आदरणीय साथिओ,
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अपने स्वार्थ पूर्ति को अंजाम किस तरह दिया जाए,बेहतरीन प्रस्तुति,बधाई स्वीकार कीजिएगा.
बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीया बबीता गुप्ता जी।
जनाब शहज़ाद उस्मानी साहिब आ दाब , प्रदत्त विषय पर सुंदर लघुकथा हुई है मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं |
बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब तस्दीक़ अहमद ख़ान साहिब।
बढिया प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई आपको आ. शेख शहजाद उस्मानी जी
बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीया अर्चना त्रिपाठी जी।
हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी। बेहतरीन लघुकथा।अति सुन्दर कटाक्ष।
रचना पर समय देकर अनुमोदन और हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब तेजवीर सिंह साहिब।
मूर्तियों की राजनीति और धर्म के संदर्भ में आपकी ये रचना सहज ही आज के माहोल पर अच्छा कटाक्ष करती है भाई शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी. जैसा कि आपने कहा कि ये एक वास्तविक घटना से प्रेरित रचना है, तो मैं इस संदर्भ में एक सुझाव देना चाहूँगा... आपको कि अपनी रचना को कभी भी वास्तिवक घटना से जोड़कर न लिखिए. इसकी अपेक्षा आप उस विषय और कथ्य को अपने जहन में विकसित होने दें और एक काल्पनिक प्लाट लेकर उसमे इस विषय को समहित कीजिये..... बरहाल हार्दिक बधाई इस सुन्दर रचना के लिए उस्मानी भाई ,
हमेशा की तरह बढ़िया इस्लाह और ताक़ीद के साथ स्नेहिल प्रोत्साहन देने के लिये तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब वीरेन्दर वीर मेहता साहिब।
यदि रचना के ठीक बाद मैं अपनी वह टिप्पणी न करता, तो आप क्या कहते?
रचना का 90℅ भाग मेरी ही परिकल्पना पर आधारित है, कृपया सुनी हुई 10℅ बात के कारण केवल तानाबाना के रूप में न देखिएगा। सादर।
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