(श्री अशफाक अली गुलशन खैराबादी जी) 
सब्ज़ वादी में गुलशन की आया करो l
रोज़ शबनम में तुम भी नहाया करो ll
 
मेरी आंखें भी नम हैं तुम्हारी तरह l
अश्क आँखों में तुम यूँ न लाया करो ll
जिसने ब्क्शी है ये कीमती जिंदगी l
उसके दर पर ही सर को झुकाया करो ll
जिसने अरमान तुम पर निछावर किये l
 दिल जिगर जान उस पर लुटाया करो ll
दिल है नाज़ुक कभी बैठ सकता है ये l
भूल कर भी न इसको डराया करो ll
होश की बात करता रहूँ उम्र भर l
जाम कोई तो ऐसा पिलाया करो ll
 
टूट सकते हैं आख़िर हम इंसान हैं l
हर तरह से न हमको सताया करो ll
पहले अपने गरीबां में खुद झांक लो l
उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो ll
चाहतों का तो है बस तक़ाज़ा यही l
 जब मनाया करूं मान जाया करो ll
जानता हूँ की सच बोलते हो सदा l
झूठी कसमे मगर तुम न खाया करो ll
जीते जी चैन तुमसे मिला कब हमें l
अब लहद पर हमारी न आया करो ll
 
खुद-ब-खुद मेरी किसमत संवर जाएगी l
तुम जो हर रोज़ "गुलशन" में आया करो 
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 (श्री तिलक राज कपूर जी) 
 
ग़ज़ल-1 
सुब्ह बेशक हमें भूल जाया करो 
 सॉंझ ढलने पे घर लौट आया करो। 
आज दुश्मन हैं, कल दोस्त बन जायेंगे
 चोट दिल पर लगे, मुस्कराया करो। 
दिल सभी के न महसूस कर पायेंगे
 दर्द अपने न सब को सुनाया करो। 
ज़र्द पत्तों में तब्दील हो जाऍंगे
 गुल किताबों में ये मत छुपाया करो। 
खुशनसीबी है क्या ये समझ जायेंगे
 उस ज़माने की चिट्ठी सुनाया करो। 
तल्खियों से न हासिल कभी कुछ हुआ
 है ये बेहतर इन्हें भूल जाया करो। 
ऑंख देखे को सच मानकर इस तरह,
 "उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो"। 
ग़ज़ल-2 
तुम न काजल नयन में लगाया करो
 बदलियॉं झील पर मत सजाया करो। 
कातिलाना सी लगती है ऐसी अदा
 दॉंत में अंगुलियाँ मत दबाया करो। 
कर्ज़ मिट्टी का चुकता हो करना अगर
 गोद में पेड़ इसकी लगाया करो। 
आह मज़्लूम की न मिटा दे तुम्हें
 जु़ल्म कमज़ोर पर तुम न ढाया करो। 
फ़ल्सफ़ा जि़न्दगी का समझ आएगा
 कश्तियॉं कागज़ों की तिराया करो। 
इन दरख़्तों से सीखो कि जीवन है क्या
 धूप सर पे रखो सब पे साया करो। 
एक जब हो उधर तो इधर तीन हैं
 "उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो"। 
ग़ज़ल-3 
जो न अच्छी लगे, भूल जाया करो
 बात ऐसी न दिल में बसाया करो। 
घर किसी को जब अपने बुलाया करो
 हर तरफ़ मुस्कराहट बिछाया करो। 
पेट इनका भरो या कहो अलविदा
 हस्रतों को न भूखा सुलाया करो। 
काम आफिस में माना बहुत है मगर
घर तलक इसकी छाया न लाया करो। 
एक प्यादा भी मुमकिन है भारी पड़े
 सोचकर ही बिसातें बिछाया करो। 
दर्द बहता है ऑंसू में घुलकर अगर
 बेवफ़ा पर न ऑंसू बहाया करो। 
ठोस हों ठीक है, पर सरल है सहज
पात्र जैसा मिले वो निभाया करो। 
इस जहां के लिये तो बहुत कर चुके 
 उस जहां के लिये भी कमाया करो। 
ख़ामियॉ, खूबियॉं सोच की बात है़
 "उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो"
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(श्री मोहम्मद नायाब जी) 
दिल लगी मत करो दिल लगाया करो l
अश्के गम यूँ न मुझको पिलाया करो ll
यूँ न चेहरे से परदा हटाया करो l
 सबको जलवा न अपना दिखाया करो ll
जान ही न ये ले ले तुम्हारी अदा l
यूँ न मिलते हुए मुस्कुराया करो ll
सिर्फ अपने लिए तुम जिए क्या जिए l
बार गैरों का भी कुछ उठाया करो ll
 
मेरी तन्हाई का तुम सहारा बनो l
कुछ नही तो ख्यालों में आया करो ll
जब न पाओ किनार कोई आस का l
मेरी आँखों में तुम डूब जाया करो ll
सब हँसेंगे अगर मैं बहक जाऊंगा l
 जाम पर जाम यूँ मत पिलाया करो ll
एक ही दर से रिश्ता रखो उम्र भर l
सबके आगे न सर को झुकाया करो ll
पहले "नायाब" खुद सोंच लो गौर से l
उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो 
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(श्री अरुण कुमार निगम जी) 
गज़ल 1
उँगलियों पर न सबको नचाया करो
 टेढ़ी उँगली न घी में डुबाया करो | 
 जान ले न कहीं ये अदा मदभरी
 उँगली दाँतो तले न दबाया करो | 
 सीखते हैं सभी , थाम कर उँगलियाँ
 नन्हें बच्चों को चलना सिखाया करो | 
 काम ऐसे करो , उँगलियाँ न उठे
 उँगलियों से सदा गुदगुदाया करो | 
 अंगुलीमार जाने है किस भेष में
 उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो |
गज़ल 2 
 खुद हँसो , दूसरों को हँसाया करो
 ज़िंदगी हँसते - गाते बिताया करो | 
 हैं फरिश्ते नहीं , ये तो इंसान हैं
 गलतियाँ गर करें , भूल जाया करो | 
 कुछ हैं कमजोरियाँ,कुछ हैं नादानियाँ
 हर किसी को गले से लगाया करो | 
 संग के शहर में , काँच का आशियाँ
 है मेरा मशवरा , मत बनाया करो | 
 गलतियाँ देखना तो बुरी बात है
 उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो |
गज़ल 3 
 झूठे वादों से यूँ न लुभाया करो
 वादा कर ही लिया तो निभाया करो | 
 अश्क़ हमने हैं पहचाने, घड़ियाल के
 झूठी संवेदना मत जताया करो | 
 कीमती है जुबां , सोच कर खोलिए
 बेवजह ही जुबां ना चलाया करो | 
 चट्ठे - बट्ठे सभी एक थैले के हो
 कच्चे चिट्ठे न खुल कर सुनाया करो | 
 दूध के हो धुले क्या , जरा सोच लो
 उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो |
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(श्री वीनस केसरी जी) 
हम जो कह दें उसे मान जाया करो |
 आईनों से जबां मत लड़ाया करो |
 
