दबा के आँखें कहीं दिल मचल न जाये.
इस भोलेपन पे जालिम मेरी जां निकल न जाये .
छत पे सूखा ना गेसू , रुख से हटा के चिलमन.
ये चाँद देखकर के सूरज पिघल न जाये.

 

चलो ख्वाब में ही आई आ तो गयी खुद्दारा.
न झुकाओ तुम निगाहें कहीं रात ढल न जाये.

 

मासूम बेटियों के आँसू से यूँ ना खेलो .
उनके रुदन से अपना , ये चमन ही जल न जाये.

 

सत्ता के हुक्मरानों अब भी तो संभल जाओ .
कुछ वक्त का भी सोचो कहीं ये बदल न जाये.

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Dinesh Kumar khurshid 

 

ये हो शयारी मेरी , उनको ही खल न जाये 

बनकर हनीफ उसका किरदार जल न जाये

 

मेरा हबीब मुझकों देता है क्यों नसीहत 

कहीं बात उसकी सुन कर मेरा दिल बदल न जाये 

 

यूँ अतिशे हवस में जलता है ये ज़माना

हैवानियत का चश्मा फिरसे उबल न जाये

 

वो कर रहा जफायं मैं निभा रहा वफ़ा को 

पयमाना सब्र का भी फिरसे उबल न जाए 

 

तुम को कसम खुदा  की मेरे तरफ तो देखो 

"न झुकाओ तुम निगाहें कहीं रात ढल न जाये"

 

बिखरे हुए है अरमा टूटी है दिल ख्वाहिश

रंजो अलम का लावा दिल में पिघल न जाये 

 

"खुर्शीद" नूर बक्शे अपना ही दिल जल कर 

रूहे रवां कहीं फिर दिल से निकल न जाये 

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Safat Khairabadi 

 

मुझे डर है मेरे दिलबर मेरा दिल बदल न जाये 

तेरी राह तकते तकते मेरी जां निकल न जाये 

 

अभी प्यार का है मौसम ये बहार टल न जाये 

"न झुकाओ तुम निगाहें कहीं रात ढल न जाये"

 

तू ही मेरी आरजू है तू ही मेरी जुस्तुजू है

अभी तुझको प्यार कर लूं कही दम निकल न जाये

 

तेरी हर अदा में शोखी तेरी हर नज़र में जादू

तुझे देख कर कहीं अब मेरा दिल मचल न जाये

 

मैं बहुत हुआ हूँ रुसवा तेरी आशिकी मैं जाना 

मुझे डर है ये ज़माना कही मुझ से जल न जाये

 

तेरा रूप है सलोना तू न कर गुरूर इतना 

तेरा हुस्न रफ्ता रफ्ता मेरे दोस्त ढल न जाये

 

मझे बेक़रार करके कभी दूर तू न रहना 

तेरी बेरुखी का खंजर मेरे दिल पे चल न जाये

 

कभी हसना मुस्कुराना कभी रूठना मनाना 

यूँ तुम्हारा मुझ से मिलना कहीं सब को खल न जाये

 

मैं हर एक सांस अपनी तेरी नाम कर दूं लेकिन 

मुझे डर है ऐ "शफाअत" कही तू बदल न जाये  

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गीतिका 'वेदिका' 

 

ये जहाँ बदल रहा है, मेरी जाँ बदल न जाये
तेरा गर करम न हो तो, मेरी साँस जल न जाये

 

ये बता दो आज जाना, कि कहाँ तेरा निशाना
जो बदल गये हो तुम तो, कहीं बात टल न जाये

 

न वफ़ा ये जानता है, मेरा दिल बड़ा फ़रेबी
ये मुझे है डर सनम का, कि कहीं बदल न जाये

 

तेरी जुल्फ़ हैं घटायें, जो पलक उठे तो दिन हो
'न झुकाओ तुम निगाहें, कहीं रात ढल न जाये'

 

मेरा दिल लगा तुझी से, तेरा दिल है तीसरे पे
तेरा इंतज़ार जब तक, मेरा दम निकल न जाये

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Replies to This Discussion

मेरा एक निवेदन है कि मेरी दूसरी गज़ल में जो एक मिसरा गलत हुआ है उसकी कमी मुझे पकड़ में नहीं आ रही है। आप सुधी जन यदि इशारा कर दें तो कृपा होगी।

 

जो शहर=12 21 की हर गली में ये पसर गयी खामोशी=122 222

मैं शहर को 12 गिन रहा था। यही गलती थी। क्या खामोशी को खमोशी लिखने से काम चलेगा?

