परम आत्मीय स्वजन,
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के 36 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है. इस बार का तरही मिसरा,हिन्दुस्तान को अपना दूसरा घर कहने वाले मरहूम पाकिस्तानी शायर अहमद फ़राज़ की बहुत ही मकबूल गज़ल से लिया गया है.
पेश है मिसरा-ए-तरह...
"अभी कुछ और करिश्मे ग़ज़ल के देखते हैं"
अ/१/भी/२/कु/१/छौ/२/र/१/क/१/रिश/२/में/२/ग/१/ज़ल/२/के/१/दे/२/ख/१/ते/१/हैं/२
१२१२ ११२२ १२१२ ११२
मुफाइलुन फइलातुन मुफाइलुन फइलुन
(बह्र: मुजतस मुसम्मन् मख्बून मक्सूर )
मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 28 जून दिन शुक्रवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक 30 जून दिन रविवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
अति आवश्यक सूचना :-
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के 36 वें अंक में आप सभी का स्वागत है.
आपका भी ओबीओ लाइव तरही मुशायरा- अंक 36 में स्वागत है, भाई
सुस्वागतम ! :)))
सभी का तहेदिल से स्वागत है................
स्वागतम सुस्वागतम
sadar parnam sir ji, net par jyada tjurba nhi hai.. isi liye tarhi gazal post karne mein dikkat aar rhi thi.. par ab das ghante se 'This post is awaiting approval.'.. show ho raha hai, koi hal kijiye..shukria,
Aadarniya, aap upar baney badey box mey apni rachna post kar den, jo uchit sthaan hai. yadi koi samasya ho to merey mobile number 09431288405 par sampark kar saktey hain.
ग़ज़ल
ज़रा सी दूर तलक, साथ चल के देखते हैं
बिखर चुका है यकीं, चल बदल के देखते हैं।
बुझे बुझे से चरागों में रौशनी देखी
अभी कुछ और करिश्मे ग़ज़ल के देखते हैं।
बहुत दिनों से नया कुछ नहीं कहा हमने
किसी के दर्द के दरिया में जल के देखते हैं।
सही समय पे जो खुद को बदल नहीं पाते
वही दरख़्त कभी हाथ मल के देखते हैं।
गिरे कुछ ऐसे कि अब तक सम्हल नहीं पाये
तुम्हारा साथ मिला है, सम्हल के देखते हैं।
विदा के वक्त में दुल्हन के हाथ की मेंहदी
इसी में ख़्वाब कई रंग कल के देखते हैं।
सदा ही चाल औ तिकड़म कपट से काम लिया
कहॉं ये लोग कभी खुद को छल के देखते हैं।
--
मौलिक एवं अप्रकाशित
बिखरे हुए यकीं को बदलने की सोच अच्छी लगी. आदरणीय
ग़िरह का शेर भी अहा-अहा है. ग़ज़ल की अन्दरूनी ताक़त सामने आयी है.
गिरे कुछ ऐसे कि अब तक सम्हल नहीं पाये
तुम्हारा साथ मिला है, सम्हल के देखते हैं.. . . .वाह वाह !
शुभम्-शुभम्
धन्यवाद सौरभ जी।
बहुत दिनों से नया कुछ नहीं कहा हमने
किसी के दर्द के दरिया में जल के देखते हैं।
बहुत दिनों से नया कुछ नहीं सुना हमने
बड़े यकीन से हम भी मचल के देखते हैं...............
बेहतरीन गज़ल के लिये बधाई
धन्यवाद अरुण जी। आपके मचलने का नतीज़ा भी देख लेंए एक और चिपका दी है आज।
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