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सुंदर एवं सार्थक कथा के लिए बधाई आ. सुशील सरना जी |
आदरणीय Sudhir Dwivedi जी लघुकथा में निहित भावों पर आपकी स्नेहिल स्वीकृति का हार्दिक आभार।
क्या कहें और क्या न कहे आस पास भी बहुत देख रहें हैं और सुन भी रहे हैं ऐसी बातें| हर जगह बुनियाद कमजोर ही हो ऐसा भी नहीं जब बुनियाद को हिलाने वाले खतरनाक चक्रवात घर में आकर बैठ जाते हैं तो बुनियाद तो हिल ही जाती है चाहे वो कितनी मजबूत हो
इस लघु कथा का नायक (संवेदन शील होते हुए भी )उसी चक्रवात की चपेट में नजर आ रहा है मुझे :-)))
जिसने मजबूत बुनियाद को हिला कर रख दिया
बहुत अच्छी लघु कथा है आ० सुशील सरना जी दिल से बधाई लीजिये
आदरणीया राजेश कुमारी जी मैं आपकी पैनी दृष्टि का कायल हूँ। आपने वो बात पहचानी जो संवेदनशील मौनता के गर्भ में थी। आपके विचारों और प्रस्तुति पर आपकी प्रशंसात्मक एवं समीक्षात्मक प्रतिक्रिया का तहे दिल से शुक्रिया।
आदरणीय सुशील भाई
बहुत सुदर कथा का सुंदर अंत , नींव में दरार बचपन में ही आ गई थी, इसलिए शादी के बाद बेटा बहू का ही होकर रह गया।
हार्दिक बधाई
आदरणीय अखिलेश भाई लघुकथा की गहराई को आपने बहुत ही सुंदर ढंग से पकड़ा है। आपकी प्रशंसा रचनाकार के प्रयास का मान है। इस सार्थक प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार।
मार्मिक दृश्य उपस्थित कर दिया आपने अंत में ...दुखद है ऐसी बुनियाद!
प्रेम रसायन से जाति-प्रथा की बुनियाद खोखला करने की बात बहुत खूब लगी .
शुक्रिया आदरणीया रीता जी
"भले ही इस इमारत की बुनियाद को विस्फोटक लगाकर उड़ाया नहीं जा सकता मगर इसे प्रेम-रसायन से गलाया जा सकता है।” गजब की पंच लाइन है आदरणीय धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी| पुरातत्व से प्रेम की तरफ का यह सफर भी बढ़िया है|
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय चन्द्रेश जी
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