आदरणीय साथिओ,
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मैं अभी समीक्षा नहीं, सामान्य टिप्पणी का ही अभ्यास कर पा रहा हूं। अन्यथा न लें।
लेकिन टंकण जनित त्रुटियाँ लिखना आपकी टिप्पणी की ख़ास और सामान्य बात हो गई है।बताना भी चाहिए कि कैसी त्रुटियाँ आपकी समझ से मेरी कघुकथा में मिलीं।
समय की उपलब्धता के अनुसार ही इशारों में भी कहना पड़ता है। सुधीजन की रचनाओं में टंकण-त्रुटियां न हों, तो बेहतर। समय मिलने पर ही विस्तृत टिप्पणी की जा सकती है न।
टंकड़ त्रुटियां :
1- दो शब्दों व विराम चिन्हों के बीच की स्पेसिंग।
2- //खुद दे (से) जुदा हो चला..//
3- //वे हँस रहे हैं,कि विवेक//
4- //आमीन',टूटा तारा बोला//...आदि।
मुझे लगता है कि आपको एक बार हिंदी व्याकरण की तरफ ध्यान देना चाहिए।हाँ,खुद से के बदले खुद दे हो गया है,इसे मानता हूँ,सादर।
आदरणीय मनन कुमार सिंह जी यहां केवल स्पेस देने की टाइपिंग संबंधित बात कही है। शब्द व विराम चिह्न आपस में सट गये हैं।
मन-मस्तिष्क का मेल अर्थात दिल और दिमाग अथवा होश और जोश का सामंजस्य, क्या बात कह दी आदरणीय मनन कुमार सिंह जी. ऐसे सुमेल से हर समस्या का समाधान हो सकता है. इस उम्दा और सन्देशपरक लघुकथा हेतु मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार .
//आदमी आदमी से क्या,खुद दे भी जुदा हो चला//=//आदमी आदमी से क्या,खुद से भी जुदा हो चला//
//ग्रह-तारे गवाह हैं कि जब आपस में टकराए तो लुढ़क गये,//=//ग्रह-तारे गवाह हैं कि जब आपस में टकराए तो बिखर गये,//
//नर धर हुआ चल रहा है// धर हुआ का अर्थ समझ नहीं आया.
आदरणीय योगराज जी , निवेदन करना चाहूँगा कि 'धर' यानि कबंध या सर विहीन है।जैसे प्रायः कहा भी जाता है कि 'सर' 'धर' से अलग हो गया।
बेहतरीन लघुकथा आ0 मनन कुमार जी ।
आभार आदरणीय।
जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब,प्रदत्त विषय पर लघुकथा का अच्छा प्रयास है,बधाई स्वीकार करें ।
गुणीजनों की बातों का संज्ञान लें ।
आदरणीय समर जी,आभार।
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