बृजेश भाई,वजन के मामले में मैं अपना एक फार्मूला लगाता हूँ , यदि जिस शब्द में वर्ण को गिराना होता है उसे मैं गिराकर पढ़ता हूँ और देखता हूँ कि गिरे हुए वजन पर क्या मैं उच्चारित कर पाता हूँ ? चूकि गजल शुद्ध रूप से ध्वनि का खेल है, इसप्रकार मैं ख़ामोशी (२२२) को १२२ पर उच्चारित नहीं कर पा रहा हूँ । 

आदरणीय बागी जी आपका यह सूत्र बहुत काम का है। आगे इसे ही प्रयोग करूंगा। कहन के चक्कर में इस मिसरे पर ध्यान नहीं दिया और गलती हो गयी। इसे सुधार कर फिर प्रस्तुत करूंगा।
आपका आभार!

शहर = १२  के वज़्न में क्यों नही हो ?

खामोशी को शायर खमोशी खूब-खूब करते हैं. खामोशियों को खमोशियो की तरह व्यवहृत हमने भी देखा है.

मै भाईजी से इसका उत्तर पूछ कर बताऊँगा या निवेदन करूँगा कि वे उत्तर दें.  हम अपनी व्यवहृत भाषा में कलमगोई कर रहे हैं. तो उत्तर सम्यक ही होगा. किस मंच और किस स्कूल में क्या बलात् सिखाया जा रहा है, हम क्यों जाने ?

आदरणीय सौरभ जी,
मुझे भी इसके उत्तर की प्रतीक्षा है क्योंकि इस उत्तर पर ही इस मिसरे का भविष्य निर्भर है। तदनुसार इसे संशोधित करने का प्रयास करूंगा।

आदरणीय, यहाँ दो प्रश्न है .....

शहर = १२  के वज़्न में क्यों नही हो ?

इसका उत्तर अन्यत्र नहीं इसी ओ बी ओ पर है, वीनस भाई ने एक पोस्ट लगाया है,लिंक निम्न है ...

हिन्दी में अन्य भाषा के प्रचलित शब्दों का सही रख रखाव - वीनस केसरी

खामोशियों को खमोशियो की तरह व्यवहृत हमने भी देखा है.....हो सकता है, मैंने स्पष्ट रूप से कहा है .....मैं ख़ामोशी (२२२) को १२२ पर उच्चारित नहीं कर पा रहा हूँ । 

 

यह इतना सरल प्रश्न होता तो संभवतः मैं यों नहीं पूछता, गणेश भाईजी.

फोनेटिक्स और भाषा विज्ञान शब्द-रटंतु ढंग से नहीं चलते.

इस विषय पर गहन तथ्यों और विशद विवेचना की आवश्यकता है.

राणा भाई अवश्य समझ रहे होंगे.

ji bilkul sahamat hoon venas ji ki is charcha se kai shabdo ke bhram door ho rahe hai ,

सौरभ जी की बात से भी सहमत हूँ  .

आदरणीय सौरभ जी, यही समस्या मेरी भी है। हिन्दी में हम तीन वर्णों के सभी शब्दों को १२ के  वज़न में लेते हैं तो शहर को अलग क्यों माने? आज भी लिखते लिखते जहां यही शब्द प्रयोग करना था, वो शे'र ही काट दिया। विद्वानों के अलग अलग मत होने से भ्रम की स्थिति बन जाती है। जिन मित्र ने सीखने के लिए यह लिंक दी, उन्होने यही कहाकि इसे दोनों तरह से प्रयोग किया जा सकता है, अब यह नई जगह है मेरे लिए यहाँ नई रचनाएँ ही पोस्ट करनी हैं, यहाँ जो तय किया जाएगा उसी का अनुसरण करना ही है। यहाँ बहुत सीखने को मिला है। मैं तो अधिकाधिक हिन्दी शब्द ही प्रयोग में लाती हूँ। हिन्दी के प्रसार के उद्देश्य से ही साहित्य से जुड़ी हूँ, यदि पारिभाषिक शब्दों में उर्दू केसाथ हिन्दी अर्थ भी लिखा जाए तो बहुत अच्छा रहे।  जो उर्दू नहीं जानते उनके लिए उर्दू सीखने की बजाय शब्दों के हिन्दी विकल्प होना चाहिए। यह सिर्फ मेरा विचार है, तय तोआप सबको ही करना है।...सादर

आपकी बातों में हर उस लेखक की समस्या झलक रही है जो भाषा की शुद्धता के नाम पर अनावश्यक शाब्दिक आरोपण का बोझ सह रहा है या भ्रमित किया जा रहा है.

इस तरह से तो काँटा, दूध, घोड़ा अदि-आदि-आदि  जैसे अनेकअनेक शब्दों की मात्रा गणना क्या करना वे शब्द ही खारिज़ हो जायेंगे.

इस गंभीर विषय पर संयत और शांत किन्तु अत्यंत विशद विवेचना की आवश्यकता है.

सादर

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