ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉटकॉम के स्थापना दिवस के महत्वपूर्ण अवसर पर ओ बी ओ के तत्वावधान में दिनांक ०१-अप्रैल २०१२ को दोपहर १२-०० बजे से ३-०० बजे के मध्य काव्य समारोह का आयोजन सीतापुर के स्थानीय महावीर उद्यान (तिकोनिया पार्क) के मध्य स्थित वृत्ताकार खुले काटेज में किया गया |
इस कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार सोम दीक्षित जी ने की, मुख्य अतिथि कुंवर आलोक सीतापुरी जी थे तथा विशिष्ट अतिथि श्री राधेश्याम मिश्र जी थे | इस कार्यक्रम का संचालन इं० अम्बरीष श्रीवास्तव ने किया| अध्यक्ष, मुख्य अतिथि व विशिष्ट अतिथि द्वारा दीप प्रज्वलन के उपरांत कार्यक्रम का प्रारंभ ज़नाब मुजीब सीतापुरी जी की सरस्वती वंदना से हुआ |
इस अवसर पर ओ बी ओ सदस्य श्री जीत अवस्थी ने अपनी हास्य-व्यंग्य से परिपूर्ण रचना पढ़ते हुए कहा
“ तुम हमते बढ़के गुंडा हौ हम तुमते बढ़के गुंडा हन..
तुम हमका आँखी घूरि रहेउ हम नीमसार के पंडा हन.....”,
ओ बी ओ सदस्य श्री वीरेंद्र तिवारी ने शृंगार के स्वरों को जीवंत करते हुए कहा,
“महबूब आ भी प्यार का इकरार और कर
धडकन पुकारती है अभी प्यार और कर.
दावा दवा ए दर्द का मत कर तुझे कसम,
कुछ और जख्म दे अभी बीमार और कर.."
प्रज्ञाचक्षु आदरणीय कुँवर ‘आलोक सीतापुरी’ ने ओ बी ओ पर अभी हाल में ही कही गयी अपनी तरही गज़ल के माध्यम से कहा ..
"हलाल रोटी हलाल पानी अगर किसी के बदन में आये,
तो गैर मुमकिन है नाम उसका कभी किसी बदचलन में आये.
"इस अवसर पर लखनऊ से पधारे श्री शैलेन्द्र कुमार सिंह ‘मृदु’ ने शृंगारिक मुक्तक पढते हुए कहा ,
"निमंत्रण है स्वयंवर का हमें साथी बना लो तुम,
हमारे प्रेम पथ पर पुष्प खुशियों के बिछा लो तुम ....
तुम्हारी एक हाँ पर मैं तुम्हें दुल्हन बना लूँगा
प्रिये बस मांग अपनी नाम से मेरे सजा लो तुम ..”
सीतापुर के प्रख्यात शायर व बज्म-ए- जिया- अदम के सद्र नदीम सीतापुरी ने अपना कलाम पढते हुए कहा ,
"ये लल्लू हैं ये जगधर हैं ये रामौतार बैठे हैं...
खुदा का शुक्र है कि हम जैसे भी दो चार बैठें हैं...”
'रिहार' इस्टेट सीतापुर से पधारे अम्बिका ‘अम्बुज’ ने अपने छंद के माध्यम से कहा ,
“होली खेलते जो लाल फूट रूपी रंग डाल,
उस रंग को कदापि आप मत अपनाइए,
भाषा धर्म जाती पे लड़ाई हो रही जो बंध,
बचिए स्वयं निज राष्ट्र को बचाइए .."
गोंडा से पधार शायर महबूब गोंडवी ने अपने कलाम के माध्यम से कहा ....
"जो लोग इश्क-ओ–मोहब्बत से दूर रहते हैं
वो जिंदगी की हकीकत से दूर रहते हैं,”
भग़वान राम को स्मरण करते हुए ओ बी ओ सदस्य दिनेश मिश्र ‘राही’ ने कहा....
