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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-48

परम आत्मीय स्वजन,

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के 48 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा-ए-तरह अज़ीम शायर अल्लामा इकबाल की ग़ज़ल से लिया गया है| पेश है मिसरा-ए-तरह ........

“हयात सोज़-ए-जिगर के सिवा कुछ और नहीं”
१२१२   ११२२   १२१२   २२/११२
ह/१/या/२/त/१/सो/२/जे/१/जि/१/गर/२/के/२/सि/१/वा/२/कु/१/छौ/२/र/१/न/१/हीं/२
मुफाइलुन  फइलातुन  मुफाइलुन  फेलुन
(बह्र: मुजतस मुसम्मन् मख्बून मक्सूर )
अंतिम रुक्न 112 को 22 भी किया जा सकता है
काफिया: अर (जिगर, नज़र, समर, सफ़र, क़मर, असर, दर, डर, आदि)
रदीफ़: के सिवा कुछ और नहीं

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं २७ जून दिन शुक्रवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक २८ जून दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा |

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन से पूर्व किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | ग़ज़लों में संशोधन संकलन आने के बाद भी संभव है | सदस्य गण ध्यान रखें कि संशोधन एक सुविधा की तरह है न कि उनका अधिकार ।

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो २७ जून दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

आदरणीय पिथौरागढ़ी जी, अच्छी ग़ज़ल प्रस्तुत हुई है, बहुत बहुत बधाई।

//समझता था मैं ग़ज़ल होती है जिगर का लहू
मगर ग़ज़ल तो बहर के सिवा कुछ और नहीं//

आप पहले ही ठीक समझते थे :-)

ये चंद साँसों के घर के सिवा कुछ और नहीं |

सफ़र में मौत के डर के सिवा कुछ और नहीं |

 

इसे मलंगी कहो औघड़ी फ़कीरी कहो ,

मुझे तो उसकी ख़बर के सिवा कुछ और नहीं |

 

उजाले रोक रही हैं किले की दीवारें ,

शहर को दे तू सहर के सिवा कुछ और नहीं |

 

किसी की चाह में ये उम्र बीत जानी है ,

हयात सोज़े जिगर के सिवा कुछ और नहीं |

 

मंगाओ केक, जली मोमबत्तियां फूको ,

ये जश्न -ए- घटती उमर के सिवा कुछ और नहीं |

 

तमाम मील के पत्थर हटा दो रस्ते से ,

मुझे अज़ीज़ सफ़र के सिवा कुछ और नहीं |

 

गली गली में दुकानें हैं रंग रोगन की ,

हमारी शक्ल हुनर के सिवा कुछ और नहीं |

 

हरेक मोड़ खड़ा है लिए हुए पत्थर ,

ये हादिसों के सफ़र के सिवा कुछ और नहीं |

 

जिधर से गुज़रो उधर ही पलासी चौसा है ,

हमारी ज़ीस्त समर के सिवा कुछ और नहीं |

 

रगों में दौड़ रही है ये कैसी खुदगर्जी,

बदायूँ हमको खबर के सिवा कुछ और नहीं |

 

पसंद है वो हमें, बस गया है नज़रों में

नज़र नज़र है नज़र के सिवा कुछ और नहीं |

 *मौलिक एवं अप्रकाशित.-अभिनव अरुण .

 

आदरणीय अभिनव अरूण जी इस उम्दा गजल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें ।

परम आभार आदरणीय श्री लक्षमण जी !!

//तमाम मील के पत्थर हटा दो रस्ते से ,
मुझे अज़ीज़ सफ़र के सिवा कुछ और नहीं |// गज़ब का ख्याल, वाह वाह वाह !!

//हरेक मोड़ खड़ा है लिए हुए पत्थर ,
ये हादिसों के सफ़र के सिवा कुछ और नहीं |// बहुत उम्दा शेअर।

//रगों में दौड़ रही है ये कैसी खुदगर्जी,
बदायूँ हमको खबर के सिवा कुछ और नहीं |// बेहिस महानगरीय सोच के मुँह पर कस के तमाचा मारा है -आफरीन।

इस पुरनूर ग़ज़ल से आयोजन की शान दोबाला हुई है आ०  अरुण भाई जी, हार्दिक बधाई निवेदित है.

आपका आशीर्वाद आपका स्नेह सर आँखों पर आदरणीय श्री संपादक महोदय ! बेहतर की कोशिश में आप मेरे पथप्रदर्शक हैं !! अभिवादन !!

तमाम मील के पत्थर हटा दो रस्ते से ,

मुझे अज़ीज़ सफ़र के सिवा कुछ और नहीं | --- आदरणीय अभिनव अरुण भाई , खूब सूरत ग़ज़ल , खोब्बसूरत अशआर के लिये आपको बधाइयाँ । गिरह भी खूब लगी है ।

आदरणीय श्री गिरिराज जी आभार आपका अशार पसंद आया आप जैसे विद्वान् ग़ज़लकार को तो लिखना कहना सार्थक हुआ !!

ये चंद साँसों के घर के सिवा कुछ और नहीं |

सफ़र में मौत के डर के सिवा कुछ और नहीं |

मंगाओ केक, जली मोमबत्तियां फूको ,

ये जश्न -ए- घटती उमर के सिवा कुछ और नहीं |

तमाम मील के पत्थर हटा दो रस्ते से ,

मुझे अज़ीज़ सफ़र के सिवा कुछ और नहीं |

 

खूब सूरत ग़ज़ल ,,,,,,,,,,,,,,,,हार्दिक बधाई

 

बहुत शुक्रिया गुमनाम जी आभार .

तमाम मील के पत्थर हटा दो रस्ते से ,

मुझे अज़ीज़ सफ़र के सिवा कुछ और नहीं |------सुन्दर शेर 

हरेक मोड़ खड़ा है लिए हुए पत्थर ,

ये हादिसों के सफ़र के सिवा कुछ और नहीं |-----वाह्ह्ह्ह 

 

रगों में दौड़ रही है ये कैसी खुदगर्जी,

बदायूँ हमको खबर के सिवा कुछ और नहीं |---बहुत खूब 

सुन्दर ग़ज़ल हुई है अभिनव अरुण जी हार्दिक बधाई 

आदरणीया राजेश जी , ह्रदय से आभार , अभिवादन !!

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