 खुद को खुद से बचाया करो दिन में तुम, 
 रात भर खुद को खुद पे लुटाया करो |
 
 मैं भी तुमको परेशां करूँ रात दिन, 
 तुम भी मुझको बराबर सताया करो | 
 
 अपनी कीमत को समझा करो दोस्तो,
 इस कदर भी न खुद को लुटाया करो |
 
 वक्त ए रुखसत निगाहें वो कहती गईं, 
 मुझको सोचा करो.... मुस्कुराया करो |
 
 सीख लो मुझसे तुम, इश्क की हर अदा, 
 और मुझको ही तेवर दिखाया करो |
 
 जब भी चाहो बसा लो मुझे दिल में तुम, 
 जब भी चाहो मुझे तुम पराया करो |
 
'वक्त पर छोड़ दो तुम सभी फैसले', 
 'उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो |' 
जानो 'वीनस जी' ग़ज़लों की बारीकियां 
 'खर्च करने से पहले कमाया करो
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(अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर' जी)
(१) 
बात दिल से न कोई लगाया करो 
राज सबसे न कोई जताया करो 
दर्द दिल में कभी मत छुपाया करो 
दर्द हो प्यार से मुस्कुराया करो 
जिन्दगी है मिली चार दिन की हमें 
 वक्त पहचान लो यूं न जाया करो 
सामने सच कहों जिस्म छलनी भले 
तीर छिप के न कोई चलाया करो 
चाँदनी रात में चाँद के सामने 
रुख से पर्दा कभी तो हटाया करो 
रात है वस्ल की दिल हुए हैं जवां 
सोये अरमां कभी तो जगाया करो 
 
भीनी खुशबू उड़े दिल पे काबू नहीं 
भींच लूं आह भर कसमसाया करो 
साँस अटकी पड़ी दिल धड़कने लगा 
उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो 
आज 'अम्बर' जमीं मिल रहे हैं जहाँ 
चल बसें हम वहीं यूं निभाया करो 
(२) 
हास्य ग़ज़ल 
अपनी अम्मी को घर ना बुलाया करो 
जेब से माल चाहे उड़ाया करो 
जब भी आयें खुशी से मेरी सासजी 
उनकी खातिर हूँ मुर्गा पकाया करो 
शौक से आ रहीं जो मेरी सालियाँ 
पांव उलटे उन्हें ना भगाया करो 
हैं जलेबी मेरी रसभरी सालियाँ 
चाशनी में न डुबकी लगाया करो 
सिर्फ हमसे कहो कौन पीछे पड़ा 
उँगलियां यूं न सब पर उठाया करो 
कान कर दो मेरे आप चाहे गरम 
पेट में ना मेरे गुदगुदाया करो 
पाँच गहने दिला दूं करो बस रहम 
तोंद को देखकर ही खिलाया करो 
ओबीओ पर जमा मैं ग़ज़ल कह रहा 
घूर कर ना मुझे यूं बुलाया करो 
हाय 'अम्बर' तेरा रोज आँखें मले 
मिर्च का पाउडर ना उड़ाया करो 
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(श्री उमाशंकर मिश्रा जी) 
(१)
जल्वे हम पे भी थोड़े लुटाया करो 
खिड़कियों पर न परदे लगाया करो| 
ये कैसी तड़प है तेरे प्यार की
 यूँ नजर फेर कर ना सताया करो| 
चाँद ने चाँदनी डाल दी चाँद पर
 चाँद घूँघट में यूँ न छिपाया करो| 
 
मनचली है हवा ओढ़नी ओढ़ लो
 इन हवाओं से दामन बचाया करो| 
लब थिरकते हुए अनकही कह गये
 शब्द अनहद का यूँ न बजाया करो| 
आज लग कर गले हम चलो झूम लें
 ख्वाब में ही न जन्नत दिखाया करो| 
सब पे तोहमत लगाना गलत है सनम
 उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो| 
(२)
रंगे खूँ से न हिना सजाया करो
यूँ न बर्कएतजल्ली गिराया करो
ये जुबाँ कट गई खुद के दाँतों तले
 ऊँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो
चश्म की झील में बस डुबादो मुझे
डूब जाने भी दो मत बचाया करो
फूल को चूम कर भौंरा पागल हुआ
घोल मदहोशी, रस न पिलाया करो
 
जिस्म की गंध से मन हुआ बावरा
सिर को सहला के यूँ न सुलाया करो
प्रेम पावन हो जैसे कि राधा किशन
बाँसुरी बन के होठों पे आया करो
आज मीरा को माधव मिले ना मिले
 प्रेम माखन हमेशा लुटाया करो
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(श्री अरविन्द चौधरी जी) 
 ऐब अपने न अक्सर छुपाया करो,
ज़ख्म दिल के दुजे को दिखाया करो 
 इशरते इश्क कुछ इस तरह लीजिए 
 ग़म कहीं भी रहे,ग़म मिटाया करो 
 प्यार अपना पराया नहीं मानता
 गैर को भी गले से लगाया करो
 
