For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इलाहाबाद में ’हिन्दी दिवस’ आयोजित, सम्मानित हुए साहित्यकार

इलाहाबाद स्थित होटल ब्रिजेज के परिसर में अवस्थित ’विशाल’ के सभागार में दिनांक १४ सितम्बर को ’लायन्स क्लब इण्टरनेशनल (अनुभव)’ की ओर से ’हिन्दी दिवस’ का आयोजन किया गया. इस अवसर पर परिसंवाद हेतु ’आज के संदर्भ में हिन्दी की प्रासंगिकता’ शीर्षक तय था. इस विषय पर विन्दुवत सार्थक परिचर्चा हुई. इसमें शहर के आमंत्रित प्रबुद्धजनों ने खुल कर अपने-अपने विचार रखे. सुखद यह रहा कि ऐसे अवसरों पर निभाये जाने वाले अमूमन भावुक एकालापों से बचते हुए सभी वक्ताओं ने हिन्दी के आधुनिक स्वरूप पर न केवल सार्थक संवाद बनाया, अपितु भाषा सम्बन्धी समस्याओं को मुखर रूप से पटल पर रखा. हिन्दी की स्पष्ट बनती सर्वस्वीकार्यता को रेखांकित करते हुए कई पहलू भी सामने आये और संकल्प के तौर पर भी कई घोषणायें की गयीं.

भाषा सम्बन्धी मान्यताओं, वर्तमान परिदृश्य में हिन्दी के स्वरूप तथा किसी भाषा की प्रासंगिकता पर इलाहाबाद के साहित्यकार सौरभ पाण्डेय ने सर्वप्रथम अपने विचार रखे. श्री सौरभ ने कहा कि हिन्दी का स्वरूप जो आज दीख रहा है इससे घबराने अथवा चिढ़ने की आवश्यकता ही नहीं है. कोई जीवित और सर्वस्वीकार्य भाषा हर काल में आवश्यकतानुसार शब्द-स्वरूप ग्रहण करती है. इसके लिए आपने भाषा को ध्वनि-संकेतों का क्लिष्ट एवं अपरिहार्य उद्भूत कहा जोकि अत्यंत प्रभावित होने वाली संज्ञा है. वैदिक संस्कृत से संस्कृत, फिर प्राकृत-पालि से होती हुई एक भाषा का हिन्दी के रूप में नामित होना कोई साधारण घटना नहीं है. इस पूरी प्रक्रिया में एक भाषा के तौर पर आये कई-कई बदलावों को श्री सौरभ ने क्रमबद्ध ढंग से रखा. उन्होंने कहा कि पालि के बाद का बहुत बड़ा काल-खण्ड अप्रभंश भाषाओं का रहा है जब अन्यान्य क्षेत्रीय भाषायें जनसामान्य के भाव-संप्रेषण का माध्यम थीं. उन्हीं काल-खण्डों की औपचारिकता के कारण ही हिन्दी आज का स्वरूप पा सकी है. भाषा के रूप में आपने हिन्दी की अनिवार्यता को इसके उद्भवकाल से ही जोड़ा. आपने कहा कि हर काल में किसी भाषा के चार प्रारूप हुआ करते हैं. एक शिक्षित वर्ग के लिए, दूसरा अर्द्धशिक्षित वर्ग के लिए, तीसरा अशिक्षित वर्ग केलिए और चौथा व्यावसायिक वर्ग के लिए. किसी भाषा का वास्तविक स्वरूप चौथे वर्ग के कारण ही आकार पाता रहा है. हिन्दी की सार्वभौमिक रूप से स्वीकार्य होने में कोई समस्या ही नहीं है. सारी समस्या है राजनीतिक है. श्री सौरभ के अनुसार हिन्दी को राजभाषा और राष्ट्रभाषा की संज्ञा में उलझा कर विवादित कर दिया गया है. वस्तुतः हिन्दी को संपर्क भाषा के रूप में स्वीकार किया जाना चहिये था, जोकि यह वास्तव में है भी. हिन्दी प्रदेश की समृद्ध क्षेत्रीय या आंचलिक भाषाओं को उन राज्यों की भाषा के तौर पर स्वीकृत होना था. यही प्रक्रिया अ-हिन्दी राज्यों के गठन के समय अपनायी गयी थी. संपर्क भाषा के तौर पर संवैधानिक मान्यता न मिलने कारण ही हिन्दी का एक भाषा के तौर पर अन्यान्य अ-हिन्दी भाषी राज्यों में विरोध होता है. जबकि उन्हीं राज्यों के व्यवसायी हिन्दी को कितनी मुखरता से अपनाते हैं. सौरभ पाण्डेय द्वारा उठाये गये इस विन्दु का आगे सभी वक्ताओं ने समर्थन किया.

