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बहुत बहुत आभार आ. प्रतिभा जी।
जिस तरह आपसी प्यार, विश्वास, एकता, सहयोग व साहचर्य की बुनियाद पर आपने आज तक अपने रिश्तों को संभाल कर रखा है, उस बुनियाद को मैं और भी मजबूत करना चाहती हूं”- बहू ने दृढ़ता से कहा।
मीरा ने आगे कुछ न कहते हुए बस प्यार से बहू का माथा चूम लिया।-- बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति हुई है आदरणीया डॉ. नीरज sharma जी!
दिल से शुक्रिया आ. जवाहर लाल जी।
बहुत प्यारी सकारात्मक रचना आदरणीया डॉ नीरज शर्मा जी , बधाई.
तहे दिल से शुक्रिया आपका आ. विनय कुमार जी।
आपका तहे दिल से आभार आ. मदनलाल श्रीमाली जी रचना की सराहना करने के लिए।
सास बहु के रिश्तो में एक सकारात्मक भाव देते हुए एक बहुत ही प्रभावशाली प्रस्तुति दी है आ० नीरज शर्मा जी,आज के परिवेश में ऐसे लेखन की बहुत आवश्यकता है दिल से बधाई लीजिये|
हार्दिक आभार आ. राजेश कुमारी जी। आपकी सराहना ने मेरा मनोबल बढ़ा दिया।
( बुनियाद )
‘’मम्मी स्कूल को देर हो रही है जल्दी से मुझे तैयार कर दो”
‘’लेकिन बेटे, आज तुम स्कूल नही जा रहे हो’’
“क्यूँ मम्मी?”
“बेटे आज तुम्हारे मामा-मामी शादी के बाद पहली बार हमारे घर आ रहे हैं, और हम सब उनके साथ घूमने जायेंगे”
“लेकिन मम्मी, कल जब मैडम पूछेंगी राहुल स्कूल क्यूँ नही आये थे तो मैं क्या कहूँगा? और फिर आज मेरे क्लास टेस्ट की कॉपी भी मिलने वाली है”
“अरे बेटा, मैडम को बोल देना कि अचानक मेरी तबियत ख़राब हो गई थी, और टेस्ट कॉपी कल ले लेना, कहाँ भागी जा रही है”
“लेकिन मम्मी, हमारी बुक में तो लिखा है झूठ बोलना बुरी बात होती है, और मैडम भी हमें यही सिखाती हैं!”
“हाँ बेटा, तो मैं कौन सा तुझे झूठ बोलना सिखा रही हूँ, सिर्फ तुझे डांट से बचाने के लिये बहाना बनाने के लिये ही तो कह रही हूँ, और आज के जमाने मैं थोडा स्मार्ट होना भी जरुरी है !”
“ओ.के. मम्मी, फिर मैं भी तैय्यार हो जाता हूँ, स्कूल के लिए नही घूमने जाने के लिए”
“मेरा राजा बेटा, मम्मी की कितनी बात मानता है रे”
अगले दिन.............
“राहुल, स्कूल से आ गया बेटे, तेरे मैथ टेस्ट का क्या हुआ”
“मम्मी, मुझे 89 मार्क्स मिले हैं”
“वाओ.......शाबाश बेटे, चल अब जल्दी से आजा खाना खा ले”.
“ओ.के.मम्मी, आप मेरा बैग रख दीजिये”! बैग मम्मी को थमाते हुए राहुल हाथ धोने भागा बैग की चैन खुली हुई थी, उसमे से सारी किताबें निकल कर बिखर गईं किताबें समेटते हुए मम्मी की नजर हिंदी की किताब मै फंसी मैथ टेस्ट कॉपी पर पड़ी, सिर्फ 40 मार्क्स...! देखकर चहरे के हाव- भाव तेजी से बदलने लगे! इधर पंखे की हवा से किताब के पन्ने भी तेजी से पलटने लगे ! ‘परिवार बच्चे की प्रथम पाठशाला है’, ‘सदा सच बोलो’ जैसे सुवाक्य उनकी आँखों से गुजरते हुये आज मुँह चिढाते प्रतीत हो रहे थे !
( मौलिक व अप्रकाशित )
बहुत बढ़िया सन्देश आ० सचिन देव जी , हालाँकि ऐसा प्रतीत हो रहा है कि इस रचना के और लघु होने की गुंजाइश है|
आ. चंद्रेश कुमार जी, प्रयास पर आपकी सकारात्मक प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ ! आपके सुझावों को अगले प्रयासों मैं आत्मसात करने का भरपूर प्रयास रहेगा ! आपका हार्दिक आभार आदरणीय !
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