 छूट जाते रहेंगे किनारे वले
 नाखुदा तुम ख़ुदा को बनाया करो 
 नक्श अपना न फीका रखेंगे कभी 
 धनक से रंग थोड़े चुराया करो 
 रक्स हमसे कराती रही ज़िंदगी 
 पर कभी ज़ीस्त को भी नचाया करो
झाँक लो,चाक अपना गिरेबां ज़रा 
 उंगलिया यूँ न सब पर उठाया करो
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(श्री संदीप द्विवेदी वाहिद काशीवासी जी)
(१) 
यूँ घुमा कर न बातें बनाया करो;
 जो भी कहना हो सीधा बताया करो;(१) 
ये अदाएं बनावट की भाती नहीं,
ये अदाएं न हमको दिखाया करो;(२) 
ख़ाक हो जाएंगे एक ही पल में हम,
बिजलियाँ इस तरह मत गिराया करो;(३) 
हो ख़ुशी हार जाने से भी जिस जगह,
शर्त ऐसी जगह तुम लगाया करो;(४) 
दो नया फ़लसफ़ा एक दुनिया को अब,
ज़ख़्म खा कर भी तुम गीत गाया करो;(५) 
गर्म है राख़ अब तक कुरेदो नहीं,
बुझती चिंगारियां मत जलाया करो;(६) 
आदतें अपनी पहले सुधारो बशर,
उंगलियां यूँ न सब पर उठाया करो;(७)
(२) 
दोस्ती मत कभी आज़माया करो;
दोस्तों को न यूँ ही गंवाया करो;(१) 
दर्द के जो निशां वक़्त ने हैं दिए,
रोज़ थोड़ा सा उनको मिटाया करो;(२) 
ज़िंदगी और भी है ग़मों के सिवा,
जब भी मिलते हो कुछ मुस्कुराया करो;(३) 
पाक है और है बस तुम्हारे लिए,
मेरे अहसास को मत नुमाया करो;(४) 
एक मासूम बच्चे की इक भूल पर,
लाल आँखें न उसको दिखाया करो;(५) 
बांटने से कभी कम ये होते नहीं,
प्यार दो और ख़ुशियां लुटाया करो;(६) 
भूल तुमने नहीं क्या कभी की कोई,
उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो;(७)
(३) 
प्यार है गर तो रिश्ता निभाया करो;
ख़ुद भी आओ हमें भी बुलाया करो;(१)
सुन्न पड़ जाएँ जब फ़र्ज़ के हाथ-पा,
ज़ह्न झकझोर कर तुम हिलाया करो;(२)
इस जहाँ में हैं मज़लूम लाखों कभी,
बिन कहे काम उनके भी आया करो;(३)
चौके-बर्तन से थोड़ी सी फ़ुर्सत निकाल,
तुम हथेली हिना भी रचाया करो;(४)
इस कड़ी धूप में ये झुलस जाएगा,
नन्हे पौदे को कुछ देर साया करो;(५)
काफ़िया हो रदीफ़ और हो बह्र भी,
जो कहन की ग़ज़ल हो सुनाया करो;(६)
सच है क्या झूट क्या है पता तो चले,
उंगलियां यूँ न सब पर उठाया करो;(७)
--------------------------------------------------------
(सुश्री सिया सचदेव जी) 
 (१) 
 अपनी ताक़त को यूं आज़माया करो 
फूल बंजर ज़मीं में उगाया करो 
सब्र की बारिशों में नहाया करो 
अपने मक़सद को अपना बनाया करो 
ख़ुद ही मंज़िल चली आएगी सामने 
राह के पत्थरों को हटाया करो 
तुम किसी के हुए ही नहीं जब कभी 
फिर किसी को न अपना बनाया करो 
जब घनी छावं की है तमन्ना तो फिर 
पेड़ गमले में तुम मत लगाया करो
बात का घाव भरता नहीं है कभी 
इस हक़ीक़त को तुम मत भुलाया करो 
हाकिम ए वक़्त ख़ुद कुछ भी करते नहीं 
सिर्फ़ कहते है हमसे रियाया करो 
धड़कने रक्स करती रहे देर तक 
इस तरह दिल में तुम आया जाया करो 
कोई कांटा चुभे भी तो चुभता रहे 
पावं मंज़िल की ज़ानिब बढाया करो 
रोशनी जिनसे सबको मिले है सिया 
दीप ऐसे जहां में जलाया करो 
(२) 
सब्र को अपने यूं आज़माया करो 
शिद्दत ए ग़म में भी मुस्कुराया करो 
दूरियां सब दिलों की मिटाया करो 
तुम चराग़ ए मोहब्बत जलाया करो 
हम बुजुर्गों से सुन कर भी समझे नहीं 
दीन ए हक़ के लिए सर कटाया करो 
आइना तुमने देखा नहीं आज तक
उंगुलियां यूं न सब पर उठाया कर 
धूप शोहरत की दो दिन में ढल जायेगी 
तुम मोहब्बत भी थोड़ी कमाया करो 
सर की टोपी ज़मीं पर गिरे एकदम 
इतना ऊँचा ना सर को उठाया करो
 
