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आ. भाई ओमप्रकाश जी, अच्छी संदेशपरक रचना हुई है । हार्दिक बधाई।
सादर नमस्कार। बहुत ही सार्थक व सारगर्भित सृजन। शीर्षक व विषयांतर्गत बेहतरीन पंचयुक्त समापन पंक्ति से कथ्य सम्प्रेषण करती बढ़िया रचना। हार्दिक बधाई जनाब ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश' साहिब।
इस गोष्ठी में भी हमें बढ़िया लघुकथाएं और मार्गदर्शन हासिल हो सका है। हम इसी तरह सक्रीय रहें साहित्यिक गतिविधियों में। यही सच्ची विनम्र श्रद्धांजलि होगी उन महान साहित्यकारों के प्रति जो हमें दायित्व सौंप कर इस महामारी काल में हमें छोड़कर स्वर्गवासी हो गये। उन्हें हमारी विनम्र श्रद्धांजलि।
आ. ओम जी,लघुकथा हेतु बधाई लीजिए।'काम अपनी गति से होता है और बस समझो,हो गया।' हो जाए, तो शायद ज्यादा उपयुक्त हो।महज एक अल्पविराम की बात है।हो सकता है, टंकण में रह गया हो।
दूसरी बात,...तुम आजकल काम करवा कर लौटोगे या आज काम करवा कर लौटोगे?' कुछ दुविधा की स्थिति प्रकट हुई,इसलिए जानना चाहा।
वैसे लघुकथा के माध्यम से व्यवस्था पर जोर की चोट धीरे से लगाई गई है।
आदरणीय मननकुमार जी आपके इस शानदार सुझाव के लिए हार्दिक आभार
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