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मासिक काव्य गोष्ठी दिनांक २१.११.२०१३

       प्रथम इस बात के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ कि इतने विलम्ब से इस रिपोर्ट को आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ. गत २ माह का समय कुछ पारिवारिक समस्याओं के कारण अति व्यस्तता का रहा जिनके चलते इस रिपोर्ट को प्रस्तुत करने में भी अत्यधिक विलम्ब हो गया.

       पूर्णिमा जी द्वारा प्रति वर्ष आयोजित होने वाले ‘नवगीत परिसंवाद’ में सम्मिलित होने का जब निमंत्रण मिला तो इस आयोजन में सम्मिलित होने के लिए आने वाले वरिष्ठ रचनाकारों का सानिध्य ओबीओ लखनऊ चैप्टर की मासिक गोष्ठी में प्राप्त करने के लोभ का संवरण नहीं कर सका और इस प्रयास में लग गया कि आयोजन हेतु उनकी सहमति प्राप्त हो सके. ओबीओ सदस्या सीमा अग्रवाल जी ने सर्वप्रथम कार्यक्रम के लिए अपनी सहमति दी और आयोजन के लिए २१ तारीख तय कर दी गयी. हम सबने प्रयास किये और कई गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति सुनिश्चित हो सकी.

       आदरणीय धनन्जय सिंह जी, डॉ. कैलाश निगम जी, डॉ. रंगनाथ मिश्र ‘सत्य’ जी, सौरभ पाण्डेय जी, वीनस केसरी जी, अशोक पाण्डेय ‘अशोक’ जी, कल्पना रमानी जी, सीमा अग्रवाल जी सहित करीब ४० रचनाकार इस आयोजन में उपस्थित हुए. कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री रंगनाथ मिश्र ‘सत्य’ जी द्वारा की गयी जबकि मुख्य आतिथ्य श्री धनंजय सिंह जी द्वारा स्वीकार किया गया.

       कार्यक्रम का शुभारम्भ अतिथियों द्वारा माँ शारदे की प्रतिमा को मालार्पण तथा दीप प्रज्ज्वलन द्वारा हुआ. ओबीओ लखनऊ चैप्टर के सदस्यों द्वारा अतिथियों के स्वागत के उपरांत काव्य पाठ का दौर प्रारंभ हुआ.

       काव्य पाठ के लिए सर्वप्रथम आमंत्रित किये गए लखनऊ के पुनीत श्रीवास्तव जी ने अपने सरस काव्य पाठ से सबका दिल जीत लिया-

‘हाँ तुझसे बेहतर तो तेरी याद है, जो अक्सर आती है

मेरी पलकों पे तेरे नाम के मोती सजाती है’

क्षितिज श्रीवास्तव लखनऊ के साहित्य जगत में अपनी संलग्नता के कारण जाने जाते हैं. उनकी प्रस्तुति की एक बानगी यहाँ प्रस्तुत है-

‘दीपक का अपने तल्ले से कितना है व्यवहार गलत

इक आँगन के पेड़ पे दूजे आँगन का अधिकार गलत’

लखनऊ के युवा हस्ताक्षर विवेक मालवीय की रचना की एक झलक देखिये-

‘बनकर कस्तूरी मेरे फीके ख्वाबों को महकाना तुम

लाज का घूँघट ढलकाकर मुझसे मिलने आना तुम’

सुभाष चन्द्र ‘रसिया’ की रचना के बोल कुछ इस तरह के थे-

‘बाबुल की हूँ मैं बेटी इसपे विचार करो

मेरा सूना हुआ संसार, इस पे विचार करो

संदीप कुमार सिंह अपनी रचनाओं के विशिष्ट तेवरों के लिए जाने जाते हैं-

‘लाशों के जो ढेर पर दाउद सा बनकर

धन ही कमाए वो महान नहीं होता है

रमजान वाले पाक़ माह में जो हत्या करे

कुछ भी हो वो मुस्लमान नहीं होता है’

अज़हर जमाल ने देश के प्रति अपने प्रेम को कुछ यूँ व्यक्त किया-

‘काल-चक्र है दुश्मन का, पर यह स्वर्ग हमारा है

होगी जान किसी को प्यारी, हमें तिरंगा प्यारा है’

संजीव ‘मधुकर’ अपने गीतों की मधुरता के लिए जाने जाते हैं-

‘मैं मधुर गीत गाता रहा उम्र भर

मैं सदा मुस्कराता रहा उम्र भर’

प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा ने अपनी अभिव्यक्ति कुछ यूँ प्रस्तुत की-

‘रणचंडी का रूप धारकर खुद ही आगे बढ़ना होगा

अपने अधिकारों की खातिर जग से प्रतिपल लड़ना होगा’

अपनी रचनाओं की गंभीरता के लिए पहचाने जाने वाले एस. सी. ब्रह्मचारी की प्रस्तुति कुछ इस तरह की थी-

‘पर्वत-पर्वत क्यों भागूँ मैं, किसने मुझको भटकाया है

करवट लेते रात गुज़रती यह कैसा मौसम आया है

कभी घिरा मैं तन्हाई से कभी घटाओं ने आ घेरा

कैसा है यह जीवन मेरा!’

