अपना ग़म भूल के औरों को हंसा कर देखो
जलते दीयों से कभी आंख मिला कर देखो
जां न दो ; औरों के कुछ काम तो आ' कर देखो
हर घड़ी क्या ये शिकायत ही शिकायत करना
शुक्रिया भी तो किसी शै का अदा कर देखो
अपनी तक़दीर को ऐसे भी बदल सकते हो
जब लगे चोट ... हंसो ; दर्द हो ... गा' कर देखो
हार अंधेरों से ज़माने में कभी मत मानो
एक तीली ही सही... आग जला कर देखो
काम इंसां के लिए कौनसा नामुमकिन है
अपनी कोशिश से हिमालय को गला कर देखो
कुछ तबीअत से करो आप हुनर आएगा
गुनगुनाओ , अजी कुछ मौज में आ' कर देखो
ख़ुद को तनहा न समझ लेना कभी ऐ यारा !
हम कहां दूर हैं... आवाज़ लगा कर देखो
है मुहब्बत भी , है महबूब भी , गुल भी , बू भी
जिंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो
प्यास बुझ जाएगी सदियों की , कई जन्मों की
जामे-उल्फ़त तो निगाहों से पिला कर देखो
आज राजेन्द्र मुहूरत है भला ...आ'के मिलो
आ' न पाओ तो हमें आज बुला कर देखो
(२)
नेट टीवी में भी भेज़े को खपा कर देखो
ज़िंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो
क्या ज़रूरी है कि हर काम का कुछ हासिल हो
हरक़ते-फ़ालतू में वक़्त गंवा कर देखो
बेशरम वोट जो अब मांगने घर आएं तो
कामचोरों के दो झापड़ तो लगा कर देखो
हॉकियां भाई लिये’ आए हैं महबूबा के
उनको गुलकंद मिला पान खिलाकर देखो
भर कुलांचें वो हिरनिया तो गई दूर शहर
भैंस के आगे ही अब बीन बजा कर देखो
सास मां जौंक-सी घर बीस दिनों से चिपकी
उनकी बेटी पे अभी रोब जमा कर देखो
बाप के कद से बड़ा होने पे बेटा बोला
डैड ! अब हाथ तो क्या डांट लगा कर देखो
ख़ूं के रिश्तों में हैं टंटे ,हैं झमेले-लफड़े
ऐरों-ग़ैरों से ज़रा पींगें बढ़ा कर देखो
हैं बिजी चैटिंग में ‘मैम’ दिवाली के दिन
कहती बच्चों से कि कैंडल तो जला कर देखो
भाई लोगों ! लिखे राजेन्द्र उसे ख़ूब कहो
क्यों बुरा करना किसी का भी भला कर देखो
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//कवि-राजबुँदेली जी //
तुम पुरखों की दौलत न मिटा कर देखो !
कभी खुद भी तो चार पैसे कमा कर देखो !!१!!
बिगड़ी है बात अपनों से बना कर देखो !
दिलों को दिल से फ़िर मिला कर देखो !!२!!
पत्थर-दिल पिघल जाते गमे-मज़मून से,
अपना हाले-दिल उनको भी सुना कर देखो !!३!!
सच्चा दोस्त होगा ग़र तो ज़रूर आयेगा,
कभी उसको मुसीबत मे बुला कर देखो !!४!!
तुम्हें ज़िंदगी जीने का सलीका आ जायेगा,
ज़िंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो !!५!!
मौत की परिभाषा भी समझ जाओगे "राज़",
बस ज़िन्दगी की सब सांसें घटा कर देखो !!६!!
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//इमरान खान 'इमरान'//
(१)
अपने हाथों से भी तक़दीर बना कर देखो,
ज़िन्दग़ी क्या है किताबों को हटा कर देखो ।
वो सितमगर है तो लाखों हैं यहाँ दिल वाले,
अपनी आँखों में नये ख्वाब सजाकर देखो।
हमें खुद ही तेरी महफिल से चले है जाना,
हमसे दामन तो ये इक बार बचाकर देखो।
साहिबे ज़र है वो हर शख्स लगा लेगा गले,
हम गरीबों को भी सीने से लगाकर देखो।
खार करते हैं वफा फूल जफा देते हैं,
अपने गुलज़ार में काँटें भी उगाकर देखो।
हमको तुमसे न कहीं ये के जुदा कर डाले,
अब तो दीवारे अना यार ढहाकर देखो,
वक्त कैसा भी है 'इमरान' कहाँ बदलेगा,
देखना है तो मुझे और सताकर देखो।
(२).
