आदरणीय साथिओ,
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मेरी इस रचना के मर्म का अनुमोदन कर मुझे प्रोत्साहित करने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय विनय कुमार साहिब।
मोहतरम Sheikh Shahzad Usmani साहब बहुत ख़ूब मुबारकबाद ने अंदाज़ की बहतर लघुकथा जनाब ।
आदाब। मेरी हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय आसिफ़ ज़ैदी साहिब।
नया प्रयोग करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी | मैं आदरणीय चंद्रेश जी की बातों से सहमत हूँ | इस सृजन हेतु हार्दिक बधाई आपको|
आदाब। मेरे इस नव प्रयास पर समय देकर मुझे प्रोत्साहित करने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीया कल्पना भट्ट जी।
आदरणीय शहजाद उस्मानी जी ! नमस्ते| इस रचना में मुझे एक चीज खटक रही है और वो है विराम चिह्नों का प्रयोग| कुछ जगहों पर अधूरे वाक्यों के बाद ही आपने पूर्ण विराम का चिह्न लगाया है |
इस पर गुणी जन ही बता पाएंगे| सादर|
आपको कुछ खटका, तो हमें पुनर्विचार करना ही चाहिए। वैसे अधूरे लग रहे वाक्यों/वाक्यांशों में एक शैली समझ रहा हूं, एक प्रवाह समझ रहा हूं। मार्गदर्शन निवेदित।
मामूली सी कसावट से रचना और अच्छी हो जाएगी। हार्दिक बधाई प्रेषित है
आदाब। रचना पर समय देकर मार्गदर्शन प्रदान करने के लिए और मुझे प्रोत्साहित करने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब योगराज प्रभाकर साहिब।
अब पछताए होत क्या जब चिड़ियाँ चुग गयी खेत (लघुकथा)
“तुम फिर पीकर आ गया मेन? तुम्हारी बीवी तो घर में नहीं है...” मिसेस गोंसोल्विस कह रही थी|
“ओह! कि...ध...र ... ग...ई... व...ह... सा...ली...?” गोविन्द ने पूछा| “ पक्का अपने यार के पास गयी होगी...” दनदनाता हुआ वह सीढियों की तरफ पलट ही रहा था कि मिसेस गोंसोल्विस ने उसको रोकते हुए कहा, “अब्बी तुम किधर को जाता है मेन? तुम्हारा घर का चाबी मेरे पास है, घर के अंदर चलो...|” और वह गोविन्द को पकड़ कर घर की ओर ले जा रही थी|
घर में दाखिल होते ही वह बिस्तर पर गिर पडा| अपनी पत्नी को घर में न पाकर उसका नशा जैसे फुर्र हो गया था| मिसेस गोंसोल्विस बोले जा रही थी, “तुम कबी सुधरेगा मेन? तुम्हारा बीवी कितना प्यार करता है तुमको, बेचारा तुम्हारे वास्ते अपने मायके भी जाना छोड़ दिया... सिर्फ तुम्हारा खातिर... उसको एक बार हमने पूछा था तो वह बोला था, “आंटी, गोविन्द को रोटी का दिक्कत हो जाता है... उसका मेरे अलावा कौन है, उसके घर वाले तो सभी मर गए उस ट्रेन हादसे में... |” और वह रोने लगा था| और एक तुम है कि .... छी... यह कहती हुई वह बाहर चली गयी|
टी.वी पर एक न्यूज़ चल रही थी, नागपुर जाने वाली ट्रेन पटरी से उतर गयी, और करीब ४ डिब्बे पटरी से उतर गए, करीब १५ लोगों की मौत... जिनमें से ८ लोगों की शिनाख्त हो पायी है.... और एक लिस्ट दिखाई जा रही थी... गोविन्द का हाथ से निवाला छूट गया और उसके मुँह से चीख निकली... “अम्मा... बाबूजी.....” और वह दहाड़े मारकर रोने लगा, उसकी आवाज़ सुनकर उसकी पत्नी भी रसोईघर से दौड़ती हुई आई.... न्यूज़ हेडलाइंस दोहारायी जा रही थी, उसको पढ़कर उसके भी आँसू निकल आये पर वह गोविन्द को सँभालने का प्रयास कर रही थी| “मैं अनाथ हो गया गीता...| मेरा इस दुनिया में कोई नहीं बचा...|”
डोरबेल की आवाज़ ने गोविन्द की तुन्द्रा भंग की| उसने अपने घर का दरवाज़ा खोला, सामने एक अनजान व्यक्ति को देखकर वह चौंका, उस आगंतुक ने उसके हाथ में एक पत्र थमाया और वह चला गया| पत्र को खोलकर उसने पढ़ा, उसमें लिखा था : “ चार महीने से तुमने दारु का पैसा नहीं दिया है, इसके पहले का पैसा तुम्हारी पत्नी ने हमको दे दिया था... तुम्हारा पत्नी अब हमारे कब्जे में हैं... तुम्हारे चार महीने के दारू की वसूली... पत्र के नीचे नाम देखते ही गोविन्द की मुट्ठी भींच गयी और उसके मुँह से निकला “ मेरी दारू की किमत...”
मौलिक एवं अप्रकाशित
गंभीर विषय पर सृजित इस रचना हेतु सादर बधाई स्वीकार करें आदरणीया कल्पना दी। बेहतरीन संवादों ने इस रचना पर चार चाँद लगा दिए हैं। अंत और मध्य में रचना के प्रस्तुतिकरण में थोड़े से और बेहतर होने की गुंजाइश है। हालाँकि शीर्षक वैसे भी अच्छा ही है, लेकिन मुझे लगता है "आखिर चिड़िया चुग ही गई" जैसे शीर्षक कुछ अलग दिखते हुए और रचना के सन्देश को अपने में समेटे हुए हैं। सादर विचारार्थ,
हार्दिक बधाई आदरणीय कल्पना भट्ट जी।बेहतरीन लघुकथा।
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