दफ़्न हैं मेरी आँखों में सपने कई 
ये कहानी न दिल को सुनाया करो 
अपनी मंज़िल को मुश्किल बना लो सिया 
राह में ख़ुद ही कांटे बिछाया करो ..
------------------------------------------------------------------
(श्री अविनाश बागडे जी) 
(१) 
 सीटियाँ हर समय ना बजाया करो,
 बेवजह खिड़कियों पे न आया करो.
 --
 झांक लो पहले अपने गिरेहबान में,
 फिर यूँ औरों पे पत्थर चलाया करो.
 --
 चार होती है अपनी तरफ बारहा,
 उंगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो.
 --
 कोख में मार कर यूँ किसी जान को ,
 मर्द खुद को कभी ना बताया करो.
 --
 आखरी सच है अविनाश तुम जान क़े,
 यूँ जनाज़े पे कान्धा लगाया करो. 
(२) 
हद से ज्यादा न हमको पिलाया करो, 
साक़िया हद हमें भी बताया करो. 
-- 
लड़खड़ाते कदम और बहकती जुबां, 
क्या जरुरी है इतनी चढ़ाया करो! 
-- 
थोडा समझा के लोगों को समझो जरा, 
उंगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो. 
-- 
सरहदों पर जरुरत है पड़ती बहुत, 
खून दंगों में यूँ ना बहाया करो. 
-- 
चीख नारी की तुमने सुनी हो अगर, 
बंद दरवाजा तुम खटखटाया करो. 
-- 
काम आयेंगी तुमको यही बाद में, 
बेटियों को पढाया-लिखाया करो. 
-- 
उम्र - भर के लिये था दिया हाँथ में, 
हाँथ ऐसे न जानम छुड़ाया करो. 
-- 
खुदा बन के आएगा ग्राहक कभी!! 
दुकानें ना जल्दी बढाया करो.
(३) 
तनावों में भी मुस्कुराया करो, 
वक़्त अपने लिये भी चुराया करो.१. 
बेसबब हर किसी के लिये अश्क के, 
मोतियों को न ऐसे लुटाया करो .२. 
है ये उंगली दिखाना बुरी बात तो ,
उंगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो.३. 
देखते ही नज़र यूँ उन्हें बारहा ,
धडकनों शोर यूँ ना मचाया करो.४. 
हम भी दिल में उतरने का रखतें हैं फ़न
महफ़िलों में हमें भी बुलाया करो.५. 
वक़्त की धूप में सब झुलस जायेगा ,
अपनी जुल्फों का हम पे भी साया करो.६. 
ख़त्म हो जाये ना ये बहस आज भी ,
कोई मुद्दा तो तुम भी उठाया करो.७. 
ये तो जज्बात हैं ये भड़क जायेंगे ,
इनको बहला के यूँ ना सुलाया करो.८. 
जिंदगी इस तरह से न जाया करो ,
साथ अपने भी कुछ पल बिताया करो.९. 
दाग चेहरे पे अविनाश हो ढूंढते ,
धूल दर्पण से थोड़ी हटाया करो.१०.
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 (सुश्री राजेश कुमारी जी)
हसरतों को न दिल में दबाया करो 
 असलियत पे न पर्दा गिराया करो 
फूल तो यूँ शराफत के भी हैं खिले 
तुम सभी को न काँटे बताया करो 
क्या पता दुश्मनों में मिले यार भी 
उंगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो 
 
पत्थरों पे चलो ठोकरों से गिरो 
पाँव को ध्यान से तुम बढाया करो 
दोस्ती पे भरोसा करो मत करो 
यूँ हवा में न बातें उड़ाया करो 
पेट भर जाए उन का दया भाव से 
 इस तरह प्यार से तुम खिलाया करो 
जिंदगी दूसरों की विरासत नहीं 
शोहरत मेहनत से कमाया करो 
वक़्त आने पे तुम पूछकर देखना 
दोस्तों को कभी आजमाया करो 
 ---------------------------------------------------------
(श्री शरीफ अहमद कादरी हसरत जी) 
यूँ न मुझको सनम तुम सताया करो
मुझसे वादा करो तो निभाया करो
दर्द दिल में छुपाने से क्या फाएदा
 हे अगर इश्क तो फिर जताया करो
क्या तुम्हारे हे दिल में मुझे हे पता
यूँ न मुझसे बहाने बनाया करो
इस तरह मिलने में कुछ खसारा नहीं
तुम मेरे ख़ाब में रोज़ आया करो 
तुमको रोते हुए देख सकता नहीं
यूँ न आंसू सनम तुम बहाया करो
हम मिलेंगे खुदा पे भरोसा रखो
हाथ अपने दुआ में उठाया करो
कोन जाने हकीकत खुदा के सिवा
उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो
मेरी उल्फत पे तुमको यकीं आएगा
 अपने हसरत को तुम आजमाया करो
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(श्री सूबे सिंह सुजन जी)
चाँद को देख कर मुस्कुराया करो
चाँदनी रात में आया जाया करो।।
आज जंगल में मिसने गया फूलों से,
फूल बोले कि तुम रोज आया करो।
 
फूल की जिंदगी एक दिन की बहुत,
सोच कर इतना,तुम खिलखिलाया करो।
खेत तुमसे बहुत प्यार करने लगे
बादलो खाली मत गडगडाया करो।
आग सा आचरण मत करो दोस्तो,
 छोटी बातों पे मत तिलमिलाया करो।
सारे आकाश के नीचे सोया करो,
रास्ता घर का जब भूल जाया करो।
आजकल रेल पल-पल में आने लगी,
अब न पुल तुम बहुत थरथराया करो।
 
चाँद पर आदमी ने कदम रख दिये,
चाँदनी चुपके-चुपके से आया करो।
रोशनी अब चरागों से होती नहीं,
दोस्तो अब लहू को जलाया करो।
ऊंगलियाँ चार खुद पर उठेंगी "सुजान"
 ऊंगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो।।
---------------------------------------------------
(श्री विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी जी)
(१) 
कर्ज लो तो समय पर चुकाया करो।
एक रोटी भले कम ही खाया करो॥ 
दाग दामन में अपने लगा हो अगर।
उंगलियां यूं न सब पर उठाया करो॥ 
खाक छानेगी फाइल पड़ी मेज पर।
फाइलों पे वजन कुछ चढ़ाया करो॥ 
वजन से ही सबकुछ है सम्भव नहीं।
भोग बाबू को भी कुछ लगाया करो॥ 
राह में तुम मिले मुस्करा चल दिये।
हाथ तो रुक के हमसे मिलाया करो॥ 
बात मेरी सुनो और अपनी कहो।
सिर्फ अपना ही दुक्खड़ा न गाया करो॥ 
रूठी बीबी कहे कैसे सौहर हो तुम।
ले चलो हमको पिक्चर दिखाया करो॥ 
कौन साथी बुढ़ापे का? कोई नहीं।
धन बुढ़ापे के खातिर बचाया करो॥
(२) 
मछलियां जाल में न फंसाया करो।
 ऐ मछेरे तरस कुछ तो खाया करो॥
 