मेरे जज्बात से मफहूम बनाकर देखो,
मेरे रुखसार से दीवान सजाकर देखो,
खुली ज़ुल्फें मेरी मरकज़ हैं ये उनवानों का,
जिन्दगी क्या है किताबों को हटाकर देखो।
मैं अभी मीना कुमारी से कोई कम तो नहीं,
तुम लगा टीन का चश्मा तो हटाकर देखो।
आँख पर आपके भी घेरे नज़र आ जायें,
मेरे चूल्हे में ज़रा आग जलाकर देखो।
मेरे बेलन का निशाना भी नहीं चूकेगा,
बस मुझे पोर ज़रा आप लगाकर देखो।
मैं तो हर रोज़ करूँ आपके सर की मालिश।
मेरा सर भी तो कभी आप खुजाकर देखो।
अजी छीके पे रखा है वहीं सारा खाना,
हाथ अपने भी कभी आप हिलाकर देखो।
(३)
अब तो दरिया ए सुकूं चैन बहाकर देखो,
गले लगकर सभी हथियार गिराकर देखो।
कोई मज़हब नहीं कहता है के मारो काटो,
चाहे दुनिया का कोई दीन उठाकर देखो।
हिन्दू हो मुसलमां हो या फिर और कोई,
नूर के बन्दे हैं गहराई में जाकर देखो।
ज़माने का हर इक रंग किताबों में नहीं,
जि़न्दगी क्या है किताबों को हटाकर देखो।
गर सुकूं चाहिए तो ये मेरा कहना मानो,
झूठ से यार कभी तुम न कमाकर देखो।
शुरू ही में बने बात ज़रूरी तो नहीं,
है ये आगाज़ के अन्जाम में जाकर देखो।
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//श्री सतीश मापतपुरी जी//
(१)
हुस्न क्या चीज है चिलमन को हटा कर देखो.
इश्क होता है क्या ये दिल को लगा कर देखो.
कौन अपना है और कौन पराया है यहाँ.
देखना है तो मुश्किल में बुलाकर देखो.
दिली सकून गर चाहते हो पाना तो.
किसी अनाथ को सीने से लगा कर देखो.
डिग्रियां ज़िन्दगी का फलसफा नहीं होती.
ज़िन्दगी क्या है किताबों को हटा कर देखो.
दो को आपस में लड़ाना बड़ा आसां होता.
बात तो ये है लड़ते को मिला कर देखो.
(२).
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//श्री सौरभ पाण्डेय जी//
हो सके प्यार भरा हाथ बढ़ा कर देखो
बात सुनता है, उसे पास बिठा कर देखो ||1||
तुम वही हो न जो व्यापार किया करते हो ?
इक मेरी बात सुनो, दाम हटा कर देखो ||2||
वो दिखें शाद सदा, बज़्म की रौनक भी वो
सा’ब को एक दफ़ा पास बुला कर देखो ||3||
था दिखावा, उसका मान-प्रतिष्ठा देना
दरअसल क्या वो बला है, अब आ कर देखो ||4||
इस मुहब्बत में सनम जान दिया करते हैं
ये नहीं ठीक, हमें आँख चुरा कर देखो ||5||
रंग है, प्यार है, अहसास भरा दिल भी है
ज़िन्दगी क्या है किताबों को हटा कर देखो ||6||
एक हम हैं जो खुले आम लुटा करते हैं
है फ़कीरों की अलग जात, लुटा कर देखो ||7||
उसके हिस्से न जगी सुब्ह, न रौशन घड़ियाँ
’ग़र मिली रात उसे, रात सजा कर देखो ||8||
आग-शोलों को हवा कर, बहकाना आसाँ
इक बियाबान हो आबाद, दुआ कर देखो ||9||
खूबसूरत यदि ये बात लगी है मेरी
हर्फ़ में कौन बसा ’ध्यान’ लगा कर देखो ||10||
रौशनी खेल रही, आज हवा में ’सौरभ’
है फ़िज़ा रंग भरी, आँख उठा कर देखो ||11||
---------------------------------------------------------
//डॉ बृजेश त्रिपाठी जी//
राह-ए-नेकी पे क़दमों को बढ़ा कर देखो
रब की रहमत पर ईमान तो ला कर देखो
उसूलों को न केवल क़ैद कर रख दो किताबों में
जिंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो....
