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आदरणीय प्रतिभा पांडे जी आपने लघुकथा के अंत में बहुत ही बढ़िया बात कहकर अपनी लघुकथा को मारक बना दिया है। हार्दिक बधाई आपको।
हार्दिक आभार आदरणीय ओमप्रकाश क्षत्रिय जी I
सरकारी दफ्तरों की कार्य कलाप संबंधी दुरवस्था पर प्रहार करती लघुकथा ध्यान खींचती है।बढ़ाई आपको आदरणीया,प्रतिभा जी।
हार्दिक आभार आदरणीय मनन जी
आज की लालफीताशाही को बहुत बढ़िया से बयान करने में सक्षम लघुकथा के लिए बधाई..
हार्दिक आभार आदरणीया कनक जी
आदरणीया pratibha pande साहिबा, इस लाजवाब लघुकथा पर बधाई स्वीकार करें। हमारे देश के सरकारी दफ़्तरों में लाखों आम नागरिक जो कष्ट झेलते हैं, उस पर बेहद निपुणता से आपने कटाक्ष किया है। "वैसे कहते क्या हैं? क्यों नहीं निकाल पा रहे हैं एक छोटा सा कागज़ इतने महीनों में?" आपकी लेखन-शैली बेहद प्रभावशाली है।
आदरणीया, अगर आप punctuation का इस्तेमाल सुधार लें तो आपकी प्रस्तुति और भी प्रभावशाली हो जाएगी। कुछ बिंदु:
1. जी पूर्ण विराम (।) की जगह आप कहीं कहीं छोटा 'L' (l) और कहीं कहीं pipe या vertical bar (|) इस्तेमाल करती हैं। ये दोनों ही चिन्ह पूर्ण विराम से थोड़े ज़ियादा लम्बे होने के कारण प्रिंट में अच्छे नहीं लगते। आपसे निवेदन है कि लिखते समय पूर्ण विराम ही इस्तेमाल करें, बस एक बार गूगल सर्च करके कॉपी करना पड़ता है।
2. आदरणीया, प्रश्न चिन्ह (?), पूर्ण विराम (।), विस्मयादिबोधक (!) इन सभी चिन्हों से पहले कभी ख़ाली स्थान (space) नहीं छोड़ा जाता, ये पिछले शब्द से सटा कर लिखे जाते हैं।
3. संवाद के शुरू में आने वाला double quote mark (") के बाद, और अंत में आने वाले double quote mark (") से पहले कभी ख़ाली स्थान नहीं छोड़ा जाता, ये संवाद से सटे होते हैं: "देखिये इस तरह।"
4. आदरणीय, संवाद में comma का इस्तेमाल भी ज़रूरी है, जब आप बताना चाहती हैं कि बात कौन कह रहा है, इस तरह: पर आप भी इस माहौल में थोड़ा बाहर निकलना कम ही रखें सर," विषय बदलने कि ग़रज़ से मैंने धीरे से कहा।
(पूर्ण विराम डायलॉग के अंत में नहीं बल्कि पूरे वाक्य के अंत में आता है।)
आख़िर में, काग़ज़ात अपने आप में बहुवचन है, उसे कागजातों लिखना सही नहीं होगा। और कुछ शब्दों में नुक़्ते छूट गए हैं: तल्ख़ी, ज़ोर, ग़रज़, तरफ़। सादर
आदरणीय रवि भसीन जी लघुकथा पसन्द करने और पंक्च्यूएशन, स्पेस और पूर्ण विराम पर इस बिन्दुवार मार्गदर्शन के लिये आपका हार्दिक आभार।
तिरस्कार
"कावेरी आइ वाॅन्ट ओनली मेल चाइल्ड दिस टाइम " रोहित के इन शब्दों से कावेरी की तन्द्रा भंग हुई ।"आज माँ के साथ जाकर लिंग परीक्षण टैस्ट करा आना " दफ्तर जाते समय रोहित बोला । कावेरी ने कहा "ठीक है"और अपने काम में लग गई। दोपहर को कावेरी अस्पताल गई और उसे जिस बात का डर था वही हुआ । इस बार भी कोख में लड़की थी। रोहित वैसे तो एक पढ़ा - लिखा पुलिस अफसर था परंतु सोच बहुत ही दकियानूसी थी ।उसने कावेरी को कहा कि " मैं दो लड़कियों का बोझ नहीं उठा सकता इसलिए तुम गर्भपात करवा लो" ये सुनते ही मानो कावेरी के पैरों तले जमीन खिसक गई । वो नही मारना चाहती थी अपनी बेकसूर बच्ची को , सो उसने मना कर दिया। दोनों की इस बात पर काफी बहस हुई।