दैनिक हिन्दुस्तान से सम्बद्ध वरिष्ठ पत्रकार श्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह ने भाषा के प्रयोग में साधारणीकरण पर जोर दिया. किसी भाषा के सरकारी स्वरूप में जनसामान्य की अभिव्यक्ति प्रमुखता से स्थान नहीं पा सकती. आपने अपने प्रकाशन विभाग की भाषा सम्बन्धी कई-कई घटनाओं को सप्रसंग उद्धृत किया जो रोचक होने के साथ-साथ यह स्पष्ट कर रही थीं कि हिन्दी का शाब्दिक स्वरूप कृत्रिम हो जाय तो कितनी हास्यास्पद स्थितियाँ उत्पन्न होती हैं. आगे श्री बृजेन्द्र प्रताप ने कहा कि किसी भाषा का व्याकरण उस भाषा को अनुशासित करने के रूप में सामने आता है. परन्तु, अक्स र देखा गया है कि व्याकरण निरंकुश हो जाय तो उसी भाषा के लगातार नेपथ्य में जाने का कारण भी बन जाता है. किसी भाषा के लिए उसका व्याकरण बहुत ही आवश्यक है, लेकिन उसका निरंकुश होना उचित नहीं. उदाहरण स्वरूप आपने संस्कृत तथा लैटिन आदि भाषाओं के नाम गिनाये. श्री बृजेन्द्र ने इस तथ्य पर जोर दिया कि वैश्वीकरण का आधार व्यवसाय है. हिन्दी चूँकि एक बड़े भूभाग में बोली जाती है तो इसे अनदेखा किया जाना संभव ही नहीं है. यह अवश्य है कि प्रदूषित हिन्दी पर कठोरता से प्रहार हो.

इससे पहले मुख्य अतिथि कर्नल सुधीर पराशर, (हेड, इलाहाबाद एनसीसी विंग), आयोजन के अध्यक्ष श्री अरुण जयसवाल, एएनआइ के चीफ़ ब्यूरो श्री वीरेन्द्र पाठक, रेलवे डीआरएम कार्यालय में पीआरओ श्री अमित मालवीय, दैनिक हिन्दुस्तान के वरिष्ठ पत्रकार श्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह तथा क्लब के सचिव श्री प्रदीप वर्मा ने दीप प्रज्जवलित कर आयोजन का शुभारम्भ किया.

आयोजन मुख्य रूप से परिचर्चा पर ही केन्द्रित होने से वक्ताओं ने हिन्दी भाषा के प्रादुर्भाव तथा इसकी प्रासंगिकता से सम्बन्धित कई-कई विन्दुओं को उठाये, जिसपर अमूमन ऐसे अवसरों पर बात होती ही नहीं.