”बहुत भोग भोगा जीवन में
गे स्वप्न हैं अंतर्मन में
तिनका भले बना देना तुम
विनती मेरी सुन लेना तुम
हे प्रभु निर् झोंका ना देना
जर्जर यूं नौका ना देना ”
प्रख्यात कवि पंकज पाण्डेय “प्रभात” ने कहा ....
"चल पथिक मत देर कर ये रास्ता तुझको निहारे
चाल में विश्वास ला औ नाप ले तू चाँद तारे .”
अपना काव्य पाठ करने से पूर्व ओपनबुक्स ऑनलाइन प्रबंध समिति सदस्य इं० अम्बरीष श्रीवास्तव ने ओ बी ओ के बारे में जानकारी देते हुए कहा....
"इस साहित्यिक सोशल नेटवर्किंग वेबसाईट का आरम्भ दो वर्ष पूर्व पटना के एक सरकारी विभाग में कार्यरत इंजीनियर गणेश जी बागी द्वारा किया गया था, जिससे सम्पूर्ण विश्व के लगभग ३० देशों के १४७० साहित्यकार जुड़े हैं| पटियाला निवासी श्री योगराज प्रभाकर जी इसके प्रधान संपादक हैं | यहाँ पर प्रतिमाह तीन दिवसीय तीन विशुद्ध साहित्यिक आयोजन किये जाते हैं, ‘ऑनलाइन महोत्सव’, ‘चित्र से काव्य तक’ प्रतियोगिता व ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा | यथोचित प्रतिक्रियाओं के समान्तर इन आयोजनों में प्रविष्टियों की भरपूर समीक्षा भी की जाती हैं | उपरोक्त आयोजनों का सञ्चालन राणा प्रताप सिंह, अम्बरीष श्रीवास्तव, धर्मेन्द्र शर्मा ‘धरम’ व सौरभ पाण्डेय द्वारा किया जाता हैं | विशेष तौर पर सनातनी छंदों को बढ़ावा देने की दिशा में यह संस्था अत्यंत महत्वपूर्ण व सराहनीय कार्य कर रही है|
तद्पश्चात उन्होंने ओ बी ओ तरही मुशायरे में कही गयी निम्नलिखित ग़ज़ल पढ़ी ......
"पुकार मेरी सूनी जिन्होंने वो प्यार ले के चमन में आए
अना की चादर उतार फेंके मोहब्बतों के चलन में आए
गज़ब अदाएं निगाह कातिल वो हुस्न आँखों में आ बसा है
न ख्वाब मेरा रहे अधूरा जो हूर-ए-जन्नत चमन में आए "
इस कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे आदरणीय श्री सोम दीक्षित जी ने अवधी को बढ़ावा देते हुए कहा ....
"हिन्दी के अन्तरंग का शृंगार है अवधी
फुलवारी कहीं तो कहीं अंगार है अवधी
सम्पूर्ण अवधधाम का आधार है अवधी
श्री राम के चरित्र का अवतार है अवधी
कवि जायसी तो ज्वार हैं अवधी के सिंधु का
अवधी महाविस्तार है तुलसी के बिंदु का"
कार्यक्रम के अंत में सीतापुर के तीन वरिष्ठ साहित्यकारों 'हिन्दी सभा' सीतापुर के पूर्व अध्यक्ष आदरणीय श्री सोम दीक्षित, सुजान साहित्य परिषद के संरक्षक आदरणीय श्री जागेश्वर बाजपेई, व साहित्य उत्थान परिषद के अध्यक्ष मुक्तेश्वर बक्श श्रीवास्तव को अंगवस्त्र देकर सम्मानित किया गया |
छोटे कद व कृशकाय काया के लगभग पचहत्तर वर्षीय आदरणीय श्री जागेश्वर बाजपेई जी विशुद्ध साहित्यिक उद्देश्य से आज भी अपनी साइकिल से ५० से ७० किमी० तक यात्रा कर डालते हैं तथा दिवंगत साहित्यकारों का जन्म दिवस उनके जन्मस्थल पर जा जाकर मनाते हैं | इन्हें सीतापुर का साहित्यिक लौह पुरुष भी कहा जाता है |
श्री मुक्तेश्वर बक्श श्रीवास्तव जी एक दुर्घटना में घायल हो जाने के कारण चलने-फिरने में असमर्थ हैं अतः उनका सम्मान उनके निवास पर जा कर किया गया
इसके साथ-साथ कार्यक्रम में भालेंदु दत्त त्रिपाठी, नील श्रीवास्तव, निधि खन्ना, डॉ ज्ञानवती दीखित, भूपेन्द्र दीक्षित, झंकार नाथ शुक्ल, अरुण मिश्र, अरुणेश मिश्र, रामदास वैश्य ‘रामू’, योगेन्द्र पाण्डेय, रमेश मिश्र, राजकुमार श्रीवास्तव, राजन पाण्डेय आदि ने भी काव्य पाठ किया | अंत में अम्बरीष श्रीवास्तव ने सभी आगंतुकों के प्रति आभार ज्ञापित किया ! इस प्रकार यह आयोजन पूर्णत्व को प्राप्त हुआ | जय ओ बी ओ !