ये फीकापन हमारी जिंदगी में बढ़ रहा यूँ ही
ज़रा इंसानियत को भी इसमें बसा कर देखो
ये जो दीवानगी की मस्त रंगीनी हुई गुम है
किसी ग़मगीन को ज़रा खुलके हंसा कर देखो
तुम्हारी फांकेमस्ती में अजब एक मोड आएगा
किसी भूखे को अपने साथ तो खिला कर देखो
चुन रहे हो जो ये गुल सिर्फ अपने खातिर
बकाया खार भी गुलशन से हटा कर देखो
जिंदगी होगी सुकूनों से लबरेज मगर
अपने इल्मों को ज़रा जर से बचा कर देखो
सुख नहीं हैं किसी सुख के संसाधन में
मन से खुद को किसी का बना कर देखो
बड़े शायर बने फिरते हैं हम बियांबान में
ओ.बी.ओ. में ज़रा बागी को हंसा कर देखो
---------------------------------------------------------
//श्री गणेश बागी जी//
दुश्मनी ख़त्म करो हाथ मिला कर देखो,
दोस्ती चीज़ है क्या प्यार जता कर देखो |
दूर होगा पल भर में अन्धेरा साथी,
दीप बस एक तबीयत से जला कर देखो |
मौत आनी है किताबों में पढ़ा है यारो,
जिन्दगी क्या है किताबों को हटा कर देखो |
जानना हो गर किसे कहते है खुशियाँ,
पेट भर कर किसी भूखे को खिलाकर देखो |
धाम चारों मिल जाये घर मे ही "बागी",
बाप औ माँ के जरा पाँव दबा कर देखो |
-------------------------------------------------
//श्री संजय मिश्रा 'हबीब' जी//
कौन है उसके सिवा तुम आजमा कर देखो।
एक रिश्ता आसमां से भी बना कर देखो।
जिंदगी जो दी खुदा ने बे-हिसी में न गवां,
जिंदगी को जिंदगी सी ही बिता कर देखो।
इश्क ही है इस जमी की नीव और धडकनें,
चार साँसे जो मिली है इश्क गा कर देखो।
आप ये क्यूँ सोचते हैं सच न याँ जीतेगा?
एक लम्हा सत्य के संग पा मिला कर देखो।
चार अक्षर बांच कर के जिंदगी को न समझ,
जिंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो।
आ उठा कर बांह झगडे भूल सारे गैरअहम,
आज बिछड़ों को ज़रा सीने लगा कर देखो।
कौन मेरा? है अज़ब, इस बात में तू न उलझ
कौन मैं? इस प्रश्न का उत्तर बता कर देखो।
आसमा में आज हबीब रंग दोस्ती भर दी,
यह नज़ारा खूबसूरत सर उठा कर देखो।
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//श्री दिलबाग विर्क जी//
लुत्फ तुम रंगीं नजारों के उठा कर देखो
जिंदगी क्या है, किताबों को हटा कर देखो ।
दुश्मनी तो खुद-ब-खुद ही छूट जाएगी फिर
दुश्मनों को प्यार से बस तुम बुला कर देखो ।
है खुशी तो हाथ में खुद के, कहाँ ढूँढो तुम
गम भुला, जिंदादिली को आजमा कर देखो ।
बदल जाएगा तरीका ' विर्क ' फिर जीने का
ना कहें चोरी इसे, तुम दिल चुरा कर देखो ।
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//आचार्य संजीव सलिल जी//
(१)
रात के गर्भसे, सूरज को उगा कर देखो.
प्यास प्यासे की 'सलिल' आज बुझा कर देखो.
हौसलों को कभी आफत में पजा कर देखो.
मुश्किलें आयें तो आदाब बजा कर देखो..
मंजिलें चूमने कदमों को खुद ही आयेंगी.
आबलों से कभी पैरों को सजा कर देखो..
दौलते-दिल को लुटा देंगे विहँस पल भर में.
नाजो-अंदाज़ से जो आज लजा कर देखो..
बात दिल की करी पूरी तो किया क्या तुमने.
गैर की बात 'सलिल' खुद की रजा कर देखो..
बंदगी क्या है ये दुनिया न बता पायेगी.
जिंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो.
(२)
रोज रोजे किये अब चाट चटा कर देखो.
खूब जुल्फों को सँवारा है, जटा कर देखो..
चादरें सिलते रहे, अब तो फटा कर देखो..
ढाई आखर के लिये, खुद को डटा कर देखो..
घास डाली नहीं जिसने, न कभी बात करी.
बात तब है जो उसे, आज पटा कर देखो..
रूप को पूज सको, तो अरूप खुश होगा.
