आदरणीय साथिओ,
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ये वसीयत नहीं बल्कि एक सबक है। बहुत बहुत बधाई।
हार्दिक आभार आदरणीय मुज़फ्फ़र इक़बाल जी ।
नोट:- ओबीओ मंच की यह परिपाटी रही है कि लेखक,कवि या शायर को आदर सूचक संबोधन से पुकारा जाता है । अत: आप भी इस परिपाटी को बनाए रखने में सहयोग करेंगे । सादर ।
जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब आदाब,प्रदत्त विषय पर अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
बहुत-बहुत शुक्रिया आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब ।
आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी, कम शब्दों में बड़ा सन्देश देती सुन्दर लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें। । उम्र जिस पड़ाव में बच्चों की सबसे अधिक जरुरत पड़ती है, उस समय उनका अनदेखा करना बहुत कष्टकर होता है।
हार्दिक आभार आदरणीया नीलम उपाध्याय जी ।
बढ़िया सन्देशप्रद लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ जी. सादर.
हार्दिक आभार आदरणीय महेंद्र कुमार जी ।
शीर्षक ----- किरण
फ़हीम चाचा अपने बचपन के दोस्त शशिकांत के साथ बेठे अख़बार पढ़ रहे थे। फ़हीम चाचा के चेहरे के भाव लगातार बदलते देख शशिकांत जी ने अचानक ही फ़हीम चाचा के हाथ से अख़बार झपट लिया। चाय का कप फ़हीम चाचा की तरफ़ बढाते हुए कहा,
“यार अब वो ख़ूबसूरत ज़माना नहीं रहा जो हमारे वक़्त में हुआ करता था। आज के दौर में साक्षरता का प्रतिशत तो लगातार बढ रहा है लेकिन इन्सानियत का स्तर गिरता ही जा रहा हेै।”
“अफ़सोस तो ये है कि गली मोहल्ले का कोई भी छुटभय्या नैता आकर मिनटों में हमारे पढ़े लिखे नौजवानों को धार्मिक भावनाओं में बहा कर अपने बस में कर लेता हे एसे हालात में नई नस्ल से हमारे ज़माने जेसे भाईचारे की क्या उम्मीद की जा सकती हेै.” फ़हीम चाचा ने ठंडी आह भरते हुए चाय का कप मेज़ पर रखा ही था कि विशाल की आवाज़ उनके कानों में रस घोल गई,
“चाचा आदाब!” कहते हुए शशिकांत के बेटे विशाल ने फ़हीम चाचा के पैर छूकर आशिर्वाद लिया। विशाल अभी पाँव छूकर हटा ही था कि फ़हीम चाचा का आठ साल का पोता भागता हुआ वहाँ आ पहुँचा।
“परनाम दादू।” कहते हुए उसने शशिकांत के पाँव छुए।
फ़हीम चाचा ने मोहब्बत से लबरेज़ आँखों से शशिकांत को निहारा। और उत्साह भरे स्वर में उन्हें संबोधित करते हुए बोले,
“मेरी उम्मीद को पँख मिल गए हैें, हमारा ज़माना फिर आएगा शशि भाई।”
मौलिक एवं अप्रकाशित
वाह। आज के परिवेश और परिदृश्य में प्रेरणा की उम्मीद जगाती बेहतरीन पेशकश। तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब मिर्ज़ा जावेद बेग साहिब। शीर्षक भी बढ़िया है। कुछ टंकण त्रुटियां रह गई हैं: बढाते/नैता/आशिर्वाद/एसे...
मोहतरम जनाब शहज़ाद साहिब आदाब ,
मेरी अदना सी कोशिश पर अपनी बैशक़ीमती हौसला अफ़जा़ई
के लिए दिली शुक्रिया !
आप सब का साथसाथ रहा तो इंशाअल्लाह धीरे धीरे हिंदी टाइपिंग भी दुरुस्त हो जाएगी एक बार फिर शुक्रिया
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