 खा गये मुर्गियां भेंड़ औ बकरियां।
 बाघ कुत्ता न खुद को कहाया करो॥
 
 पेट नेमत खुदा की भरण के लिए।
 इसको शमसान तुम न बनाया करो॥
 
 फूल फल अन्न दिया है खुदा ने हमें।
 शाक आहार भोजन पकाया करो॥
 
 इसमें पोषण बहुत ही विटामिन भरे।
 मांस आहार खुद को बचाया करो॥
 
 खून जीवों का तुम मत करो भूलकर।
 प्यार करुणा दया मन में लाया करो॥
 
 फल खाओ पिओ दूध को ठाट से।
 हाथ मूंछों पे अपने फिराया करो॥
 
 सेहत अच्छी रहे थोड़ी कसरत करें।
 प्रात ही सेर करने को जाया करो॥
 
 हम रोगी हुये इसके दोषी हैं हम।
 उंगलियां यूं न सब पर उठाया करो॥
(३)
चांद जैसा न खुद को बताया करो।
 हीर मणि की न कीमत घटाया करो॥
 
 चांद के हुश्न को लूट लाये हो तुम।
 माल लूटा हुआ है छुपाया करो॥
 
 मैं भी बहकूं ज़रा तुम भी बहको ज़रा।
 फासले दूरियां सब मिटाया करो॥
 
 कातिलाना नजर कत्ल कर जायेगी।
 ये नजर तुम न सब पर चलाया करो॥
 
 बस तुम्हारी अदा से है घायल शहर।
 उंगलियां यूं न सब पर उठाया करो॥
 
 संगमरमर हसीं तुम कली नाजुकी।
 ख्वाब में ही सही पास आया करो॥
 
 सात सुर में सजी इक मधुर रागिनी।
 कान में तुम मेरे घोल जाया करो॥
 
 ये गजल मेरी अर्पण है तुमको प्रिये।
 फूल से होंठ से गुनगुनाया करो॥ 
--------------------------------------------------------
(श्री अलबेला खत्री जी)
गीत को गीत की तरह गाया करो 
 चुटकुलों के तले मत दबाया करो 
 
 शाइरी है नियामत ख़ुदा की हमें 
 बात ये शायरो ! मत भुलाया करो 
 
 काट देगा छुरी से कोई दिलजला 
 उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो 
 
 ज़िन्दगी को जहाँ पर सुकूं मिल सके 
 आप ऐसी जगह रोज़ जाया करो 
 
 प्यार करना न करना अलग बात है 
 पर करो तो इसे तुम निभाया करो 
 
 मुल्क़ सारा हमारा जला जा रहा 
 हो सके तो इसे तुम बचाया करो 
 
 पेड़ तुमको उगाना अगर साथियों 
 बीज धरती के भीतर लगाया करो 
 
 दैर का घंट भी तुम बजाओ मगर 
 पाँव पहले पिता के दबाया करो 
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(योगराज प्रभाकर) 
 (१) 
दोस्ती के मवाके बनाया करो 
दुश्मनी को दिलों से मिटाया करो १ 
जानकी के भले गीत गाया करो 
उर्मिला की कथा भी सुनाया करो २ 
गर हकीकत पसंदी के शौक़ीन हो 
आइने से नज़र मत हटा या करो ३ 
 
जोश ये होश को लूट ले जायगा 
उंगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो ४ 
. 
रूप की धूप की रौशनी आरज़ी 
रूह की चांदनी में नहाया करो ५ 
 
तुम गुलों पे ज़मीमे निकालो भले
तितलियाँ की हलाकत भी शाया करो ६ 
सौ हजों का सिला ख़ाक हो जाएगा) 
मुफलिसों को कभी ना रुलाया करो ७ 
ये तो है कीमती हर ज़रो सीम से 
बेसबब यूँ लहू ना बहाया करो ८ 
आसमानों में होगी ग़ज़ल की महक 
गर ज़मीनों को मौजू बनाया करो ९ 
 
आरज़ू हो अगर रौशनी की तुम्हें 
अपने हुजरे से बाहर तो आया करो १० 
रात आषाढ़ की फूस की झोपडी 
राग दीपक यहाँ तो न गाया करो ११ 
 
*(ज़मीमे = परिशिष्ट, हलाकत=मृत्यु, शाया = प्रकाशित, ज़रो सीम = सोना चांदी, मौजू = विषय)दू
(२) 
मिज़हिया ग़ज़ल. 
सच कहा, देश का जल न ज़ाया करो
साल में इक दफा तो नहाया करो (१). 
 
बूढ़ी बीवी को यूँ भी पटाया करो
दिन ढले उनको जानूँ बुलाया करो (२) 
 
आयेगा वो मज़ा भूल ना पायोगे 
 रम की शीशी में ठर्रा उड़ाया करो (३) 
पान की पीक मारी जो जापान में 
 तो पुलिस के लफेड़े भी खाया करो (४) 
 
दक्षिणी हो चला चौखटा ये मेरा 
 इडली डोसा न डेली चराया करो (५) 
शेर घटिया कहे तब तो जूते पड़े 
बेवजह यूँ न नथुने फुलाया करो (६) 
 
घर बसाने की हो गर ज़रा आरजू
नाजनीं का वो डॉगी पटाया करो (७)
रेल है देश की देश के लाल तुम
ले टिकट वैलिऊ ना घटा या करो (८)
पुलसिया कर सकेगा न चालान भी 
 खुद को डीसी का साढ़ू बताया करो (९) 
ये शहर है नया खायोगे खौंसड़े* 
उंगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो (१०) 
 