हुस्न को चाह सको, उसकी छटा कर देखो..
हामी भरती ही नहीं, चाह कर भी चाहत तो-
छोड़ इज़हार, उसे आज नटा कर देखो..
जोड़ कर हार गये, जोड़ कुछ नहीं पाये.
आओ, अब पूर्ण में से पूर्ण घटा कर देखो..
फेल होता जो पढ़े, पास हो नकल कर के.
ज़िंदगी क्या है?, किताबों को हटा कर देखो..
जाग मतदाता उठो, देश के नेताओं को-
श्रम का, ईमान का अब पाठ रटा कर देखो..
खोद मुश्किल के पहाड़ों को 'सलिल' कर कंकर.
मेघ कोशिश के, सफलता को घटा कर देखो..
जान को जान सको, जां पे जां निसार करो.
जान के साथ 'सलिल', जान सटा कर देखो..
पाओगे जो भी खुशी उसको घात कर लेना.
जो भी दु:ख-दर्द 'सलिल', काश बटा कर देखो..
(३).
ज़िंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो.
चाँद पाना है तो तारों को सजा कर देखो..
बंदगी पूजा इबादत या प्रार्थना प्रेयर
क़ुबूल होगी जो रोते को हँसा कर देखो..
चाहिए नज़रे-इनायत हुस्न की जो तुम्हें
हौसलों को जवां होने दो, खुदा कर देखो..
ढाई आखर का पढ़ो व्याकरण बिना हारे.
और फिर ज्यों की त्यों चादर को बिछा कर देखो..
ठोकरें जब भी लगें गिर पड़ो, उठो, चल दो.
मंजिलों पर नयी मंजिल को उठा कर देखो..
आग नफरत की लगा हुक्मरां बने नीरो.
बाँसुरी छीन सियासत की, गिरा कर देखो..
कौन कहता है कि पत्थर पिघल नहीं सकता?
नर्मदा नेह की पर्वत से बहा कर देखो..
संग आया न 'सलिल' के, न कुछ भी जाएगा.
जहां है गैर, इसे अपना बना कर देखो..
-----------------------------------------------------
//श्री राकेश गुप्ता जी//
(१)
प्यार से भरे हुए दिलों में है क्यूँकर नफरत ,
खुश जो रहना है नफरत को भुला कर देखो,
हालाते तंग बदल जायेंगे बस कुछ पल में,
तुम विचारों में जरा आग लगा कर देखो,
भूल जाओगे गरीबी की लिखनी परिभाषा,
किसी गरीब घर आलू ही खा कर देखो,
(योजना आयोग ओर आहलू वालिया जैसे लोगों के लिये)
कितना आसान है गरीबी की इज्जत लेना,
जो है गैरत घर गैर की बेटी का बसा कर देखो,
सारे जहां का सुकूं मिलेगा पल भर में,
किसी भूखे को खाना तो खिला कर देखो,
पत्नी के कदमों में स्वर्ग दिखता तुम्हे,
कभी माँ बाप के कदमों में सर झुका कर देखो,
दुश्मनी की बातों में बहुत दम है माना,
प्यार की ताकत भी आजमा कर देखो,
मानवता की बड़ी बातों का दम भरने वालों,
किसी अनाथ को घर अपने तुम लाकर देखो,
माना है किताबों में फलसफा ए हयात,
ज़िन्दगी क्या है किताबों को हटा कर देखो,
रंज दिल के मिटेंगे पल में "दीवाना"
प्यार के गीत तुम दिल से तो गा कर देखो,
गजल लिखने का शउर माना मेरे पास नही,
मेरे भावों की गहराई में जाकर देखो,
(२)
नजर से नफरत के नकाबों को हटा कर देखो,
है प्यार ही प्यार मेरी आगोश में आ कर देखो //1//
दिल में अंदर ही अंदर सुलगने वालों,
आग दिल की कभी बाहर तो ला कर देखो //2//
जमीदोज पल में हो जायेंगे ये तख्त ओ ताज,
एक ठोकर तो तबियत से लगा कर देखो //3//
तू अकेला भी चलेगा तो बनेगा मेला,
क्रान्ति गीत पुर आवाज़ में गा कर देखो //4//
सहरा में जरूर आयेगा आबे जम जम,
कुदाल को तो जरा हाथ उठा कर देखो //5//
सितमगर मुंह छिपाएंगे जाके चादर में,
अपनी कमजोरी को ताकत तो बना कर देखो //6//
दुश्मनी छोड़ने की ठान भी लूं मैं लेकिन,
सांप (पाकिस्तान) डसना नहीं छोड़ेगा दूध पिला कर देखो //7//
