आदरणीय साहित्य प्रेमियो,
सादर अभिवादन ।
पिछले 46 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलमआज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :
"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-47
विषय - "सत्यमेव जयते"
आयोजन की अवधि- 12 सितम्बर 2014, दिन शुक्रवार से 13 सितम्बर 2014, शनिवार की समाप्ति तक (यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)
बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए.आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.
उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --
तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
हाइकू
व्यंग्य काव्य
मुक्तक
शास्त्रीय-छंद (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)
अति आवश्यक सूचना :-
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर एक बार संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.
आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है.
इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 12 सितम्बर 2014,दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा)
यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तोwww.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.
महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करें
मंच संचालिका
डॉo प्राची सिंह
(सदस्य प्रबंधन टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.
Tags:
Replies are closed for this discussion.
आदरणीय सौरभ भाईजी
///वैसे कई पंक्तियॊं में संप्रेषणीयता तनिक और सधी हो सकती थी ///
इस बात को मैं भी महसूस करता हू, अपनी अन्य रचनाओं में भी।
रचना को समय देने , विचार प्रकट करने, सुझाव और प्रशंसा के लिए हृदय से धन्यवाद , आभार।
( नेट और बिजली की समस्या हर दिन झेल रहा हूँ )
सादर
आदरणीय बड़े भाई , आपने बहुत सही कहा , आज के जमाने में सच के रास्ते चलने वालों को पागल ही समझा जाता है | पूरी रचना बहुत सुन्दर हुई है , आपको दिली बधाइयाँ |
भाई गिरिराज
रचना को समय देने , विचार प्रकट करने और प्रशंसा के लिए हृदय से धन्यवाद , आभार।
अखिलेश जी
हम लोगो का भोगा हुआ यथार्थ तो यही है जिस दृश्य आपने दिखाया -
सत्य टिक सके झूठ के आगे, अब इतनी सामर्थ्य नहीं।
भ्रष्टाचार है धर्म जहाँ पर, वहाँ सत्य का अर्थ नहीं॥
आदरणीय गोपाल् भाईजी,
रचना को समय देने , विचार प्रकट करने और प्रशंसा के लिए हृदय से धन्यवाद , आभार।
कोर्ट, संसद, कार्यालय में , झूठों का बोल बाला है। सत्यवादी जितने देखे हैं, सब के मुँह पर ताला है॥
लोग उसे पागल कहते हैं , जो हैं सच कहने वाले। सज़ा मिली, सूली भी चढ़ गये, हरीशचंद्र बनने वाले॥---------------आज की वास्तकिता का चित्रण आप की पंक्तियों में है आपको बहुत बहुत बधाई
आदरणीय अखंड् भाई,
रचना को समय देने , विचार प्रकट करने और प्रशंसा के लिए हृदय से धन्यवाद , आभार।
आदरणीय अखिलेश जी सादर,
इस सुन्दर एवं सार्थक प्रस्तुति हेतु हृदय से बधाई स्वीकार करें आदरणीय
सत्य बोलकर पिताजी अक्सर, मुश्किल में पड़ जाते थे। लिया झूठ का जब भी सहारा, सभी काम बन जाते थे॥
लोग उसे पागल कहते हैं , जो हैं सच कहने वाले। सज़ा मिली, सूली भी चढ़ गये, हरीशचंद्र बनने वाले॥
आदरणीय सत्यनारायण भाई,
रचना को समय देने , विचार प्रकट करने और प्रशंसा के लिए हृदय से धन्यवाद , आभार।
आदरणीय अखिलेश जी ,,सुन्दर प्रस्तुति ,मुझे भी याद है हम सब चचेरे भाई बहन अपनी बात की सत्यता प्रमाणित करने के लिए 'दादीसा की सौ ' कहा करते थे |मजाल की दादी की सौगंध उठाकर कोई झूठ बोल जाये |आपने कलियुग में सत्य की जिस दुर्दशा का वर्णन किया है उसका कारण शायद बुजुर्गों के प्रति सम्मान कम होना ही है |सरस भावाभिव्यक्ति हेतु सादर अभिनन्दन
आदरणीय खुर्शीदजी ,
पुरानी यादें ताज़ा हो गई। रचना को समय देने , विचार प्रकट करने और प्रशंसा के लिए हृदय से धन्यवाद , आभार।
वास्तव में यही सत्य है-
कोर्ट, संसद, कार्यालय में , झूठों का बोल बाला है। सत्यवादी जितने देखे हैं, सब के मुँह पर ताला है॥
आदरणीय बहुत बहुत बधाई
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |