आदरणीय साथिओ,
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जनाब शहज़ाद उस्मानी साहिब आ दाब, लघुकथा पसंद करने और आपकी हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया I
बढ़िया लघुकथा आदरणीय तस्दीक़ अहमद खान साहब । अमेरिका के आराम से अपनी देश की मिट्टी का मोह अधिक सबल सिद्ध हुआ..।
मुह तरमा कनक साहिबा , लघुकथा पसंद करने और आपकी हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया I
आद0 तस्दीक अहमद खान जी सादर अभिवादन। विषय को सार्थक करती उत्तम लघुकथा पर मेरी बधाई स्वीकार कीजिये
जनाब सुरेन्द्र नाथ साहिब , लघुकथा पसंद करने और आपकी हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया I
आदरणीय तस्दीक़ जी, प्रदत्त विषय पर बढ़िया लघुकथा कही है आपने. मेरी तरफ़ से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए.
1. //तुम और बहू ऑफिस चले जाते हो, खाली घर में हमारा वक़्त नहीं कटता है"// मुझ़े लगता है कि यदि यह पंक्ति आप हटा देंगे तो लघुकथा अपने शीर्षक के साथ न्याय करते हुए और बेहतर हो जाएगी.
2. // मगर राजेश की आँखों के आँसू साफ़ साफ़ कह रहे थे कि पुत्र मोह से बड़ा है देश प्रेम // यदि इस पंक्ति को इस तरह कर दिया जाए : "मगर अमर सिंह की आँखों की दृढ़ता साफ़-साफ़ कह रही थी कि पुत्र मोह से बड़ा है देश प्रेम" तो कैसा रहेगा?
सादर.
जनाब महेंद्र कुमार साहिब, लघुकथा पसंद करने और मशवरे का बहुत बहुत शुक्रिया I
अपना बतन , अपना ही होता हैं,बेहतरीन रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिएगा आदरणीय अहमद सर जी.
मुह तरमा बबिता साहिबा, लघुकथा पसंद करने और आपकी हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया I
बहुत बढ़िया रचना है विषय पर लेकिन आखिरी पैरा थोड़ा नाटकीय हो गया है जिसे और बेहतर किया जा सकता है. बहरहाल बहुत बहुत बधाई इस रचना के लिए आ तस्दीक़ अहमद खान साहब
जनाब विनय कुमार साहिब, लघुकथा पसंद करने और आपकी हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया I
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