कुछ महीनों बाद कावेरी ने एक प्यारी सी बच्ची को जन्म दिया । उस दिन घर में मातम सा छा गया । उस दिन बस दो लोग ही खुश थे कावेरी और उसकी पहली बेटी रश्मि जो पांच साल की थी । कावेरी की सास दोनों बच्चियों से ठीक से बात नहीं करती थी । रोहित भी घर से अब ज़्यादा समय बाहर ही रहता था । उसने दोनों बेटियों को सरकरी स्कूल में ही दाखिला दिलवाया । वो कहता " इन्हे ज्यादा पढ़ाने का क्या फायदा इन्होने तो चूल्हा चौका ही करना है "। कावेरी ने सोचा कि अब मुझे ही अपनी बेटियों के लिए कुछ करना पड़ेगा "सो उसने दिन में घर पर ट्यूशन पढ़ाना और रात को डेटा एंट्री का काम शुरु किया , इन पैसों से वो दोनों बेटीयों को कोचिंग दिला रही थी । इसी कोचिंग के कारण बड़ी बेटी का अच्छे कॉलेज में दाखिला हो गया था और छोटी का ऍम बी बी एस में । दोनों बेटियां ही अब आत्मनिर्भर हो गयीं थीं । एक कॉलेज की प्रोफेसर और दूसरी शहर की एक नामी हृदय विशेषज्ञ । समय की विडम्बना देखिये , एक दिन रोहित को दिल का दौरा पड़ा और उसे अस्पताल ले जाया गया । उसकी हालत इतनी खराब थी कि उसका तुरन्त ऑपरेशन करना पड़ा , और वो ऑप्रेशन किसी और ने नहीं बल्कि उसकी अपनी बेटी ने किया । जब वो ऑप्रेशन करके बाहर आई तो उस समय कावेरी अपने आप को बहुत गौरान्वित महसूस कर रही थी ।कुछ समय बाद जब रोहित को होश आया और उसे पता लगा की उसकी जान उसकी उसी बेटी ने बचाई है जिसे वो जन्म से पहले ही मार देना चाहता था । वो अब अपनी बेटी से नज़रे नहीं मिला पा रहा था । जब उसकी बेटी ने उससे पूछा " पापा अब आप कैसे हो " तो रोहित कुछ ना बोल पाया बस एक अश्रुधारा उसकी आँखों से बह निकली और उसने पहली बार अपनी बेटी को गले लगाया व बोला " मुझे माफ़ कर दो बेटा , मै बहुत बेवकूफ था जो मै अपनी दोनों बेटियों व पत्नी का तिरस्कार करता रहा , तुम सब मुझे माफ़ कर दो " और फूट फूटकर रोने लगा । आज कावेरी बहुत खुश थी क्योंकि उसे और उसकी बेटियों को घर में वो सम्मान व स्थान मिल गया था जिसकी वो हकदार थीं ।
मौलिक व अप्रकाशित
गोष्ठी में सहभागिता के लिये हार्दिक बधाई आदरणीय मधु पस्सी "महक" जी।आपने लघुकथा का जो प्रयास किया है वह सराहनीय है। लेकिन मेरे विचार से यह कथानक कहानी की रूपरेखा की ओर मुड़ गया है। लघुकथा एक विशेष क्षण की घटना का विस्तृत वर्णन होता है। आपने एक बेटी को गर्भ से डॉक्टर बनने तक पहुंचा दिया।इसे आप यदि लघुकथा में ही लिखना था तो प्रारंभ पिता के आपरेशन से करते और शेष घटना क्रम पृष्ठभूमि में दिखाना था। जैसे पिता ये सारी बातें आपरेशन के बाद सोचता।सादर।
सादर नमस्कार। कृपया मुहतरम जनाब तेजवीर सिंह साहिब की मार्गदर्शक टिप्पणी पर.ग़ौर फ़रमाइयेगा। इस मंच पर उपलब्ध लघुकथा लेखन संबंधित आलेखों का बार-बार अध्ययन कर व उत्कृष्ट लघुकथायें पढ़कर हम इस तरह के बढ़िया लेखन को लघुकथा लेखन की ओर ले जा सकते हैं।
शेख शाहज़ाद उस्मानी जी सादर नमस्कार। जी मैं आपकी सलाह पर ज़रूर अमल करूंगी। आप लोगों के मार्गदर्शन के लिए मैं बहुत आभारी हूँ ।
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