डीआरएम कार्यालय के पीआरओ श्री अमित मालवीय ने हिन्दी के कार्यालयी प्रयोग में अपने अनुभवों को साझा किया. आपने भी कार्यालयी हिन्दी के प्रारूप पर जोरदार प्रहार किया. आपका कहना था कि प्रश्न यह नहीं है कि हिन्दी एक भाषा के तौर पर कितनी प्रासंगिक है, बल्कि प्रश्न यह होना चाहिये कि आज के दौर की भाषा कैसी हो ? सी-सैट के विवाद पर भी आपने अच्छा प्रकाश डाला. आपका कहना था कि ऐसी किसी समस्या को अंग्रेज़ी और हिन्दी के विवाद से जोड़ कर देखा जाना एक विशिष्ट वर्ग का कुत्सित प्रयास है. भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम है तो उसके मानक अवश्य हों. शाब्दिक रूप से ऐसे ही किसी मानक का न होना सारे विवादों की जड़ है. आपने हिन्दी के विकास के क्रम में राज्य के संरक्षण को अपरिहार्य नहीं माना. बल्कि राज्य से इस सम्बन्ध में सहयोगी होने की अपेक्षा की.


श्रीमती आभा त्रिपाठी, एसोसियेट प्रोफ़ेसर, सीएमपी डिग्री महाविद्यालय ने भी हिन्दी के वर्तमान स्वरूप के व्यावहारिक पक्ष को प्रमुखता से रखा. श्रीमती आभा ने बेसिक शिक्षा के तौर पर हिन्दी को सशक्त करने पर जोर दिया. क्योंकि बच्चे अपनी भाषा में अभिव्यक्ति को सुगढ़ता से रख पाते हैं. बेसिक शिक्षा में हिन्दी के प्रभाव को नकारना भाषा सम्बन्धी सारी समस्याओं का उद्गम है. आपने इशारा किया कि एक वर्ग समाज में पनप चुका है जो अपने बच्चों से हिन्दी में बातचीत ही नहीं करता. सरकार द्वारा शिक्षकों की भूमिका को लेकर ढुलमुल नीति अपनाने को भी उन्होंने विशेष तौर पर उद्धृत किया. शिक्षक से आज अपेक्षा की जाती है कि वह पढ़ाने के अलावा भी बहुत कुछ करे. आजका शिक्षक शिक्षा के प्रसारक की नहीं, बल्कि खानसामा की भूमिका में अधिक है. हिन्दी के अनगढ़ प्रयोग के लिए आपने आज के वातावरण को ही दोषी बताया. इसी महाविद्यालय की डॉ. सरोज सिंह तथा डॉ. रश्मि कुमार ने भी हिन्दी प्रयोग के कई व्यावहारिक पक्षों को सामने रखा. डॉ. सरोज सिंह ने हिन्दी और इसके भाषा-भाषियों के प्रति अन्य राज्यों में अहसासेकमतरी (हीन भावना) को भी प्रमुखता से उठाया. अपने व्यक्तिगत अनुभवों को भी आपने साझा किया जब आप विद्यार्थी के तौर पर कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज में अध्ययन कर रही थीं. डॉ. सरोज सिंह ने सुझाया कि हिन्दी को आजीविका से जबतक नहीं जोड़ा जायेगा तबतक इस क्षेत्र के जन का ही नहीं, इस क्षेत्र का ही विकास नहीं हो पायेगा. डॉ. रश्मि कुमार ने हिन्दी दिवस की प्रासंगिकता पर ही प्रश्न उठा दिया. पितृपक्ष में हिन्दी दिवस का आयोजन होना लाक्षणिक रूप से एक विशेष भाव को जन्म देता है, कि हम एक जीवित भाषा पर चर्चा कर रहे हैं या किसी मृत भाषा का तर्पण कर रहे हैं !