मुफलिसी मुल्क से हो मिटानी अगर 
 मुफलिसों का यहाँ से सफाया करो (११) 
(*खौंसड़े = जूते)
(३)
रस्मे उल्फत कभी तो निभाया करो
रूठ जाऊँ कहीं तो मनाया करो (१) 
या तो काजल का टीका लगाया करो 
या मुझे इस क़दर तुम न भाया करो (२)
जब निखारा सदा ही बदन धूप से 
छाँव से मत पसीना सुखाया करो (३)
बचपने की पनीरी न सूखे कभी 
 सायबाँ से बनो उनपे साया करो (४)
 भागती मंजिलें हाथ ना आएँगीं
हांफकर इस तरह थम न जाया करो (५)
इस नगर के बशर सच के आदी नहीं
 उंगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो (६)
हर बुलंदी लगेगी क़दम चूमने 
 तुम ज़रा गहरे गोता लगाया करो (७) 
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(सुश्री सीमा अग्रवाल जी)
वक्त है कीमती यूँ न जाया करो 
ख्वाब की ज़द से बाहर भी आया करो 
गीत मेरे हैं पहचान मेरी सनम 
दूसरों से सुनो खुद भी गाया करो 
बात होठों पे कुछ है निहां दिल में कुछ
ये गलत बात है सच नुमाया करो 
कट न जाएँ कहीं ,तुम ज़रा देखना 
उंगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो 
जिनके चेहरों पे सिलवट तजुर्बें की है 
उनके आगे सदा सर झुकाया करो 
आइना मत बनो सबके चेहरों का तुम 
खुद का चेहरा भी सबको दिखाया करो 
तल्खियो की वजह मत भुलाना कभी 
 तल्खियों के असर भूल जाया करो
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(डॉ सूर्या बाली सूरज जी) 
मुश्किलें देख कर डर न जाया करो। 
ग़म के लम्हों में भी मुस्कुराया करो॥ 
गर बनानी है पहचान तुमको नई, 
लीक से हट के रस्ते बनाया करो॥ 
आंधियों और तूफान में हूँ पला, 
ऐ हवाओं न मुझको डराया करो॥ 
दोस्ती प्यार औ सब्र ईमान को, 
ज़िंदगी में ज़रूर आजमाया करो॥ 
आजकल शहर का हाल अच्छा नहीं, 
शाम ढलते ही घर तुम भी आया करो॥ 
बस समंदर के जैसे बड़े न बनो, 
प्यास भी तो किसी की बुझाया करो॥ 
सब नहीं एक से इस ज़माने में हैं, 
“उँगलियाँ यूं न सब पर उठाया करो”॥ 
हर तरफ नूर तुमको नज़र आएगा, 
पहले दिल के अंधेरे मिटाया करो॥ 
दिल से नफ़रत के काँटे हटाकर ज़रा, 
गुल मुहब्बत के “सूरज” खिलाया करो॥
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(श्री अरविन्द कुमार जी) 
इस तरह मुझको अब तुम भुलाया करो,
मेरे बारे में सब को बताया करो.
टीस पिछले ग़मों की जो उठने लगे,
घाव ताज़ा सा दिल पे लगाया करो.
सुर्ख नज़रें जो फिर से बरसने लगें,
रेत का तुम बहाना बनाया करो.
ये सुना है कि मंजिल कठिन है मगर,
कुछ सफ़र का मज़ा भी उठाया करो.
जो भी रिश्ता रखो, लाज़मी है यही.
इक सलीके से उसको निभाया करो.
साँस रुक जाती है, यक-ब-यक देखकर,
तुम दबे पाँव ख्वाबों में आया करो.
जब है माना कि हम ही गुनहगार हैं.
उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो.
सब को झूठे तराने सुनाओ मगर,
आइनों से न सच को छुपाया करो
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(श्री दिलबाग विर्क जी)
चाँद-तारे भले कुछ न लाया करो
दिल वफा से मगर तुम सजाया करो | 
चाहते हो अगर चैन तुमको मिले
गलतियाँ दूसरों की भुलाया करो | 
खुद खड़े हैं कहाँ , तुम इसे देख लो
उँगलियाँ यूं न सब पर उठाया करो | 
देखना नफरतें जीत सकती नहीं
गीत बस प्यार के गुनगुनाया करो | 
क्यों डरो , हो कभी जीत मुश्किल नहीं
तुम सदा हौंसले आजमाया करो | 
सच यही मेहनत रंग लाती सदा
छोड़ आलस पसीना बहाया करो | 
दौलतें विर्क पानी भरेंगी सभी
प्यार की पाक दौलत कमाया करो |
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(श्री आलोक सीतापुरी जी) 
(१)
कम से कम ख्वाब में आ ही जाया करो
बावफा बन के वादा निभाया करो
कोई कमजोर दिल का न हो देख लो
जब भी चेहरे से पर्दा हटाया करो
ये हैं अनमोल मोती बहुत काम के
आँसुओं को न ऐसे गिराया करो
इन चरागों में जब रोशनी ही नहीं 
तुम जलाया करो या बुझाया करो
खून-ए-दिल से करो रोशनी दोस्तों
रूह से रूह को जगमगाया करो
कौन कैसा है पहले ये पहचान लो
उँगलियां यूं न सब पर उठाया करो
दूर हो जांयगी दिल की बेचैनिया
गीत 'आलोक' के गुनगुनाया करो
(२) 
बार-ए-गम मुस्कुरा के उठाया करो
गम के तूफां से नज़रे मिलाया करो
फूल के साथ काँटों से भी प्यार हो
हाँ मगर दामन-ए-दिल बचाया करो
ईद तो हो गयी देखते ही तुम्हें
बांह भर भर गले से लगाया जरो
आईना देखते हो तो देखो मगर
गमजदों से भी आँखें मिलाया करो
खाना-ए-दिल मेरा मुख़्तसर तो नहीं
प्यार के साथ इसमें समाया करो
आजमाया न हो आजमा लीजिए
उँगलियां यूं न सब पर उठाया करो
मशवरा है ये आलोक का साथियों
गम ज़दा रह के सबको हंसाया करो
(३)
मुफलिसों को न नाहक सताया करो 
हसरतों को न इनकी दबाया करो 
जब बुलाता है कोई तो आया करो 
बिन बुलाए कहीं भी न जाया करो 
बारहा कह चुका मैं शराबी नहीं 
मैकदे में न मुझको बुलाया करो 
जाम-ओ-मीना की हालत नहीं साकिया 
तुम निगाहों से मुझको पिलाया करो 
जिन्दगी भर जियो जिन्दगी के लिए 
मौत का खौफ दिल में न लाया करो 
कायदे से उठे फायदे से उठे 
उँगलियाँ यूं न सब पर उठाया करो 
देने वाले से ताब-ए-नज़र मांगकर 
तुम भी सूरज से आँखें मिलाया करो 
हर किसी को है पैगाम 'आलोक' का 
दीप से दीप को जगमगाया करो
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(श्री मजाज़ सुल्तानपुरी जी)
जब क़लम हाथ में तुम उठाया करो l 
गर्दिशों का सफ़र भूल जाया करो ll 
मेरी गज़लों को जब गुनगुनाया करो l 
प्यार को मेरे दिल में बसाया करो ll 
रूठना है तो रूठो मगर सोच लो l 
मै मनाऊँ तो तुम मान जाया करो ll 
तेरी हर बात का है भरोसा मुझे l 
बेसबब अपनी क़समें न खाया करो ll 
ज़ख्म पर ज़ख्म अपनों के खाते रहो l 
लोग हँसते हैं तुम खिलखिलाया करो ll 
हर बुराई लिपटने को तैयार है l 
अपने दामन को ख़ुद ही बचाया करो ll 
पहले अपनी कमी पर नज़र डाल लो l 
उंगलियाँ यूँ न सब पे उठाया करो ll 
मेरी बातें तुम्हारी भलाई की हैं l 
मेरी हर बात को मान जाया करो ll 
जानते हो की दुनियाए फ़ानी है ये l 
भूल कर भी न अपना पराया करो ll 
लोग दहशतपसंदी में मशगूल हैं l 
तुम मगर अम्न के गीत गाया करो ll 
छोड़ कर शरपसंदी का बेजा अमल l 
परचमें अम्न तुम भी उठाया करो ll 
हक़ परस्ती अगर तेरा शेवा है तो l 
आईना आईनों को दिखाया करो ll 
मान सम्मान हो जिस जगह पर तेरा l 
ऐसी महफ़िल में तुम आया जाया करो ll 
 