इस आयोजन में ओबीओ सदस्य गोपाल नारायण श्रीवास्तव द्वारा प्रस्तुत रचना का आनंद लीजिये-

‘काले बादल चाँद छिपाए

एक किरण भी नज़र न आए

रे मन! कैसे धीर गहूं मैं?’

ओबीओ के सक्रिय सदस्य केवल प्रसाद की प्रस्तुति कुछ यूँ थी-

‘भाव दशा अति सम्यक है गुण

ध्यान धरे नित जीवनदायक

प्रेम प्रकाश जले उर अंतर

शान बढ़े चित हो सुखदायक’

मनोज शुक्ल ‘मनुज’ छंदों और गीतों पर अपनी पकड़ के लिए जाने जाते हैं-

‘वक्त का चेहरा घिनौना हो गया

आदमी अब कितना बौना हो गया’

ओबीओ लखनऊ चैप्टर के सक्रिय सदस्य राहुल देव द्वारा प्रस्तुत रचना की बानगी देखें-

‘आत्म शांति मुक्ति भाव ज्ञान बांटते चलो

विचार क्रांति की वृहत मशाल थामते चलो’

मैंने अपना एक गीत प्रस्तुत किया, जिसके बोल थे-

‘गाँव-नगर हुई मुनादी

हाकिम आज निवाले देंगे’

डॉ. आशुतोष बाजपेयी के छंदों पर सभी वाह-वाह कर उठे-

‘उठो चण्डिका के खप्पर को श्रोणित से भरना होगा

कुल अधर्मियों का पूरा उच्छेद तुम्हें करना होगा’

ओबीओ सदस्य शैलेन्द्र सिंह ‘मृदु’ अपनी विशिष्ट शैली के कारण अपनी अलग पहचान रखते हैं-

‘कलम लिखेगी आज कहानी झांसी वाली रानी की

जय होगी घर-घर में केवल वीर व्रती बलिदानी की’

संध्या सिंह की गीत के साथ ही ग़ज़ल पर भी भरपूर पकड़ है. उनकी प्रस्तुति के अंश देखिये-

आज माफ़ी ने छोड़ी कई गलतियाँ

गलतियों को लगा कि फतह हो गयी

कल्पना रमानी वह नाम है जिसे साहित्य के प्रति उनकी संलग्नता के लिए जाना जाता है.  

‘शब्द-शब्द में शहद घोलकर

चेहरे पर चिकनाई मल ली’

वीनस केसरी ग़ज़ल में एक स्थापित नाम हैं. उनकी प्रस्तुति ने सबका मन मोह लिया-

‘दिल से दिल के बीच जब नजदीकियां आने लगीं

फैसले को खाप की कुछ पगड़ियाँ आने लगीं

आरियाँ खुश थीं कि बस दो-चार दिन की बात है

सूखते पीपल पे फिर से पत्तियां आने लगीं’

ओबीओ सदस्या सीमा अग्रवाल की रचना सुनकर सब मंत्रमुग्ध हो गए-

‘हूँ अपरिचित स्वयं से ही

मैं अभी तो

तुमसे कैसे कह दूँ तुमको

जानती हूँ’

ओबीओ प्रबंधन सदस्य श्री सौरभ पाण्डेय की प्रस्तुति सुनकर मन बस वाह-वाह कर उठा-

‘बिंदु -बिंदु जड़

बिंदु-बिंदु हिम

रिसून अबाधित आशा अप्रतिम

झल्लाए से चौराहे पर

किन्तु, चाहना की गति मद्धिम

विह्वल ताप लिए तुम ही/अब

रेशा-रेशा खींचो.....

   तन पर......’

डॉ. कैलाश निगम के गीत जनमानस की आवाज़ बनकर उभरते हैं. उनकी प्रस्तुति इस तथ्य का प्रमाण थी-

‘लोक शक्ति की ज्वाला से सांकलें पिघलती हैं

अन्धकार की ड्योढ़ी पर कंदीलें जलती हैं

योगेश्वर सारथी स्वयं हो जाते जयरथ के

और शकुनियों को अपनी ही चालें छलती हैं

  तब पूरे करने पड़ते सत्ता को आश्वासन’ 

अशोक पाण्डेय ‘अशोक’ साहित्य के क्षेत्र में एक स्थापित नाम हैं और छंदबद्ध रचनाओं में अपनी विशिष्टता के लिए जाने जाते हैं- 

‘छलिया कहाते थे परन्तु ब्रजराज देखा

पग-पग पे सदैव आप ही छले गए

गोपियोंके चीर जो चुराए यमुना के तीर

वे भी सब द्रौपदी के चीर में चले गए’

गीत/नवगीत के क्षेत्र में धनंजय सिंह का नाम किसी परिचय का मोहताज़ नहीं. उनकी प्रस्तुति की एक बानगी देखिये-   

‘एक कलम का धन बाकी था

लो तुमको यह धन दे डाला

पर कैसा प्रतिदान तुम्हारा

मुझको सूनापन दे डाला’

