आदरणीय साथिओ,
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आभार आदरणीय।
बहुत सुन्दर कथा मनन कुमार जी ।
जी शुक्रिया।
हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार जी।स्त्री पुरुष की मर्यादाओं पर एक प्रश्न चिन्ह लगाती सुंदर लघुकथा।
आभार आदरणीय तेजवीर जी।
आदरणीय तेजवीर भाईजी! 'स्त्री-पुरुष की मर्यादाओं पर प्रश्न-चिन्ह लगाने' से आपका आशय मैं नहीं समझ पाया।मेहरबानी होगी,यदि कुछ इंगित कर मुझे भी साथ ले लें तो।
आभार आदरणीया।
आदरनीय मनन जी , उम्दा लघुकथा के लिए बधाई हो
बहुत बहुत आभार आदरणीय मोहन जी।
लघुकथा
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रफ कॉपी
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"बहू, जरा बाजार जाओगी तो मेरा चश्मा बनवाने दे देना।" - ससुर जी ने आवाज़ लगाई।
"अरे बहू, तुम मेरी दवाई नहीं लाई, कल भी तो मैंने कहा था। बस आज भर की ही बची है।जरा भी ध्यान नहीं रहता है तुम्हें। राशन लेने जाओ तो याद से ले आना।"
"ओहो...। कहाँ हो ? ऑफिस में देर हो रही है। जल्दी से नाश्ता लगाओ। करती क्या रहती हो सुबह से? सारा दिन तो घर पर रहती हो बाकी काम दिन में नहीं कर सकती हो क्या..।"-बड़बड़ाते हुये पति ने उस पर गुस्सा निकाला।
"मम्मी मेरी रफ कॉपी कहाँ है? मिल ही नहीं रही। सुबह यहीं तो रखी थी मैंने।"
"बेटे, जबसे सबके काम अकेले कर रही हूँ। कम से कम तू तो अपने काम अपने आप कर लिया कर। और फिर रफ कॉपी ही तो है ।एक दिन उसके बिना ही स्कूल चला जा।"
"ओह.. मम्मी रफ कॉपी होने से क्या हुआ, बहुत जरुरी कॉपी होती है यह। सारे सबजेक्ट के नोट इसी में तो लिखे होते हैं। हम इसमें गेम भी खेलते हैं और ड्राइंग भी तो इसीमें बनाते हैं।इसके बिना तो काम ही न चले।"
पर तभी उसने एक कॉपी उठाई "ओह्ह्ह आखिरकार मिल ही गई।" और उसमें से एक पेज फाड़ लिया।
"यह क्या किया तुमने। अभी तो तुमने कहा बहुत जरूरी कॉपी है फिर भी उसीमें से पेज फाड़ लिया।"
"ओह माँ..।आखिरकार रफ कॉपी ही तो है। नोट कापी से कोई पेज फाड़ता है क्या?"
वह चुपचाप बेटे के हाथ में फटे पेज से बनते हुए हवाई जहाज को देखती रह गई।
मौलिक व अप्रकाशित
आदाब। रफ़ कॉपी/ फटा पन्ना/हवाई जहाज़ और शूरू के आदेशों सवाल-जवाबों से नारी की दशा और भूमिका शाब्दिक करती बढ़िया विचारोत्तेजक रचना। हार्दिक बधाई आदरणीया कनक हरलाल्का साहिबा।
कथा पर प्रोत्साहनात्मक टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार उस्मानी सर जी।
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