मौत को बांटने का तुम पे सुरूर छाया है,
अपना लहू देके कोई जान बचा कर देखो //8//
पैसों से खरीदी है बड़ी शानो शौकत,
वक्त मरने के चलो जान मंगा कर देखो //9//
पाप हर हाल में तुझको यहीं भोगने होंगे,
चाहे नर्मदा या की गंगा में नहा कर देखो //10//
वक्ते रुखशत ना तेरे साथ कुछ भी जाएगा,
चाहो तो कफन में जेब सिला कर देखो //11//
मरना सबको है मौत जिन्दगी की सच्चाई,
लाख अम्रत को पियो या की पिला कर देखो //12//
है गजल लिखने ओ गाने का मजा "दीवाना"
अपने लिखे को तरन्नुम के संग गा कर देखो //13//
माफ़ करने का मजा जानना अगर चाहो,
मुझसे नादान की गलती को भुला कर देखो //14//
है रौशनी से जगमगाते महल दोमहले,
अँधेरी आँखों में दो दीपक ही जला कर देखो //15//
किताबें ही सिखाती जीने का सलीका लेकिन,
जिन्दगी क्या है किताबों को हटा कर देखो //16//
है रौशनी से जगमगाते महल दोमहले,
अँधेरी आँखों में दो दीपक ही जला कर देखो //17//
धूल नफरत की दिलों में जो जमा रख्खी है,
पल दो पल को धूल नफरत की हटा कर देखो //18//
पत्नी के पल्लू में स्वर्ग हमको नजर आता है,
माँ के आंचल मैं है जन्नत सर छुपा कर देखो //19//
जिन्दगी फक्त किताबों से कहाँ चलती है,
जिन्दगी क्या है किताबों को हटा कर देखो //20//
खुद की कथनी को करनी तो बना कर देखो,
कितना प्यारा है, तराना ऐ सच गा कर देखो //21//
खुद के घर के उजाले को ना समझ सूरज,
कभी बियाबां में चिरागां को जला कर देखो //22//
रोज शहीदों की शहादत को भुनाने वालों,
है हिम्मत तो राहे भगत पे आ कर देखो //23//
बत्तीस रूपये की बातों से हमें बहलाते हो,
बत्तीस रूपये में पटाखे ही चला कर देखो //24//
लाखों रूपये के तुम्हारे हैं घरों में सेंडल,
बत्तीस हजार में एक बिटिया ही ब्याह कर देखो //25//
जिन्दगी कितनी खुशगवार प्यारी है रंगी है,
मौत को पल के लिए दोस्त बना कर देखो //26//
ये गिले शिकवे ये दूरी, हैं बेकार "दीवाना",
पास आओ मेरी बांहों में समा कर देखो //27//
सारी दुनिया की दौलत जो चाहो पाना,
किसी रोते हुए बच्चे को हंसा कर देखो //28//
अपने वजूद पे दुनियां में इतराने वाले,
तेरा वजूद है क्या सर काँधे पे झुका कर देखो //29//
पूरी दुनिया पे राज करने के तलवगार नादाँ,
दिल में लोगों के हुकुमत तो जमा कर देखो //30//
जो जानना चाहते हो जिन्दगी की सच्चाई,
जिन्दगी क्या है किताबों को हटाकर देखो //31//
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//श्री अरविन्द चौधरी जी//
ज़िन्दगी क्या है, किताबों को हटा कर देखो
आसमाँ आबोहवा से दिल लगा कर देखो
रक्स ही करते रहे हम जिंदगी के खातिर,
पर कभी तो ज़िंदगी को भी नचा कर देखो
ग़म ख़ुशी की मौज पर है डगमगाती कश्ती,
तुम ख़ुदा को नाख़ुदा अपना बना कर देखो
पैर में काँटा लगा तो है परेशां होना ,
अब किसीका दर्द सीने में छुपा कर देखो
हाल अपना बारहा तुमने सुनाया रो कर,
आज गैरों के लिए आँसू बहा कर देखो
छोडिये अपना पराया ,क्या दिया अपनों ने ?
गैर से भी प्यार अपना तुम जता कर देखो
जायज़ा दिल का लिया तो बेवफ़ा निकला वो,
ज़ीस्त में यूं प्यार का जादू जगा कर देखो....
--------------------------------------------------------
//श्री हरजीत सिंह खालसा जी//
(१).
