ओपन बुक्स ऑनलाइन के सभी सदस्यों को प्रणाम, बहुत दिनों से मेरे मन मे एक विचार आ रहा था कि एक ऐसा फोरम भी होना चाहिये जिसमे हम लोग अपने सदस्यों की ख़ुशी और गम को नजदीक से महसूस कर सके, इसी बात को ध्यान मे रखकर यह फोरम प्रारंभ किया जा रहा है, जिसमे सदस्य गण एक दूसरे के सुख और दुःख की बातो को यहाँ लिख सकते है और एक दूसरे के सुख दुःख मे शामिल हो सकते है |
धन्यवाद सहित
आप सब का अपना
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हृदय से बधाई आदणीय धर्मेन्द्रभाई. आपके सफल साहित्यिक भविष्य के लिए असीम शुभकामनाएँ. अंजुमन प्रकाशन के इस योजना को हार्दिक बधाइयाँ.
शुभ-शुभ
धन्यवाद सौरभ जी, स्नेह बना रहे
आदरणीय धर्मेन्द्र जी:
आपको हार्दिक बधाई, और भविष्य में और सफ़लता के लिए शुभकामनाएँ।
सादर,
विजय निकोर
सही कहा आपने ये एक परिवार है
आज एक संयोग की ओर ध्यान गया....
ओ. बी. ओ. पर मेरे समूह "ग़ज़ल की बातें" में आज सदस्यों की संख्या २०० हो गई ... कुछ दिन पहले इस खुले समूह को सीमित कर दिया गया है ...
अचानक 'पेज व्यू रीडिंग' देखने की बात मन में आई तो पता चला मेरे कुल २३ पोस्ट की कुल 'पेज व्यू' 12597 हो गई है .... प्रत्येक लेख औसतन ५४८ पेज व्यू ...
देख कर सुखद अनुभूति हुई ...
इस पर बधाई कहना बनता है. ग़ज़ल सिर चढ़ कर बोल रही है.
शुभ-शुभ
जितना मजा हम लोग ले रहे हैं किसी दिन सौरभ जी तरंग में आ गये तो हम लोग को मथुरा का पेड़ा खिला देंगे और उस खिलाने में इतनी मुहब्बत भरी होगी कि हम नहीं खाना चाहेंगे तब भी खाना पड़ेगा :)))))))))))))))))))))))
कभी-कभी आदरणीय धर्मेन्द्रजी, फ़ैज़ के शेर बन जाते हैं. या फ़िराक़ की फ़ारसी अल्फ़ाज़ भरी ग़ज़ल. .. ... :-(((
मैंने तो लिखा था कि [बधाई ही नहीं सौरभ जी, साथ में मिठाई भी माँगनी पड़ेगी वीनस जी से]। मिठाई इंटरनेट खा गया सो तो ठीक है। मगर ‘जी’ भी खा जायेगा ये पता नहीं था। जो न करवा दे ये डाटा लॉस। :)))))))))))
हा हा हा
मगर उस कमेन्ट का भी अपना लुत्फ़ था ... अपना मतलब था ... :)))))))))
बधाई बराबर सौरभ नहीं होता.. बधाई तो बस बधाई होती है.. सिर को फुग्गा बना देती है. हा हा हा हा..
:-)))))))))))))))))))
जय हो..
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