एएनआइ के चीफ़ ब्यूरो श्री वीरेन्द्र पाठक ने वक्तव्य में आधुनिक तकनीक के कारण हिन्दी को सर्वाधिक लाभ होने की बात कही. एक भाषा के लिए इससे बड़ी बात क्या हो सकती है कि आज का बाज़ार उसके लिए विशेष प्रावधानों के अंतर्गत वातावरण बना रहा है ! आगे, हिन्दी भाषा-भाषियों का दायित्व है कि इस वातावरण का अधिकाधिक लाभ लें. विभिन्न चैनलों पर उद्घोषकों के लिए टेलिप्रॉम्प्टर की सुविधा हो या नेट पर देवनागरी लिपि केलिए ट्रंसलिटरेशन की सुविधा हो अथवा विभिन्न युनिकोड फ़ॉण्ट का प्रयोग हो, हिन्दी भाषा को सुविधा प्रदान करने के लिए आधुनिक तकनीक सबसे अधिक क्रियाशील है. श्री वीरेन्द्र ने लायन्स क्लब इण्टरनेशनल (अनुभव) के इस आयोजन को ही अत्यंत प्रासंगिक बताया जहाँ परिसंवाद के लिए कोई अवसर संभव हो पाया है. अन्य शहरों में परिसंवाद के अवसर शायद ही उपलब्ध होते हैं. वस्तुतः ऐसे आयोजनों में एकालापों और आख्यानों के दवाब में संवाद के अवसर ही बन्द हो जाते हैं. चूँकि, इलाहाबाद में परिचर्चाओं और संवादों का शहर है. यही कारण है कि ’हिन्दी दिवस’ के नाम पर एक सार्थक चर्चा चल रही है. इस सार्थक संवाद को आयोजित करने के लिए आपने लायन्स क्लब इण्टरनेशनल (अनुभव), इलाहाबाद की भूरि-भूरि प्रशंसा की. हिन्दी को संप्रेषण की इकाई मात्र मानने से आगे आपने इसे संस्कार की इकाई का दर्ज़ा दिया. ज्ञातव्य है कि श्री वीरेन्द्र पाठक के अथक सहयोग से इलाहाबाद जनपद के सभी स्वतंत्रता सेनानियों तथा क्रान्तिकारियो की सूची निर्मित हो रही है, जो आज विस्मरण का शिकार हैं. हिन्दी और उर्दू को भाषा के तौर पर बाँटने के प्रयासों के सफल हो जाने के कारण ही, आपके अनुसार, अंग्रेज़ इस क्षेत्र में अपनी जन-विरोधी नीतियाँ लागू कर पाये. भाषायी वैमनस्य ही वह कारण हुआ कि हिन्दी भाषी अपनी प्रतिष्ठा तक से समझौता करने को बाध्य हो गये. हिन्दी के ही समानान्तर उर्दू के नाम पर एक और भाषा खड़ी करने का षडयंत्र कितना सफल और सटीक रहा कि अंग्रेज़ इस भूभाग की संस्कृति तक से मनमाना कर पाये. जबकि हिन्दी और उर्दू का प्रारम्भ हिन्दवी के नाम से हुआ था. श्री वीरेन्द्र का कहना था कि जबतक हिन्दी भाषी हिन्दी को अपने सम्मान से नहीं जोड़ेंगे तबतक न इस भूभाग का भला होगा, न इस भाषा का. सरकार से व्यावहारिक सहयोग के न मिलने बावज़ूद हिन्दी का व्यापक प्रयोग इस तथ्य के प्रति आश्वस्त करता है कि कोई जीवित भाषा सतत प्रवहमान सरिता की तरह हुआ करती है, जिसके स्वरूप में आवश्यक परिवर्तन होते रहते हैं. इसके दीर्घ स्वरूप में प्रासंगिक अवयव वही हो पाता है, जिसकी सामाजिक तौर पर प्रासंगिकता बनी रहती है.

कर्नल सुधीर पराशर ने अपने उद्बोधन में हिन्दी की प्रासंगिकता को भारतीयता से जोड़ कर देखने का आह्वान किया. हिन्दी स्वयं में कोई संकीर्ण या बन्द भाषा नहीं है. भारतीय सेना का उदाहरण देते हुए आपने कहा कि यहाँ किसी संकीर्णता को कोई स्थान नहीं है, इसी कारण हिन्दी भारतीय सेना की एक सर्वमान्य भाषा है. देशप्रेम की अभिव्यक्ति हिन्दी भाषा का एक प्रमुख अवयव है. कर्नल सुधीर बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं, आपने सस्वर ग़ज़ल प्रस्तुत कर उपस्थित श्रोताओं को चौंका दिया.

