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प्रत्युत्तर
उस रात मौत तांडव कर रही थी. रात ने मौत से पूछा, “क्या बात है मौत आज तुम इतने विकराल रूप से तांडव क्यों कर रही हो.”
मौत ने कहा, “आज दिन में सरेराह दो भाइयों के सामने एक लड़के ने एक लड़की को छेड़ दिया. प्रत्युत्तर में भाइयों ने उस लडके को पीट दिया. प्रत्युत्तर में उस लडके ने अपने दोस्तों के साथ दोनों भाइयों को बेतरह पीटते हुए मार डाला. लड़की के समाज वालों का खून खौल उठा. प्रत्युत्तर में उन्होंने उस लडके और उसके दोस्तों को मार डाला. अब इस लड़ाई में दो धर्मों के लोगों ने लाठी, बल्लम, चाकू, तलवारें निकाल लीं. फिर तुम आ गयीं. तुम्हारे आगोश में तांडव का मजा ही कुछ और होता है.”
लेकिन मौत की आँखों से आंसू बहे जा रहे थे. रात ने पूछा “मजे में तो तुम हमेशा अट्टहास करते हुए तांडव करती हो फिर आज तुम्हारी आँखों में आंसू क्यों है? क्या तुम खुद अपनी विकरालता से दुखी हो चुकी हो?”
“मौत कभी अपनी विकरालता से दुखी नहीं होती रात! ये तो सैकड़ों बहू-बेटियों की इज्जत की बिखरी किरचें हैं जो चुभ रही हैं.” मौत ने कहा.
दूर कही अट्टहासों और कातर गुहारों की आवाजें आ रही थीं. दोनों धर्म के लोग प्रत्युत्तर देने में व्यस्त थे.
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
एक समसामयिक घटना को कथानक में पिरो कर लिखी गई इस लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई श्रद्धा जी .
हार्दिक आभार राजेश कुमारी जी.
//दोनों धर्म के लोग प्रत्युत्तर देने में व्यस्त थे.// बेहद गंभीर चिंतन विषय पर आदरणीय श्रद्धा जी। बधाई
हार्दिक धन्यवाद कांता जी.
हार्दिक आभार आदरणीय ओमप्रकाश जी.
उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार
बेहद खूबसूरत लघुकथा हुई है आ० श्रद्धा थवाईत जी, बधाई स्वीकारें I ९ पंक्ति की लघुकथा में ३ बार प्रत्युत्तर शब्द का उपयोग अच्छा नहीं लगा !
आदरणीय सर, यह त्रुटि हुई है मैं इसे सुधारना चाहूंगी जो कि शायद संकलन आने के बाद ही संभव है. प्रत्युत्तर का उपयोग सिर्फ एक बार ही करना ठीक रहेगा. अंत में.धन्यवाद् सर त्रुटि की और ध्यान दिलाने के लिए .नीचे मैंने संशोधित लाइनें लिखी हैं. क्या इसे संकलन के बाद जोडूं.
"भाइयों ने उस लडके की पिटाई की तो उस लडके ने अपने दोस्तों के साथ दोनों भाइयों को बेतरह पीटते हुए मार डाला. लड़की के समाज वालों का खून खौल उठा. उन्होंने उस लडके और उसके दोस्तों को मार डाला."
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