आदरणीय साहित्य प्रेमियो,
सादर अभिवादन ।
पिछले 55 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलमआज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :
"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-56
विषय - "गर्मी की छुट्टी"
(गर्मी की छुट्टी होते ही कितनी सारी योजनाएं बनने लगती हैं, कहाँ घूमने जाना है-सागर किनारे या हिल स्टेशन, नानी के घर या फिर मासी -बुआ के घर ? सिंगिंग डांसिंग, आर्ट, स्विमिंग का समर कैम्प ज्वाइन करना है, या फिर घर में ही कुछ रचनात्मक करने की प्लाइंग्स..... मन में अनगिन योजनाएं अकार लेने लगती हैं, कहीं मेहमानों की रौनक तो कहीं पत्नी के मायके जाने पर पसरता सूनापन ..... तो आइये सोचते हैं क्या लाती हैं ये छुट्टियां और कलमबद्ध करते हैं घर -परिवार की, अपने मन की इन्ही बातों को और अपनी अभिव्यक्तियों के ज़रिये इस लाइव महोत्सव के अंक 56 के पन्नो में सबसे सांझा करते हैं अपनी छुट्टियां ....)
आयोजन की अवधि- 12 जून 2015, दिन शुक्रवार से 13 जून 2015, दिन शनिवार की समाप्ति तक (यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)
बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए.आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.
उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --
तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
हाइकू
व्यंग्य काव्य
मुक्तक
शास्त्रीय-छंद (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)
अति आवश्यक सूचना :-
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि अपनी रचना पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर एक बार संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.
आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है.
इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 12 जून 2015, दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा)
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महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
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मंच संचालिका
डॉo प्राची सिंह
(सदस्य प्रबंधन टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.
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आदरणीया कांताजी
आपको रचना पसंद आई, लिखना सार्थक हुआ। प्रशंसा के लिए हृदय से धन्यवाद आभार।
वाह , आपने तो हमें अपने गाँव पहुंचा दिया , बहुत प्यारी कविता आदरणीय , बधाई ..
आदरणीय विनयकुमार जी
आपको रचना पसंद आई, लिखना सार्थक हुआ। प्रशंसा के लिए हृदय से धन्यवाद आभार।
वाह वाह ---- क्या बात है .... हर पद आपके उन्हीं सुनहरी यादों के मे ले जाने मे सक्षम हैं , लाजवाब । दिली बधाइयाँ .. आ. बड़े भाई ।
प्रिय गिरिराज
विषय ही ऐसा था कि लिखता चला गया। प्रशंसा के लिए हृदय से धन्यवाद आभार।
आदरणीय अखिलेश जी.
सुन्दर रचना,
//सीधे सरल गाँव के बच्चे, खेलें हम गिल्ली कंचे।
हमें जिताकर खुश हों ऐसे, मित्र कहाँ हम पायेंगे॥//
हम उम्र में ये मुश्किल होता है. छोटे बच्चों का दूघ-भात अलग बात है...
गांव के परिवेश को बखुबी उभारा है
सादर.
आदरणीय शुभ्रांशु भाई
आपको रचना पसंद आई, लिखना सार्थक हुआ। प्रशंसा के लिए हृदय से धन्यवाद आभार।
गाँवों में बच्चों का खेलना बस एक मनोरंजन होता है । हराने की प्रबल भावना और शहरों वाली बात इनमें नहीं होती। गाँव में नाना मामा का मान सम्मान और प्रतिष्ठा है तो मेहमान मित्र को जीतने का ज़्यादा अवसर देते है। मेरा स्वयं का अनुभव भी है।
सादर
सच में बच्चों को नाना के घर जाने का अलग ही उत्साह होता है और नाना नानी भी ममता लुटाने में कोई कसर नहीं छोड़ते ,पूरे साल इन्तजार करते हैं बच्चे ..बहुत सुन्दर भाव और प्रस्तुति हार्दिक बधाई आ० अखिलेश जी
आ० अखिलेश जी
गरी की छुट्टियों में नाना के घर जाना तो परम्परा सी हो गयी हां क्योंकि इतना अवकाश साल में एक ही बार होता है और बेटियां भी माँ-बाप केसाथ रह लेती है I इस परम्परा का बड़ा मोहक वर्णन आपने किया है . आपको बधाई .
आदरणीय गोपाल भाई
आपको रचना पसंद आई, लिखना सार्थक हुआ। प्रशंसा के लिए हृदय से धन्यवाद आभार।
आदरणीय अखिलेशभाईजी, आपने दिल से रचना की है. गर्मी की छुट्टी में नाना-नानी के घर पहुँचने की इच्छा को साकार कर दिया है. रचना में वर्णित बच्चों का मन निश्छ्ल है - हमें जिताकर खुश हों ऐसे, मित्र कहाँ हम पायेंगे ! वाह !
एक-दो स्थानों पर मात्रिकता को आपने इग्नोर किया है. लेकिन अन्य पंक्तियों में उन्नत प्रवाह के कारण ’उन’ स्थानों पर ’खच’ से लगता है. :-))
इस बढिया रचना से मन प्रसन्न हुआ है आदरणीय.
सादर
आदरणीय सौरभ भाईजी
विषय ही इतना सुंदर है कि लिखते चला गया। आपने विस्तार से और पूरे दिल समीक्षा की , लिखना सार्थक हुआ। सार्थक सुझाव और प्रशंसा के लिए हृदय से धन्यवाद आभार।
एक-दो स्थानों पर मात्रिकता को आपने इग्नोर किया है. .......... निम्न पंक्तियाँ प्रयास के बाद भी संभल नहीं पाई, कुछ और सोचता हूँ
खेलेंगे शतरंज दोपहर, मीठा सत्तू खायेंगे॥
सादर
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