इस आयोजन का सफल संचालन डॉ. वर्तिका श्रीवास्तव ने किया. आपके संचालन से उद्बोधनों में तारतम्यता बनी रही. तथा, धन्यवाद ज्ञापन किया श्री शुभ्रांशु पाण्डेय ने. शहर के कई गणमान्य और सुधीजनों की उपस्थिति से आयोजन अत्यंत सफल रहा, जिनमें श्री नितिन यथार्थ, श्री अजित सिंह, श्री जी. यादव, श्री सीएल सिंह, श्री रणवीर सिंह आदि प्रमुख रहे.

आयोजन के समापन के पूर्व हिन्दी भाषा के विकास तथा रचनाकर्म के लिए कर्नल सुधीर पराशर के कर-कमलों द्वारा श्री सौरभ पाण्डेय को मानद-पत्र तथा अंगवस्त्र दे कर सम्मानित किया गया. इसी क्रम में हिन्दी क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के लिए श्री वीरेन्द्र पाठक को, रेलवे में हिन्दी को प्रश्रय देने के लिए श्री अमित मालवीय को, दैनिक हिन्दुस्तान के वरिष्ठ पत्रकार श्री बृजेन्द्र प्रतप सिंह को, हिन्दी के विकास में अमूल्य योगदान करने के लिए श्री श्याम सुन्दर पटेल को भी सम्मानित किया गया.

चार घण्टे चले इस आयोजन का समापन प्रीतिभोज से हुआ.  
***********************

Views: 1906

Reply to This

Replies to This Discussion

हिंदी दिवस के सफल आयोजन पर बधाई .

सादर धन्यवाद आदरणीय विजय शंकरजी.

आदरणीय सौरभ जी

आपकी सुसंगठित  आख्या पढ़कर ही आयोजन की भव्यता का आभास मिलता है i इतने व्यापक स्तर पर कार्यक्रम का  होना हिन्दी के लिए शुभ संकेत है  i मै भी इस सत्य को मानता हूँ कि  हिन्दी को आजीविका से जोड़ने के प्रयास होने चाहिए i विडंबना है कि भारत में ही कार्पोरेट जगत ने अंगरेजी को व्यवसाय में प्राथमिकता दे रखी है . मै  अंग्रेजी के ज्ञान के विरुद्ध  नहीं हूँ पर हिन्दी के स्थान पर उसे तरजीह मिले यह न भारत के हित में उचित होगा और न हिन्दी के हित में i  देश के सरमायादारों को इस दिशा में सोचना चाहिए i आपके आलेख पर पुनः बधाई i सादर i

आपके कहे से मैं पूरी तरह सहमत हूँ, आदरणीय गोपाल नारायनजी.
यह सही है कि भारत में कॉर्पोरेट जगत ने हिन्दी को हाशिये पर रखने का बड़ा काम किया है. इसे मैं रोज देखता भोगता हूँ. लेकिन एक बात यह भी स्पष्ट कर दूँ कि कॉर्पोरेट जगत व्यवसाय की भाषा जानता है आदरणीय. न अंग्रेज़ी न हिन्दी. जैसा बाज़ार वैसी भाषा.
यह अवश्य है कि रोटी किसी भाषा के समाज में सबल ढंग से बने रहने की पहली शर्त है. जो भाषा दाल-रोटी दे वही भाषा समाज बोलता है. वर्ना ’पढ़े फ़ारसी बेचे तेल’ की उक्ति यों ही प्रचलित हो गयी थी जब अंग्रेज़ी पाँव जमाने लगी थी.
आपकी शुभकामनाओं के सादर धन्यवाद

हिन्दी दिवस के सफल आयोजन पर बधाई ! 
आयोजन की सफलता सार्थक मंथन  हिंदी भाषा हित में हितकारी है आदरनीय ! 