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आदरणीय अम्बरीषभाईजी, अंतर्जाल की निराली ई-पत्रिका ओपेनबुक्स ऑनलाइन (ओबीओ) की दूसरी वर्षगाँठ के अवसर पर सीतापुर में आयोजित गोष्ठी और कवि-सम्मेलेन की सफल पूर्णता पर आपका सादर अभिनन्दन करता हूँ. उक्त आयोजन में सम्मिलित सभी सदस्यों और शुभचिंतकों को मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ.
आभासी दुनिया से निकल कर सापेक्ष होने की प्रक्रिया का ही नाम ओबीओ है, जहाँ ’सीखना-सिखाना’ आज के दौर में नया अर्थ लेता भले लगे. किन्तु, जानने वाले जानते हैं कि यही सनातनी प्रक्रिया है. यही भारतवर्ष की परिपाटी है. गोष्ठियों तक का चलन समाप्त होता जारहा है. उसके स्थान पर हड़बोंगी आयोजन किये जारहे हैं जहाँ रचनाधर्मिता की क्या बात होगी, सदस्य ’आ तू मेरी खुजला दे, मैं तेरी खुजलाऊँ’ के क्रम में एक-दूसरे को खुश करने में लगे हैं, साहित्य-सेवा क्या खाक़ होगी. इस पूरे प्रक्रम में जिसकी वाकई हिनाई हो रही है वह रचनाकर्म ही है.इसी के प्रति विरोध का नाम ओबीओ है.
आपने इस आयोजन के जरिये ओबीओ के उद्येश्य को सार्वभौमिक किया है. आपको सादर प्रणाम है.
स्वागतम आदरणीय सौरभ जी ! आपका हार्दिक आभार मित्र ! कम से कम आपने इस आयोजन को सराहा तो ! जय ओ बी ओ ! :-)
सराहा तो .. ऐसा भी क्या !!
वाह अम्बरीश जी हार्दिक बधाई
फोटो से कार्यक्रम की रिपोर्ट में चार चाँद लग गए
आपको सञ्चालन करते देख कर अच्छा लगा ...
सुप्रभात भाई वीनस जी ! आपका हार्दिक धन्यवाद ! इस बार यह विचार आया कि आयोजन खुले में हो तो और भी अच्छा रहेगा ! वैसे भी इस कार्यक्रम का उद्देश्य तो ओ बी ओ के उद्देश्यों की पूर्ति करना ही तो है !
बिलकुल सही कहा ...
स्वागत है मित्र नीरज ! आपका हार्दिक आभार ! व्यस्तता के कारण इस कार्यक्रम में आप नहीं आ सके तो कोई बात नहीं !