बात दिल की दिल से कभी लगाकर देखो,
ज़िन्दगी क्या है किताबों को हटाकर देखो.....
वक़्त से बेहतर मरहम है तुम्हारे हाथ में,
इन ज़ख्मो को बस प्यार से सहलाकर देखो.....
अपने गिरेबां पर तोहमते लगाता कौन है,
चाहो तो खुद पर ही इसे अजमाकर देखो.....
दिन दिवानो के कितने मुश्किल से कटते है,
कोइ दिन साथ जरा उनके बिताकर देखो...
जीतने की फिर कभी तमन्ना न करेगा,
उसपे अपनी हर जीत को लुटाकर देखो.....
(२)
दीप कोई सच का दिल में जलाकर देखो,
आइने से हो सके तो नजर मिलाकर देखो......
कितने बरसो से देखते है रस्ता माँ-ओ-बाप
भटके लोगो घर अपने वापस आकर देखो......
कब है आता पलटकर जवानी का जलवा
लाख बालो मे खिजाब तुम लगाकर देखो
इस तरह है खुश होकर के जिया कौन यहाँ,
आंसुओ को मन का मीत बनाकर देखो...
पाप पुण्य सब करमो का खेल है यूँ जानो,
ज़िन्दगी क्या है किताबों को हटाकर देखो.....
(३)
राय तुम मेरे जज़बातों से मिलाकर देखो,
जां दे दूंगा, भले ही मुझे आजमाकर देखो....
चाँद छूने की गर तमन्ना तुम्हारी हो रही,
उसके सादे चेहरे को चाँद सा सजाकर देखो.....
जीने के लिए जरुरी नहीं है जिन्दा ही रहना,
आरजुओं में किसी की खुद को मिटाकर देखो....
आज जब वो अपना सा लग रहा है तुमको,
साथ हमेशा रहे वो कसम खिलाकर देखो.....
जान जाओगे अपने आप चलो जीते चलो,
ज़िन्दगी क्या है किताबों को हटाकर देखो.....
--------------------------------------------------------
//श्री आलोक सीतापुरी जी//
फूल की चाह में काँटों से निभा कर देखो
सोने वालों को नहीं खुद को जगा कर देखो
ग़मज़दा रह के ज़माने को हंसा कर देखो
हौसला हो तो ये अंदाज़ बना कर देखो
ज़िंदगी खुद ही सहीफ़ा है भरी दुनिया में
ज़िंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो
झुर्रियां लोगों के चेहरों की गिन रहे हो क्यों
अपना रुखसार भी आईना उठा कर देखो
रोज तर माल उड़ाते हो मुफ्त का साहब
ठीकरों को जरा दांतों से चबा कर देखो
क्या अज़ब है कि तुम्हें वक्त वली कहने लगे
जो हैं गुमराह उन्हें राह पे ला कर देखो
लाख परदेश में 'आलोक' का ये वादा है
रूबरू हूँगा बस आवाज़ लगा कर देखो
--------------------------------------------------
//श्री ज्ञानेंद्र त्रिपाठी जी//
जिंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो;
मोहब्बत क्या है किसी को अपना बनाकर देखो.
सफ़र जिंदगी का है नये रास्तों से ही;
जिंदगी क्या है,नये रास्ते बनाकर देखो.
समंदर के सीने मे मौज है कितनी;
समंदर के सीने मे तुम समाकर देखो.
तुम समझ न सकोगे दूरियो की तड़प को;
अंधेरा होता है क्या, रोशनी को हटा कर देखो.
आग होती है क्या, हर तरफ धुआँ सा लगता है;
जलन होती है क्या, आग सीने मे लगाकर देखो.
वो 'मुसाफिर' से पूछते है की हाले दिल क्या है;
हालेदिल क्या है, ये मुझसे दिल लगाकर देखो.
