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वाह ! क्या बुनियाद है. बधाई आप को इस रचना के लिए.//दोनों खड़े हुए लेकिन गिरने के कारण लंगड़ाये, यह देख पहले के सचिव ने उसे एक सोने की छड़ी थमा दी और दूसरे का बेटा उसको अपने कंधे का सहारा दे कर ले चला|//
रचना को पसंद करने और आशीर्वाद देने के लिए हृदय से आभार आदरणीय ओमप्रकाश जी सर !!
आदरणीय चन्द्रेश भाई
अमीर को सोने की छड़ी का सहारा और गरीब को बेटे के कंधे का सहारा
शुरुवात और अंत दोनों शानदार , हार्दिक बधाई
आदरणीय अखिलेश जी सर, रचना को पसंद करने और सकारात्मक टिप्पणी देने के लिए हृदय से आभार
आदरणीय वीर मेहता जी सर, लघुकथा को पसंद करने और गहन समीक्षा के लिए हृदय से आभारी हूँ !
आदरणीय अर्चना त्रिपाठी जी, लघुकथा को पसंद करने और सकारात्मक टिप्पणी द्वारा मेरा मनोबल बढ़ाने हेतु हृदय से आभार आपका!
" घुन भरी बुनियाद "
"समधी जी ,कैंसर से पीड़ित मेरी सास का स्वास्थ दिन-ब-दिन गिरता जा रहा हैं कभी भी कुछ भी हो सकता हैं अतः बहू की बिदाई इस बार सम्भव नहीं हैं "शांति ने कहा
बिदाई की ना सुनते बहु बिफरते हुए "ये लोग कुछ भी कहे मुझे तो जाना ही हैं,चाहे कुछ भी हो"
बहू को समझाने का जितना प्रयास किया जा रहा था उतना ही वह बेसब्र हो रही थी और आवेश में पिता से कह उठी "आप वापस जाइए,मैं इन लोगो की जो गत बनाउंगी की ये मुझे रोकना टोकना भूल जाएंगे।"
अपमानित शांति ने परिवार की खुशहाली को ध्यान रखते हुए कहा "समधी जी ,ले जाइये अपनी बेटी।मेरे परिवार की बुनियाद में तो घुन लग ही चूका हैं।"
बड़ी मार्मिक और पत्थर दिल बहु के मनोभावों को दर्शाती लघुकथा हेतु बधाई स्वीकार करें आदरणीय अर्चना जी, ऐसा लगा जैसे लघुकथा पढ़ नहीं रहा, देख रहा हूँ|
"मैं इन लोगों की जो गत बनाउंगी..." बिलकुल ऐसे ही तैश में बोलते हैं कई युवा Iकथा झंक्झोरती है कि गलतियां कहाँ हो जाती हैं माँ बाप से I बधाई सशक्त रचना के लिए आ०अर्चना जी
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