क्या ख़बर मुझसे वादा वफ़ा हो न हो l 
ऐसी क़समें न मुझको खिलाया करो ll 
 
जिसकी बुनियाद ख्वाहिश पे हो मुनहसर l 
ऐसे महलों को बेख़ौफ़ ढाया करो ll 
 
जिसने कुन कह के तख्लीक आलम किया l 
सामने उसके सर को झुकाया करो ll 
ऐ "मजाज़" उससे जाकर ये कह दे कोई l 
तुम न मज़लूम पर ज़ुल्म ढाया करो ll 
---------------------------------------------------------
(श्री विवेक मिश्र जी)
(१)
जान अपनी वतन पे लुटाया करो l 
प्यार के गीत गाया सुनाया करो ll 
 
देश की आबरू पे जो ख़तरा दिखे l 
छोड़ कर हल गनों को चलाया करो ll 
 
जब वतन के पुजारी चलें यात्रा l 
राह फूलों से उनकी सजाया करो ll 
 
लड़ रहे हैं जो सरहद पे उनके लिए l 
कुछ दुआ ही खुदा से मनाया करो ll 
 
जब कफ़न को मिले तो तिरंगा मिले l 
ख़्वाब सीने में ये ही सजाया करो ll 
रो पड़े न कहीं माँ शहीदों की भी l 
इसलिए आंसुओ को छुपाया करो ll 
 
तुमने भी ज़िन्दगी में करीं गलतियाँ l 
उंगलियाँ यूँ न सब पे उठाया करो ll 
ऐ "विवेक" अब न नफरत रहे देश में l 
ये पयाम अपना सबको सुनाया करो ll 
(२)
प्यार के दीप दिल में जलाया करो
दाग लगने से दामन बचाया करो 
रंग सच्चा दिखाता है खुद आईना
उंगलियाँ यूँ न सब पे उठाया करो 
राज़ खुल जायेगा फिर ग़में इश्क का
यूँ न आँखों से मोती गिराया करो 
ज़िन्दगी में जो रिश्वत के कायल रहे 
उनके कफ्नों में जेबें लगाया करो 
सब अमानत है अल्लाह की दोस्तों
भूल कर तुम न अपना पराया करो 
तेरे क़दमों को चूमेंगी खुद मंजिलें 
सिर्फ क़दमों को अपने बढ़ाया करो 
चाहते हो जो खुशियाँ रहे साथ में
मुस्कुरा कर ग़मो को भुलाया करो 
राह में सैकड़ो अड़चने आयेंगी
सोच कर हर कदम को बढ़ाया करो 
ऐ "विवेक" उसकी जादूगरी देख लो
उससे नज़रें न अपनी मिलाया करो
(३) 
दूर से ही न तुम मुस्कुराया करो
ज़ुल्म की बिजलियाँ न गिराया करो
ये हवाएं बहुत तेज़ हो जाएँगी 
दौड़ कर न दुपट्टा उड़ाया करो
चाँद बादल में छुप जायेगा शर्म से 
अपने रुख़ से न आंचल हटाया करो
रौशनी कम चरागों की हो जाएगी
तुम न महफ़िल में बे पर्दा आया करो
प्यास का हम गिला न करेंगे कभी
जाम नज़रों से अपनी पिलाया करो 
बागबां की भी नीयत बदल जाएगी 
तुम अकेले न गुलशन में जाया करो
आ न जाये कहीं पास मौजे बला 
देखने मौजे दरिया न जाया करो
अपनी यादों को रोको खुदा के लिए
इससे नींदें न मेरी उड़ाया करो
ख़ामियां दूर कर लो "विवेक" अपनी तुम
उंगलियाँ यूँ न सब पर उठा या करो 
---------------------------------------------------------------------
(श्री संदीप कुमार पटेल जी) 
(१)
नोट लेकर मुहर मत लगाया करो 
 कीमती वोट को यूँ न जाया करो 
 
 आत्म सम्मान अपना बचाया करो 
 मोल ईमान का मत लगाया करो
 
 हुक्मरानी ये फरमान सुन लो सभी 
 वोट देकर हमें भूल जाया करो 
 
 सब्र मजहब रहम प्यार औ यार सब 
 हो बुरा वक़्त तब आजमाया करो 
 
 आप नेता बनेंगे मुझे है यकीं 
 तीर शब्दों के यूँ ही चलाया करो 
 
 कौम की काली बदली जो छाने लगे 
 गर्दिशें साथ मिलके मिटाया करो 
 
 आँख से सांच को आप देखे बिना 
 उंगलिया यूँ न सब पर उठाया करो
 
 मुल्क को बाँटिये मत प्रदेशों में यूँ 
 हैं सभी मेरे अपने जताया करो 
 
 भ्रष्ट है तंत्र बहरा और गूंगा नहीं 
 करने फ़रियाद महफ़िल सजाया करो
 
 हो सके तो मुहब्बत लुटा दीप बन 
 आज नफरत भरी मत जलाया को 
(२) 
चोट खा कर जरा मुस्कुराया करो 
 गर जिगर संग से तुम लगाया करो 
 