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//श्री शेषधर तिवारी जी//
आप अपनों से कभी आँख मिला कर देखो
बात होती है अयाँ, लाख छुपा कर देखो
दिल के ज़ज्बात तो आँखों से बयां होते हैं
देखना है तो ज़माने से बचा कर देखो
खुद जो दरिया के किनारे से गुजर जाते हैं
मुझसे कहते हैं समंदर में नहा कर देखो
जो भी पढ़ते हो हमेशा वो नहीं होता सच
जिन्दगी क्या है किताबों को हटा कर देखो
दिन कहीं बीते मगर रात को घर ही भाये
शाख पर लौटे परिंदों को उड़ा कर देखो
ख़ामुशी से भी कहानी तो बयां होती है
आँख से उनकी ज़रा आँख मिलाकर देखो
लाख नजरों को चुराएँ वो मगर हारेंगे
बंद आँखों से भी काजल तो चुराकर देखो
दिल तुम्हारा हो उदासी से भरा तो बढ़कर
एक बच्चे को कलेजे से लगाकर देखो
खून जो चूस रहे मौत उन्हें भी आती
तुम नमक जोंक के ऊपर तो गिरा कर देखो
गम खुशी एक ही सिक्के के हैं दोनों पहलू
गुड्डे गुड़ियों का कभी ब्याह रचाकर देखो
चाँद नजदीक नहीं है न कभी आयेगा
लाख महलों में सितारों को सजाकर देखो
मंजिलें सिर्फ ख्यालों से नहीं मिलती हैं
ख्वाब में चाहे सितारों को बुझाकर देखो
आँख में अश्क न हों और खुशी भी छलके
हार जाओगे, कभी दांव लगाकर देखो
प्यार गर करते नहीं आँख चुराते क्यूँ हो
तुम मेरे दिल से कभी दूर तो जा कर देखो
एक लम्हे में ही कर लेती ये रिश्ता कायम
तुम निगाहों से निगाहें तो मिलाकर देखो
तेरी साजिश ने किया मुझको भले ही तनहा
मेरे साए को कभी मुझसे जुदा कर देखो
बद्दुआओं के बदल मैंने दुआएं दी हैं
आब में लगती नहीं आग, लगाकर देखो
ये बड़ी बात नहीं, अपनों को अपना माना
गैर इंसान को भी अपना बनाकर देखो
फूल खिलते हैं बहारों में, ये है जग जाहिर
बात तो तब है खिजाओं में खिला कर देखो
यूँ ही परवाज़ नहीं होती, समझ पाओगे
हाँथ में टूटा हुआ पर तो उठाकर देखो
सुख में बदलेंगे सभी दुःख जो ज़माना देगा
सुख मिले जो भी उन्हें सब में लुटाकर देखो
कौन पायेगा मिटा तुमको खुदा के बन्दे
हर निशां पाँव का अपने ही मिटाकर देखो
बात रो रो के कहोगे तो असर क्या होगा
बात सच्ची है तो हिम्मत से बता कर देखो
बचपना कह के जिन्हें माफ़ किया करते हो
अब उन्हें उम्र की सीढ़ी पे चढ़ा कर देखो
----------------------------------------------------
//श्री अम्बरीष श्रीवास्तव जी//
(१)
प्यार से सब से मिलो दिल से लगा कर देखो,
ज़िन्दगी क्या है किताबों को हटा कर देखो.
घाव देता है हमीं को ही हमारा नश्तर,
सारी दुनिया को फ़लसफ़ा ये सुना कर देखो.
है बड़े काम की कुदरत इसे कर लो सज़दा,
साफ़ हों आबोहवा पेंड़ लगा कर देखो.
ये खिली धूप तजुर्बे की हुनरमंदी है,
छोड़ ए सी की हवा धूप में जा कर देखो.
यार दिल में है मोहब्बत तो है शर्माना क्या,
छोड़ शर्मो-हया अब तीर चला कर देखो.
ज़िन्दगी चार दिनों की है संवर जायेगी,
जो हैं भटके उन्हें हमराह बना कर देखो.
गज़ब की चाह है दौलत की अकलमंदी क्या,
मार इज्ज़त की ज़रा यार से खा कर देखो.
रूप नफरत का जहां में न नज़र आयेगा,
दुश्मनी दूर करो प्यार बढ़ा कर देखो.
तेरा दुश्मन जा छिपा है तेरे दिल में यारा,
नाज़ नखरों को जरा दिल से फ़ना कर देखो.
तूने खुद को ही अभी आज कहाँ पहचाना,
जो भी है सामने आईना बना कर देखो.
सारी दुनिया है तेरी आज कहें ये 'अंबर',
दीप दिल में भी मेरे यार जला कर देखो.
(२).
दूर वीराने में एक गाँव बसा कर देखो,
प्रीति का गीत वहाँ आज ये गा कर देखो.
चार दिन में ही चमत्कार यहाँ कैसे करें,
सोंच लो आज ये घर-बार चला कर देखो.
मील मिड डे कहाँ गांवों में मिले बच्चों को,
भूखे बचपन को ऐ सरकार खिला कर देखो.
खार में फूल खिलें और कमल कीचड़ में,
सारा भारत है यहाँ गाँव में आ कर देखो.
