आदरणीय साथिओ,
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जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब,प्रदत्त विषय पर अच्छी लघुकथा लिखी आपने,बधाई स्वीकार करें ।
बहुत बहुत आभार आदरणीय समर जी।
जाने वाले कि जीवित रहते सही संस्कार नही मिले तो देहत्याग के पश्चात मिले या ना मिले क्या फर्क पड़ता हैं ।हार्दिक बधाई आपको
जी शुक्रिया आदरणीय।
हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।बेहतरीन लघुकथा।
जी शुक्रिया आदरणीय।
बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगा आदरणीय मनन सरजी ।
कम शब्दों में सुंदर रचना के लिये बधाई मनन कुमार जी। सादर।
मुसाफ़िरखाना - लघुकथा -
देश के महान नेता अंतिम साँसें ले रहे थे। उन्हें अस्पताल ले जाने की जगह उनके महलनुमा बंगले को गहन चिकित्सा इकाई में तब्दील कर दिया था। ऐसा इसलिये कि आम जनता को वास्तविकता का पता ना चले। देश में बगावत होने का खतरा था। चिकित्सा के साथ साथ महा मृत्युंजय मंत्र का जाप भी चल रहा था। संपूर्ण गोपनीयता बरती जा रही थी। फ़िर भी कुछ छुट पुट बातें लीक हो रहीं थीं। अफ़वाहें फैल रही थीं। आवास के आस पास पार्टी के खास लोगों का जमावड़ा लगा था। उत्तराधिकारी की खोज जारी थी। वातावरण में खुसुर पुसुर भी जारी थी। कोई कह रहा था कि निपट गया लगता है। कोई कह रहा था कि बड़ी मोटी चमड़ी है, इतनी आसानी से मरने वाला नहीं है।
उधर यमदूत आ चुके थे।
"चलिये नेताजी, आपका समय पूरा हो गया।"
"क्या बकवास कर रहे हो?अभी तो मेरा कार्यकाल शेष है।"
"हम आपके मंत्रित्व के कार्यकाल की बात नहीं कर रहे। हम आपके जीवन काल के सफ़रनामे की बात कर रहे हैं।"
"कौन हो तुम लोग?"
"हम लोग यमदूत हैं। आपको यमराज ने बुलाया है।"
"अभी तो मेरा बहुत व्यस्त कार्यक्रम है। बिल्कुल भी समय नहीं है। बाद में आना।"
"हम आपके अधीन नहीं है। हम केवल यमराज के आदेश मानते हैं?"
"अच्छा ठीक है, यह लो मेरा मोबाइल, मेरी बात कराओ अपने मालिक से।"
"आपके इस यंत्र से उनसे बात नहीं हो सकती।"
"तो जैसे हो सकती है वैसे करा दो।"
"ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।"
"एक काम करो, कुछ ले दे कर अभी इस मामले को टाल दो।"
"आपका आशय क्या है श्रीमान?"
नेताजी ने ढेर सारी नोटों की गड्डियाँ निकाल कर उनके आगे रख दीं।
"श्रीमान, हमारे यहाँ यह नहीं चलते।"
"तो सोना चाँदी ले लो।"
"महोदय यह प्रलोभन व्यर्थ है।"
"इस घड़ी को टालने का कोई तो मार्ग होगा? अभी मुझे कुछ अनिवार्य कार्य करने हैं। इधर उधर बहुत माल फ़ंसा पड़ा है। कुछ लोगों को भी ठिकाने लगाना है।"
उन यमदूतों में एक बुजुर्ग और कुछ समझदार सा दिखनेवाला यमदूत आगे आया,
"नेताजी, हम आपकी मंशा और परेशानी बखूबी समझ गये हैं। एक तरीका है। हम आपकी जगह किसी और को ले जा सकते हैं। ऐसा पहले भी भूल वश होता रहा है। भूल सुधारने में समय लगता है। तब तक लोग उसकी देह को जला देते हैं। तब वह भूल कागजों में ही दबा दी जाती है।"
नेताजी ने उस की युक्ति पर ठहाका लगाया,"भाई क्या दिमाग पाया है? तुम्हें तो मेरा सेक्रेटरी होना चाहिये।"
"श्रीमान, इसमें एक समस्या और है। हम जिस इंसान को लेकर जायेंगे वह बीमार हो और यमराज के आगे मुँह ना खोले।"
"ऐसा क्यों?"
"ऐसा इसलिये कि बीमार आदमी की लाश तुरंत जला दी जाती है। दूसरा यमराज को वह कुछ नहीं बतायेगा तो छान बीन में अधिक समय लगेगा।"
"तो क्या मेरी जगह किसी अबोध बच्चे को ले जा सकते हो?"
"अबोध बच्चे तो आपकी आयु के अनुपात में अधिक ले जाने पड़ेंगे।"
"वह कोई समस्या नहीं है। हमारा खुद का शिशु चिकित्सालय है। जितने बच्चे चाहिये उठा ले जाओ।"
मौलिक,अप्रकाशित एवम अप्रसारित
अदरणीय तेजवीर सिंह जी आप की लघुकथा के अंतिम वाक्य ने लघुकथा में जान डाल दी। हार्दिक बधाई इस शानदार लघुकथा के लिए ।
हार्दिक आभार आदरणीय ओम प्रकाश भाई जी।
जनाब तेजवीर सिंह जी आदाब,प्रदत्त विषय को सार्थक करती शानदार लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
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