 पत्थरों पे न आंसू बहाया करो 
 कीमती हैं बहुत यूँ न जाया करो 
 
 तोड़ दे दिल अगर बेबफा संग-दिल 
 दिल्लगी तुम समझ भूल जाया करो 
 
 हार के दिल मिली जीत के जश्न में 
 होश अपने नहीं तुम गंवाया करो 
 
 वो बुरा मान बैठें न तुमसे कहीं 
 आइना यूँ उसे मत दिखाया करो 
 
 जख्म चाहे मिले हों तुम्हे इश्क में 
 आग नफ़रत भरी मत जलाया करो 
 
 बेबफा थे मगर वो ये कहते रहे 
 यूँ मुहब्बत को न आजमाया करो
 
 ये जरुरी नहीं बेबफा सब मिलें 
 उंगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो 
 
 याद करके पुराने अहद इश्क के 
 दीप खुद को न तुम यूँ सताया करो 
-----------------------------------------------------------------
(श्री सुरिंदर रत्ती जी) 
रंग महफ़िल में जम के जमाया करो 
लुत्फ़ हर लम्हे का सब उठाया करो 
पाक दामन नहीं साफ दिल भी नहीं 
उंगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो 
चीज़ मिलती है बाज़ार में हर जगह 
मुफ्त पर आँख तुम ना गढ़ाया करो 
बरहना खेल गन्दा सियासत भरा 
ना खेलो तुम कभी ना सिखाया करो 
वो शजर क्या खिलेंगे बहारों में अब 
उन पे आरा न साहिब चलाया करो 
मंजिलें हैं वहीँ पास आती नहीं 
कुछ कदम आप नज़दीक जाया करो 
खा चुके हैं कई ठोकरें अब तलक 
मौत का डर हमें ना दिखाया करो 
बहरे ग़म ना सुनें अब किसी बात को 
कश ख़ुशी का ले उनको उड़ाया करो 
ज़िन्दगी बेवफ़ा भी गुज़र जायेगी 
हौसला तुम न "रत्ती" गिराया करो
---------------------------------------------------------------
(श्री शफाअत खैराबादी जी)
मेरे हमदम न आंसू बहाया करो 
रूठ जाऊं तो हंस कर मनाया करो
मिल के गैरों से मुझको न रुसवा करो 
इस तरह दिल न मेरा जलाया करो
चाहे जितनी भी हो जायें अब दूरियां 
दिल से हरगिज़ न हमको भुलाया करो
कैसे देखूं तुम्हें होश ही जब नहीं
साक़िया अब न इतनी पिलाया करो
पास आओ तो ये दिल बहल जायेगा
दूर से यूँ न तुम मुस्कुराया करो
जो भी कहना है कह दो झिझक किस लिए
राज़े दिल तुम न हमसे छुपाया करो
अपने दामन के दागों को खुद देख लो
उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो
पालते क्यूँ हो बुग्ज़ो हसद नफरतें
दिल को दिल से हमेशा मिलाया करो
बेवफा अब मिलेंगे "शफाअत" बहुत 
हर किसी से न दिल तुम लगाया करो
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दिल से धन्यवाद सुरिंदर भा जी, आपने सच कहा कई दफा मजबूरियों के चलते ऐसे शानदार आयोजनों से डोर भी रहना पड़ जाता है.
मुशायरे को बीच मे ही छोड़ कर जाने का मलाल सारी प्रविष्टियों को एक साथ पढ़कर गायब हो गया इस बार तो योगराज जी की तीन गज़लें देख कर हैरत रही क्योंकि आम तौर पर यह कम ही देखने मे आता है अंबरीष जी की मजाहिया गजल भी उसी हैरत का हिस्सा रही एक सफल मुशायरे के लिए संचालक मण्डल को अनेकानेक बधाई
व्यस्तता के कारण अपनी गजल पर उपस्थित हुये मित्रों को उस समय धन्यवाद प्रेषित नही कर सकी जो अब देना चाहूंगी
आदरणीय योगराज जी ने कुछ् सुझाव प्रेषित किए थे जिस पर मै उस समय चर्चा नही कर सकी जिसका मुझे अफसोस है पर शीघ्र ही वह शेर परिवर्तन के साथ प्रस्तुत करूंगी और उस पर आपके सुझाव चाहूंगी
आदरणीय सौरभ जी किसी एक शेर की विषयवस्तु से मुतमइन नही थे....तो सौरभ जी आपको आश्वस्त करती हूँ उस शेर को गजल से खारिज कर दिया है ..............कुछ और लिखूँगी
आगे भी मार्गदर्शन की विनम्र अपेक्षा है ......... सादर
दिल से शुक्रिया सीमा अग्रवाल जी. तीन ग़ज़ल लिखने का क्या फायदा जब आपकी शाबाशी ही नहीं मिली.
वाह बहुत खुशी हुई यह जान कर की ग़ज़लों के उस्ताद को भी शाबासी देने की काबलियत है मुझ में ...पूरा फ़ायदा उठाऊँगी इस बात का
दोस्ती के मवाके बनाया करो 
दुश्मनी को दिलों से मिटाया करो .......अमल में लाने लायक बहुत उम्दा बात 
गर हकीकत पसंदी के शौक़ीन हो 
आइने से नज़र मत हटा या करो ........बिलकुल दुरुस्त बात  
रूप की धूप की रौशनी आरज़ी 
रूह की चांदनी में नहाया करो  .........बहुत खूब सौ प्रतिशत सही 
तुम गुलों पे ज़मीमे निकालो भले
तितलियाँ की हलाकत भी शाया करो  ..........कमाल की बात कमाल का ढंग 
आसमानों में होगी ग़ज़ल की महक 
गर ज़मीनों को मौजू बनाया करो ......वाह वाह 
आरज़ू हो अगर रौशनी की तुम्हें 
अपने हुजरे से बाहर तो आया करो ...........जी .......कभी-कभी हद से बेहद होना भी ज़रूरी है 
रात आषाढ़ की फूस की झोपडी 
राग दीपक यहाँ तो न गाया करो .......दिल को छूने वाला शेर .........पहली गज़ल के लिए मुबारकबाद 
सारी गज़ले एक से बढ़कर एक
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