चाँद का चेहरा हुआ आज जमीं पर रोशन,
ज़िन्दगी क्या है किताबों को हटा कर देखो.
दीप का नेह मिले ज्योति तभी आ के जले,
प्रीति से ज्योति सभी आज जगा कर देखो.
राह में भूला कोई कैसे संभालें 'अम्बर',
या खुदा आ के कोई हाथ लगा कर देखो.
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//श्री अश्विनी रमेश जी//
जिन्दगी क्या है किताबों को हटाकर देखो
असलियत क्या है नकाबों को हटाकर देखो
हो जिसे आरज़ू उसको मिटाकर देखो
रोशनी इल्म की फ़िर यूं जलाकर देखो
नफरतों की दिवारों को तोड़कर यूं
मोह्बतों के घरौंदों को बनाकर देखो
मुफलिसी की जिन्दगी से जीतकर तुम
बेहतर सी जिन्दगी को तुम बिताकर देखो
ख्याल को कौमी बखिदमत के लिये तुम खुद
दिल ज़हन से अब वतन के लिए मिटाकर देखो !!
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//श्री अविनाश बागडे जी//
(१)
अपनी उम्र से ज़िन्दगी यूँ घटा कर देखो.
जिंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो.
कशिश क्या होती है पल में जान पाओगे.
किसी चुम्बक को लोहे से सटा कर देखो.
पूरी फौज खड़ी हो जाएगी पल भर में.
किसी चींटी को शहद चटा कर देखो.
चारदीवारी के बीच कोई सिसकता होगा
कोई दरवाज़ा तो खट-खटा कर देखो.
तुम्हारा भविष्य भी खूब संवर जायेगा
किसी तोते को ज्योतिष रटा कर देखो.
तुम्हे भी मिल जायेगा तिहाड़ का रुतबा
नई-दिल्ली का टिकट भी कटा कर देखो.
इंतजार किया करती है वो रात-रात भर.
तुम भी बीबी के लिए छट-पटा कर देखो.
(२)
झरने की तरह खुद को यूँ ही बहा कर देखो.
ज़िन्दगी क्या है किताबों को हटा कर देखो.
रंगों का संसार नया-नया सा रच देंगे.
नई सोच को कून्चियाँ थमा कर देखो.
बिज़लियाँ फकत आसमान से गिरती नहीं.
किसी नाजनीन को चिलमन उठा कर देखो.
किसी और से पूछने से बेहतर है जनाब.
आईने को अपने सामने बिठा कर देखो.
रूह तलक भीगने का अहसास दे जायेगा.
बारिश की पहली फुहार में नहा कर देखो.
इन्द्र-धनुष भी पानी मांगता फिरेगा.
रोते-रोते जरा सा मुस्कुरा कर देखो.
जीवन की आपा-धापी और भागम-भाग से.
कुछ पल अपने लिए भी चुरा कर देखो.
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Tags:
धन्यवाद अरुण भाई जी !
ग़ज़लें खूब पसंद आई
शुभ आयोजन के लिए सभी को हार्दिक बधाई
शुक्रिया वीनस जी !
कुछ दीपावली की छुट्टी
कुछ जिम्मेदारिओं के पीछे पड़े भूत
कुछ नेट की धीमी साथ छोडती गति
कि इस बार तरही में शामिल नहीं कर पाया अपनी ग़ज़ल
iska afsos hai !! ek ghazal likhi thi use apne blog par rakh chhoda hai !! taki sanad rahe !!
तरही मुशायरे के सभी शायरों की समस्त रचनाओं का एक स्थान पर संकलित होना महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ की तरह होता है. एक स्तरीय आयोजन की सफलता और संतुष्टिकारक समापन के उपरांत संचालक महोदय श्री योगराज भाईसाहब और पूरी कार्मिक टीम को सादर बधाइयाँ.
सादर धन्यवाद !
बधाई हो ...योगराज भाई ....ओ.बी.ओ. के एक और सफल आयोजन और उसके तुरंत बाद आयोजन की सारी गज़ले एक ही स्थान पर संकलित करने के लिए बधाई हो ...
सादर धन्यवाद डॉ त्रिपाठी जी !
सभी ग़ज़लों को एक साथ संकलित करके प्रस्तुत करना एक अत्यंत श्रमसाध्य व दुष्कर कार्य है ! इस महती कार्य हेतु हार्दिक बधाई ! सादर :
आपका बहुत बहुत शुक्रिया अम्बरीष भाई जी !
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