डॉ. रंगनाथ मिश्र ‘सत्य’ अपने अगीत आन्दोलन के कारण अपनी अलग पहचान बना चुके हैं. उनकी रचना की एक झलक यहाँ प्रस्तुत है-

‘जीवन की इस नई डगर पर

गिरते-गिरते सम्हल गया हूँ

  अम्बर मोती बरसाता है

  कंचन मन को बहलाता है

  आकर्षण की भीड़ लगी है

  रेशम जाल बाँध जाता है 

लेकिन तोड़ चूका परिपाटी

नए समय में बदल गया हूँ’

       ओबीओ लखनऊ चैप्टर के संयोजक श्री शरदिंदु मुखर्जी के धन्यवाद ज्ञापन के उपरांत यह आयोजन समाप्त हुआ.

                                                                               - बृजेश नीरज 

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देर सही. आये तो .. :-))

बधाई

:)

आदरणीय सौरभ सर जी 

विलम्ब हेतु खेद है 

स्नेह देते रहिये सादर 

आदरणीय बृजेश जी 

ओबीओ लखनऊ चैप्टर की नवम्बर काव्य गोष्ठी की बहुत सुन्दर रिपोर्ट प्रस्तुत की है.. पारिवारिक ज़िम्मेवारियों और कार्यालयी व्यस्तताओं के बीच में से कुछ समय चुरा आप जब जब संभव होता है ऐसे यादगार पलों को रिपोर्ट में पिरो पर सबके साथ अपने मंच पर सांझा कर पाते हैं..आपके इस दायित्व निर्वाह के लिए आपको साधुवाद..

सभी उपस्थित सुधिजनो की कविताओं के अंशों को पढ़ कर बहुत मज़ा आया... और ये भी अफ़सोस हुआ की काश हम भी वहाँ उपस्थित होते और काव्य रस का श्रवण कर आनंद उठा पाते... खैर!

कुछ भी हो, लखनऊ चैप्टर आप सब साहित्य प्रेमियों के सक्रिय सहभागिता और संलग्नता से अपनी महक बिखेर रहा है..जो हम सब तक दूर बैठे ही ऐसी सार्थक सशक्त रिपोर्ट्स के माध्यम से पहुँच जाती है 

इस सुन्दर रिपोर्ट प्रस्तुति के साथ काव्य गोष्ठी के यादगार पलों को सबके साथ सांझा करने के लिए हार्दिक धन्यवाद.

सादर.

आदरणीया प्राची जी आपका हार्दिक आभार! यह सुखद संयोग ही है और साथियों के सतत प्रयास का परिणाम है कि इस दौरान कई वरिष्ठों का सानिध्य प्राप्त होने का सुअवसर मिल सका. काश! ऐसा होता कि आप सब यहीं लखनऊ में रह रहे होते! :)))))))

आदरणीय बृजेश जी मुझसे कैसी नाराजगी है भाई !! मेरा नाम और रचना की पंक्तियाँ कहाँ है ? 

आदरणीया अन्नपूर्णा जी, आपसे नाराजगी का तो प्रश्न ही नहीं उठता. दरअसल मेरे पास जो पेज थे काव्यांशों के उनमें वह पेज नहीं था जिसमें आपने पंक्तियाँ लिखी थीं. संभवतः कुछ और साथी भी इस रिपोर्ट में सम्मिलित होने से रह गए होंगे. मैं सभी से क्षमा प्रार्थी हूँ!

आप आई थीं उस आयोजन में?

जी मै आई थी और कल्पना दी का सम्मान भी मैंने ही किया था । मेरी कविता थी नव युवा हे चिर  युवा !! 

 जी! आदरणीया, आप पंक्तियाँ मुझे भेज दें, जिससे इस रिपोर्ट में सम्मिलित कर सकूँ!

आदरणीय ब्रजेश जी 

सादर 

सुन्दर आयोजन व् इस प्रस्तुतीकरण हेतु आभार 

अन्नपूर्णा जी कभी कभी ऐसा भी हो जाता खूब रहो साथ हाथ छूट जाता है 

आपका भी आभार . सारा जग जानता है की इस आयोजन में आप दूसरे शहर से पधारकर शोभा बढ़ाती  हैं. 

आपका आभार आदरणीय! हाथ नहीं छूटा है, कागज़ छूट गया!

आदरणीय बृजेश जी, मैं जानता हूँ कि आप जब यह रिपोर्ट भेज रहे थे उस समय भी आप स्वयं शारीरिक रूप से पूरी तरह स्वस्थ नहीं थे. फिर भी आपने अपनी ज़िम्मेदारी को पूरा किया. आपका हार्दिक आभार. हर आयोजन के बाद उसका रिपोर्ट जब लिखा जाता है तो किसी न किसी का उल्लेख होना छूट जाता है अनवधानतावश. किसी को भी इसका अन्यथा नहीं लेना चाहिए. सभी रचनाकार प्राज्ञ हैं...उनसे इतनी आशा तो की जा सकती है..

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