सही कहा आपने आदरणीया छाया जी..
शुभ-शुभ

आदरणीय सौरभ भाई , आयोजन में आपके और सभी वक्ताओं विचार पढ़ा के बहुत अच्छा लगा ,  तसल्ली भी हुई कि मातृभाषा को सही दर्जा दिलाने के लिए सही दिशा में प्रयास जारी है  | ज़मीनी और प्रायोगिक स्तर पर भी काम इसी गम्भीरता से हो तो कुछ अच्छी संभावनाएं ज़रूर देखने को मिलेंगी , मन आश्वस्त हुआ |

हिन्दी पखवाड़े में मैं  भी तीन मुक्तक लिखा था , बहुत अच्छे नहीं हो पाए तो पोस्ट नहीं किया था , उसमे से एक यहाँ देने का लोभ सन्वरण नहीं कर पारहा हूँ  --

अपनी माँ  को माँ कहते शर्माते हैं

और गैर को आंटी कह मुसकाते हैं 

हिन्दी अपनी माँ की भाषा है फिर भी  

क्यों इसको माँ कहने से डर जाते हैं

सफल आयोजन के लिए बहुत बधाइयाँ , आदरणीय सौरभ भाई |

आपका सादर धन्यवाद आदरणीय गिरिराज भाई.
यह अवश्य है कि ’हिन्दी दिवस’, १४ सितम्बर के अवसर पर ऐसी गहन परिचर्चा और परिसंवाद का आयोजन ऐसी संस्था की ओर से हुआ जो अपने विशेष क्रियाकलापों, सामाजिक कार्यों एवं अन्यान्य मुखर गतिविधियों के लिए अधिक जानी जाती है. वहाँ उस दिन जितने वक्ता थे उनमें से अधिकतर अकादमिक पृष्ठभूमि के थे अथवा प्रिण्ट मीडिया से थे. उनके बीच मुझे कुछ कह पाने का अवसर मिलना यह मेरे लिए भी अपार आश्वस्ति का कारण हुआ. ऐसे में सम्मानित होना मेरे लिए भी गौरव के क्षण ले कर आया.
आपके मुक्तक प्रयास के लिए साधुवाद
सादर

परम आदरणीय सौरभ जी
सादर अभिवादन एवं बधाई
यह हमारे लिए हर्ष एवं गर्व का विषय है कि दिनांक १४ सितम्बर को ’लायन्स क्लब इण्टरनेशनल (अनुभव)’ की ओर से ’हिन्दी दिवस’ का आयोजन किया गया. इस अवसर पर हिन्दी भाषा के विकास तथा रचनाकर्म के लिए कर्नल सुधीर पराशर के कर-कमलों द्वारा आदरणीय आपको सम्मानित किया गया. इसी क्रम में हिन्दी क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के लिए अन्य अतिथियों को भी सम्मानित किया गया उन सभी गणमान्य सुधीजनों को सादर बधाई प्रेषित करता हूँ.
’आज के संदर्भ में हिन्दी की प्रासंगिकता’ . इस विषय पर समारोह में विन्दुवत सार्थक परिचर्चा हुई. आमंत्रित प्रबुद्धजनों के विचार हिंदी भाषा के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं इस आयोजन की सचित्र जानकारी साझा करने हेतु आपका सादर आभार, आदरणीय.

प्रथम पोस्ट डिलीट हो जाने के लिए खेद है आदरणीय
सादर धन्यवाद

आदरणीय सत्यनारायणजी, सम्मानित होने के उपलक्ष्य में आपकी हार्दिक शुभकामनाओं के लिए मैं आभारी हूँ. आप जैसे अनन्य सहयोगी भाई से बधाइयाँ पाना आत्मीय गौरव के सुखद क्षण का कारण बनता है.
आदरणीय, प्रसन्नता की बात यह है, कि हिन्दी भाषा पर आयोजन के दौरान परिचर्चा ही नहीं हुई, बल्कि उस दौरान कई संकल्प लिए गये जिनके आधार पर अगले वर्ष समीक्षात्मक परिचर्चा का निर्णय लिया गया है. यह अधिक आश्वस्तिकारक पहलू है.
सादर

