आदरणीय साथिओ,
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आदरणीय तेजवीर जी प्रदत्त विषय पर बेहतरीन प्रस्तुति । संस्कारों के बन्धन सहज नहीं छूटते परिस्थितियांं मजबूर कर देती हैं ।
हार्दिक आभार आदरणीय कनक जी।
विषयान्तर्गत बेहतरीन लघुकथा,हार्दिक बधाई स्वीकार कीजियेगा आदरणीय सरजी।
हार्दिक आभार आदरणीय बबिता गुप्ता जी।
शानदार दृष्टि के लिए हार्दिक बधाई
हार्दिक आभार आदरणीय ओम प्रकाश जी।
आदरणीय तेजवीर भाई जी! हर संवाद में प्रश्नसूचक चिन्ह ? कई संवादों में प्रश्नसूचक चिन्ह अनावश्यक दिखाई दे रहे हैं। यथा: तुम्हारे कारण ही मैं इस धंधे के दलदल में फ़ंसी हूँ"?, साँचे में ढला हुआ जिस्म है"?, रत्ती भर भी सैक्स अपील नहीं है"?, एक बार खुल गयी तो पूरा बाज़ार उसकी खुशबू से महक उठेगा"? इससे वाक्य विन्यास 'डिस्टर्ब' हो रहा है। नंबर दो- शब्बो द्वारा प्रयुक्त 'सेक्स अपील' पात्रानुकूल नहीं लग रहा क्योंकि उपरी संवादों में वो धंधे, कहमुँही आदि शब्दों का प्रयोग कर रही है । सबसे आवश्यक बात मुझे इस लघुकथा का उद्देश्य समझ में नहीं आया कि इसके माध्यम से आप क्या संदेश देना चाह रहे हो। आदरणीय योगराज प्रभाकर जी के आलेखानुसार - क्या कहना है, कैसे कहना है और क्यों कहना है । अब इस लघुकथा का 'क्यों कहना है' मुझे समझ में नहीं आया। कुछ प्रकाश डालने की कृपा करें । सादर
हार्दिक आभार आदरणीय रवि प्रभाकर भाई जी।लघुकथा पर आपकी उपस्थिति से मन प्रफ़ुल्लित हो गया।आपके मार्ग दर्शन की सदैव आवश्यकता रहती है।क्षमा चाहता हूँ कि जल्दबाजी में कुछ त्रुटियाँ हुई हैं।"सेक्स अपील" वाला वाक्य शब्बो ने नहीं, उसके पति ने बोला है। मैं लघुकथा गोष्ठी के शीर्षक को ध्यान में लेकर लिखता चला गया।पोस्ट करने के बाद जब मैंने पढ़ा तो मुझे भी ऐसा ही अहसास हुआ कि लघुकथा में कुछ कमी है।कुछ अधूरापन सा लगा।अतः मैं आदरणीय संपादक जी से निवेदन करूंगा कि इस लघुकथा को गोष्ठी के संकलन में शामिल ना करें। यदि वे इज़ाज़त देंगे तो मैं कल दूसरी लघुकथा पोस्ट कर दूंगा।आपका पुनः हार्दिक आभार रवि भाई जी।
आदरणीय सर जी, आदाब। ग़ुस्ताख़ी मुआफ़ हो! मुझे ऐसा लगा कि यहां, इस पेशे में धकेली गई भली सुंदर लड़की की मनोदशा, उसकी दृष्टि (संस्कारों आदि से बंधी) और धंधा करने वाले उन पति-पत्नी की अनुभव-आधारित दृष्टि और लड़की पर होने वाली मानसिक प्रताड़ना बाख़ूबी उभारी गई है।शीर्षक संदेश अनुसार बेहतरीन होना चाहिए था। मार्गदर्शन निवेदित।
हार्दिक आभार आदरणीय शेख उस्मानी जी।
तीन पात्रों और ग्राहकों की दृष्टि उभारती विचारोत्तेजक रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब। मुझे ऐसा लगा कि यहां, इस पेशे में धकेली गई भली सुंदर लड़की की मनोदशा, उसकी दृष्टि (संस्कारों आदि से बंधी) और धंधा करने वाले उन पति-पत्नी की अनुभव-आधारित दृष्टि और लड़की पर होने वाली मानसिक प्रताड़ना बाख़ूबी उभारी गई है।
हार्दिक आभार आदरणीय शेख उस्मानी जी।
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