आदरणीय साथिओ,
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प्रदत्त विषय पर प्रस्तुत इस सकारात्मक लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए आदरणीया बबिता जी. आदरणीय शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी की बात से मैं भी सहमत हूँ. और शीर्षक क्यों गायब है? सादर.
आदरणीया बबिता गुप्ता जी, दिए हुए विषय को सार्थक करती बहुत ही बढ़िया सन्देशपरक लघुकथा की प्रस्तुति के लिए हार्डडिस्क बधाई।
बेटियाँ किसी भी क्षेत्र में बेटे से कम नहीं।यह तो हमारी सोच ने यह भेदभाव उत्पन्न कर दिया वरना हर कदम पर लड़कियों ने अपने को सिद्ध किया है।सार्थक लघुकथा के लिए आदरणीय बबीता गुप्ता जी को बधाई।
आदरणीया बबीता गुप्ता जी आदाब,
बहुत ही सशक्त लघुकथा । अच्छा कथानक । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
मुहतरमा बबीता गुप्ता जी आदाब,प्रदत्त विषय को सार्थक करती अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
“ठोकर “
“तो तुम आज शाम को मुजरा नहीं कर रही हो ?”पन्ना बाई ने चम्पा से पूछा ।
“हाँ पन्ना बाई तबीयत कुछ नासाज़ सी है ।” चम्पा बोली ।
“चम्पा तुम पर हमारा स्नेह है ,इसलिए बता रहे है ,हम कोठे वाली किसी एक की होकर नहीं रह सकती ।हम देख रहे है ,इन दिनो तुम्हारा झुकाव छोटे ठाकुर पर हो गया है ।”पन्ना बाई बोली ।
तभी कोठे का नौकर थैले में कुछ सामान लेकर आया ,पन्ना बाई ने उसके हाथ से थैला लेकर पूछा “क्या लाया है ?ज़रा मैं भी तो देखूँ ।”
“चम्पा बाई जी ने मँगवाया था ।” नौकर बोला ।
नौकर को जाने का बोल ,थैले में पूजा का सामान व करवा देख पन्ना बाई बोली “ ये तो करवा चौथ की पूजा का सामान दिखे है ।”
“हाँ वो आज मेरा व्रत है ।”चम्पा नीची नज़र कर बोली ।
“वैसे चम्पा आज छोटे ठाकुर की पत्नी का भी पहला करवा चौथ होगा ,और वैसे भी हम कोठे वालियों का काहे का व्रत ।”पन्ना बाई बोली ।
“छोटे ठाकुर ने आज आने का वादा किया है ।”चम्पा बोली ।
“यहाँ तो हमने वादे टूटते हुए ही देखें है ,काश तुम्हारी उम्मीद न टूटे ।”पन्ना बाई बोली ।
रात में चाँद निकलने पर चम्पा ने चाँद को अर्घ्य दे पूजा की ,और फिर छोटे ठाकुर का इंतज़ार करने लगी ।
कुछ समय बाद नौकर एक पत्र दे गया ,चम्पा ने झट से खोल उसे पढ़ा ,लिखा था -
“चम्पा आज हम नहीं आ पाएँगे ,तुम व्रत खोल लेना । “
छोटे ठाकुर
टूटी हुई उम्मीद का एक आँसू काग़ज़ पर गिर कर शब्दों को धुँधला कर गया था ।
मौलिक व अप्रकाशित
सम्मानीय लेखिका महोदय, कम शब्दों में बहुत कुछ कह देती है लघुकथा। समाज में गुम होती बच्चियां और मानव तस्करी न रूकने के कारण कई महिलाएं ये ठोकर सहने को विवश हैं। मानवीय संवेदनाओं के धरातल पर अरमानों को रौंदती आपकी लघुकथा बहुत कुछ सोचने पर विवश करती है और ये इशारा करती है कि तमाम सामाजिक संगठनों और सरकारी योजनाओं के चलने के बाद भी महिलाओं को इस दलदल से निकाला नहीं जा सका है। तो क्या करना चाहिए ?
हमारी व्यक्तिगत राय है और हमने कई पत्रकारों से भी विनम्रतापूर्वक निवेदन किया है कि वह भी क्षमायाचना के साथ कि हम जाति के जरिये अपने लेख, समाचार, रचनाएं न लिखें। कई बार ऐसा देखा गया है कि हम किसी एक जाति विशेष का उल्लेख करके समूची समुदाय को कटघरे में खड़ा कर देते हैं। आप बड़े हैं अनुभवी हैं सम्मानीय है हमारा आशय समझ गए होंगे। लघुकथा के लिए बधाई
सुन्दर रचना। बधाई
बहुत -बहुत धन्यवाद आदरणीय इक़बाल जी ,आभार ,सादर
बहुत -बहुत धन्यवाद आदरणीय इक़बाल जी ,आभार ,सादर
रचना पर संक्षिप्त वह भी बग़ैर लेखिका का नाम लिए यह ओबीओ की परिपाटी नहीं है आदरणीय मुज़फ्फ़र इक़बाल जी ।
बहुत -बहुत धन्यवाद आदरणीय आशीष जी ,आभार ,सादर
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