निश्चित ही यह आश्वस्तिकारक पहलू है आदरणीय
सादर

आदरणीय सौरभ भाईजी,

हिंदी दिवस पर इलाहाबाद में आयोजित परिच्रर्चा/ गोष्ठी में आपके और अन्य सभी वक्ताओं के विचार से मैं हिंदी के प्रति आशान्वित हुआ । वर्ना मेरी सोच प्रायः नकारात्मक होती है और उसके ठोस कारण भी हैं॥ 1100 सौ साल के हमारे सकारात्मक सोच का परिणाम हम सब के सामने है।  

         हिंदी प्रेमी राजनेता यदि नकारात्मक सोचते और अंग्रेजी का सशक्त विरोध करते तो हिंदी आज सिंहासन पर होती लेकिन वे अंग्रेजी परस्तों की हर चाल पर सकारात्मक सोचकर मुंडी हिलाते रहे या मौन हो जाते थे। अंधेरे में रस्सी को सांप समझने में ही समझदारी है।  ( बेवकूफी की सीमा तक ) भोले भाले सकारात्मक सोच वाले उसे ( अंग्रेजी को ) रस्सी समझकर पकड़ लिए पर वो निकला सांप, अब ज़हर तो चढ़ेगा ही। उतारने का न मंत्र जानते हैं न दवा। 67 बरस से हाय – हाय कर रहे हैं।

हिंदी प्रेमियों को कुछ दृढ़ संकल्प लेना ज़रूरी है। 20- 25 सक्षम लोगों की समिति ( जिसमें आप जैसे ओबीओ के कुछ सदस्य हों ) केंद्र सरकार के साथ त्रैमासिक बैठक कर  हिंदी को संपर्क भाषा बनाने  यूपीएससी  न्यायालय आदि में हिंदी के प्रयोग पर ठोस सुझाव दे सकते हैं। अंग्रेजी के प्रश्न पत्रों का सही हिंदी अनुवाद आप जैसे विद्वजन की टीम ही कर सकती है।

वर्तमान सरकार में सभी हिंदी प्रेमी हैं और उत्तर प्रदेश से ज़्यादा हैं इसलिए कुछ भी असंभव नही।

इस 5 बरस में सब कुछ हिंदी के हित में नहीं हुआ तो भय है कि भारत में अंग्रेजी हमारी मातृ भाषा है कहने वालों की संख्या करोड़ों में हो जाएगी। और धीरे- धीरे बेचारी हिंदी भीख और वोट माँगने की और मज़दूर , छोटे किसानों की भाषा बनकर रह जाएगी। हमें हिंदी के हित में सही चाल चलने वाला एक “ चाणक्य ” चाहिए।

न जाने कितने साल जिएगी, हिंदी भूखी प्यासी।

उपेक्षा से कमजोर हो गई, बन के रह गई दासी॥

अँग्रेजी पीकर लोग मस्त हैं, नेक नहीं है इरादा।                                                                                                                       सेवा गोरी पड़ोसन की सब, करते माँ से ज़्यादा॥

सादर 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
" जी ! सही कहा है आपने. सादर प्रणाम. "
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, एक ही छंद में चित्र उभर कर शाब्दिक हुआ है। शिल्प और भाव का सुंदर संयोजन हुआ है।…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य, आदरणीय अशोक भाई साहब।  31 वर्णों की व्यवस्था और पदांत का लघु-गुरू होना मनहरण की…"
2 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, आपने रचना संशोधित कर पुनः पोस्ट की है, किन्तु आपने घनाक्षरी की…"
3 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   नन्हें-नन्हें बच्चों के न हाथों में किताब और, पीठ पर शाला वाले, झोले का न भार…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति व स्नेहाशीष के लिए आभार। जल्दबाजी में त्रुटिपूर्ण…"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में सारस्वत सहभागिता के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी। शीत ऋतु की सुंदर…"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"शीत लहर ही चहुँदिश दिखती, है हुई तपन अतीत यहाँ।यौवन  जैसी  ठिठुरन  लेकर, आन …"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
Friday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service