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आदरणीय चन्द्रेश जी
लिखना सार्थक हुआ , लघु कथा की प्रशंसा के लिए हृदय से धन्यवाद आभार
एक चारित्रिक मजबूत बुनियाद ने एक नापाक बुनियाद धराशाई कर दी |बहुत बेहतरीन सन्देश छोडती हुई लघु कथा हार्दिक बधाई आपको आ० अखिलेश कृष्ण जी|
आदरणीया राजेशजी
लिखना सार्थक हुआ , लघु कथा की प्रशंसा के लिए हृदय से धन्यवाद आभार
अच्छा प्रयास है आ० अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी। रचना शैली विधा सम्मत न होने के कारण इस रचना को लघुकथा नही माना जा सकता। छोटे आकार की कहानी अवश्य कह सकते है। इसके अतिरिक्त एक और महत्वपूर्ण बिंदु आपके संज्ञान में लाना चाहूँगा:
१. प्राचार्य- “ ………………………………
२. प्रो. (डा.) नागवार …………………
३. डा. बचकानी- “ ………………………………
लघुकथा में संवाद इस ढंग से नहीं लिखा जाता। यह शैली नाटक/एकाँकी की है।
आदरणीय योगराज भाईजी
आदरणीय , यामिनी के अतिरिक्त जो चार चरित्र हैं उन्हें कोई नाम तो देना ही था , मैने उनके विचार और अवगुणों के अनुसार नाम [ सरनेम ] देने का प्रयास किया है। सच तो ये है कि भारत में एक से एक उपनाम वाले हैं ... नेवले, मगर . केकड़े , भेड़िया , नाग , बाघ, अभ्यंकर आदि आदि । लेकिन मैं कुछ नया सरनेम चाहता था प्रोफेसर , प्राचार्य के चरित्र को सुशोभित करने वाले ।
2.. लघु कथा की लम्बाई कीबात है . .. , प्रयास तो किया था लेकिन पूरी बात स्पष्ट नहीं हो पा रही थी ।
लघुकथा में संवाद इस ढंग से नहीं लिखा जाता। यह शैली नाटक/एकाँकी की है। ,,,,,,, प्रयास था कि साक्षात्कार संक्षिप्त हो इसलिए ऐसे शब्द रखे।
सादर
लगता है आप मेरी बात का अर्थ ही नहीं समझे आ अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी I
रचना विषय को पूरी तरह से परिभाषित कर रही है लेकिन प्रस्तुति शैली कमजोर है. लघुकथा की दृष्टि से विस्तार अधिक लग रहा है.
आदरणीया श्रद्धा जी
लघु कथा की प्रशंसा के लिए हृदय से धन्यवाद आभार
आदरणीय अखिलेश सर, बढ़िया लघुकथा हुई है. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
आदरणीय मिथिलेशजी
लिखना सार्थक हुआ , लघु कथा की प्रशंसा के लिए हृदय से धन्यवाद आभार
आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव सर, मेरे कहे के अनुमोदन के लिए हार्दिक आभार. लेकिन यह भी अवश्य है कि यह रचना, लघुकथा विधा के शिल्प स्तर पर अभी और समय चाहती है जैसा कि गुनीजनों ने संकेत भी किया है. आदरणीय योगराज सर ने एकांकी या नाटकीय शैली के रचना में अनायास प्रवेश की ओर संकेत किया है वहीँ आदरणीय धर्मेन्द्र जी ने लघुकथा विधा के शिल्प के विपरीत बन रहे दो दृश्यों की ओर इशारा किया है. इन दो बिन्दुओ पर यथोचित संशोधन पश्चात् निसंदेह लघुकथा निखर आएगी. सादर
वाह आदरणीय प्रदत विषय पर आपने बहुत ही गहरी और सशक्त बात आपकी लघुकथा में कहने की सफल कोशिश की है। हार्दिक हार्दिक बधाई आदरणीय अखिलेश जी।
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