आदरणीय अम्बरीश जी, सबसे पहले आपके इस सद्प्रयास को प्रणाम, किसी भी परिवार का पहला दायित्व है कि वो अपने बुजुर्गों को सम्मान करे, इस कड़ी में ओ बी ओ परिवार सीतापुर चेप्टर ने बुजुर्ग साहित्यकारों का सम्मान कर एक सराहनीय कार्य किया है, खुले आकाश तले काव्य गोष्ठी कि खबर पढ़ ह्रदय आह्लादित है, ओ बी ओ सीतापुर से जुड़े सभी साहित्यकारों का इस कार्यक्रम को सफल बनाने हेतु बहुत बहुत आभार |
इस कार्यक्रम कि सफलता समाचार पत्रों में छपे खबर और यह रिपोर्ट पढ़कर ही समझ में आ रहा है कि आप सभी ने कितने कितने गोते साहित्य सरिता में लगाये होंगे | बधाई आप सभी को |
स्वागत है आदरणीय बागी जी ! आपका हार्दिक आभार ! आप ने बिलकुल सही फरमाया कि किसी भी परिवार का पहला दायित्व है कि वो अपने बुजुर्गों को सम्मान करे! अभी तो हम सभी ने इस दिशा में एक पहल की है ........हम सभी को मिलकर यह प्रयास करने कहिये कि आगे भी इलाहाबाद व सीतापुर जैसे आयोजन बहुतेरे जिलों में होने लगें ! जय ओ बी ओ !
आदरणीय अम्बरीष भाई जी,
ओबीओ की दूसरी वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में सीतापुर में आपके द्वारा आयोजित काव्य समारोह की सुंदर रपट पढ़ कर दिल बाग़ बाग़ हो गया. रपट इतनी जीवंत है कि पूरा मंज़र आँखों के सामने आ गया. इस अवसर पर बुज़ुर्ग साहित्यकारों को सम्मानित कर आपने जो काम किया है, उसकी जितनी प्रशंसा की जाए वह कम होगी. इस बेहद प्रभावशाली रपट के लिए तथा इस बेहद सफल आयोजन के लिए मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें.
आदरणीय प्रधान संपादक जी ! सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार! इस आयोजन का उद्देश्य ओबीओ पर हो रही गतिविधियों को हमारी जमीन से जुड़े हुए वरिष्ठ साहित्यकारों के सामने लाकर उनका मार्गदर्शन व स्नेहाशीष प्राप्त करना था ! हमारे यह सभी वरिष्ठ साहित्यकार अत्यंत प्रसन्न हैं कि इन्टरनेट की इस दुनिया में ओ बी ओ पर आज के दौर में भी छंदों पर इतना बेहतर कार्य हो रहा है! और साहित्य के क्षेत्र में डॉक्टर, इन्जीनियर, चार्टेड अकाउन्टैंट , कंपनी सचिव , जैसे तकनीकी व्यकि व प्रोफेशनल्स आदि आ रहे हैं !
adarniya ambrish ji, saadar abhivaadan ,
mujhe der hui chama prarthi hoon
net page loading samasya to khas thi
par ye main kaese bhooloon ki bhartiya hoon
karta naman un sahityakaron ka
jinhone kavya sur sarita bahayii hai
abhar abhinandan karoon aapka
jo itni sundar vyvastha banayi hai
main lekhak n hoon koi mahan kavi
na shashi sooraj koi tara hoon
aapne hradaya se jo lagaya mujhe
tab se main dass tumhara hoon
samay mile jab khabhi aapko
seva main bhejoonga kuch kavita
pasanda na aaye maalla to baat nahi
usaka koi ek phool sabha main chadhaunga.
vinti tumse hai sakha e mitra
avgun mere bhula dena
apne gyan ke sagar se ek do boon jaroor chakha dena.
main jaanat hon ye sabha bade bade gyaanin ki hai
sindoor to bharta maang sabhi rani aur naukrani kai.
v.d.o bani hai dalva dena darshan labh to mil hi gaya
sun lenge jab ham kaanan se un rishiyon ki amar jo vani hai.
jay o.b.o. jai bharti. jai hind.
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