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आदरणीया नीता कसरजी, आदमी का तमस मात्र प्रवृति नहीं होती परन्तु कौन सा आयाम प्रवृति को उभार दे और वह तामसिक हो जाये कोई नहीं जानता. उसमेम् से एक कारण गरीबी भी हो सकती है.
आपकी प्रस्तुति ने प्रभावित किया है. वैसे प्रस्तुतीकरण और सुधार मांगती है लेकिन हम आश्वस्त हैं ..
सादर
निरुत्तर
"और क्या हाल है मेरे मिटटी के शेर..... ज्वाइन कब कर रहा है?"
"यार अभी तो पोस्टिंग का आर्डर ही नहीं आया है. आर्डर आने के बाद ही ज्वाइनिंग होगी."
"अरे यार तू तो किस्मत वाला है जो ऐसे घर में पैदा हुआ कि कोटे में इतनी बढ़िया नौकरी मिल गई"
".............."
" काश मैं भी तेरे घर में पैदा हुआ होता. क्यों न हम घर एक्सचेंज कर लें?”
"................"
"अच्छा तू अपने पापा से क्यों नहीं कहता कि वो मुझे भी गोद ले ले?"
"मैं तो अपने पापा से कह दूंगा मगर क्या पंडितजी यानी तेरे पापा मुझे गोद लेंगे?"
(मौलिक व अप्रकाशित)
लघुकथा की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार आपका
लघुकथा की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार आपका
ऐसी बातें प्रतीकों के माध्यम से अथवा इशारों में कही जानी चाहियें भाई मिथिलेश जी I वैसे लघुकथा अच्छी हुई है !
लघुकथा की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार आपका .... पुनः प्रयास करता हूँ सर
बड़ी होश्यारी से आज आपने एक डिप्लोमेटिक स्टैंड लिया है ,न यहाँ न वहां ,आरक्षण विषय ही ऐसा है ... अंतिम पंक्ति बहुत कुछ कह रही है ,प्रदत्त विषय को सार्थक करती इस रचना के लिए आपको बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ,मंच पर आपकी अनुपस्थिति खल रही थी अभी तक
लघुकथा की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार आपका आदरणीया प्रतिभा जी...
मुझे भी आयोजन से दूर रहना बहुत दुखी करता है लेकिन इस बार तबीयत साथ नहीं दे रही है. बैठ भी नहीं पा रहा हूँ. इसलिए संक्षिप्त टीप कर रहा हूँ. सादर
बहुत चुभता हुआ प्रश्न , बहुत उम्दा लघुकथा | बहुत बहुत बधाई आ मिथिलेश जी
लघुकथा की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार आपका
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