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‘प्यादे’
‘ठाकुर साहिब ! प्रणाम ! आप और हमारी बस्ती में ?’ ठाकुर को गाड़ी से उतरते देख किसना समेत सभी बस्ती वाले हैरान थे।
‘क्यों भाई ! हमारा यहाँ आना मना है क्या?’ चेहरे पर कुटिल मुस्कान लिए ठाकुर बस्ती वालों को सुनाते हुए थोड़ा ऊंचे स्वर में बोला
‘अरे कैसी बात करते हैं सरकार ! आप तो माई बाप है हमारे। पधारिए !’
‘अरे भाई किशन लाल हम तो सेवक हैं तुम लोगों के।’ कुर्सी पर बैठते हुए ठाकुर बोला
‘कुछ चाय नाश्ते का इंतजाम करो।’ किसना अपने छोटे भाई को इशारा करते हुए बोला
‘उसकी कोई जरूरत नहीं । वैसे भी आज मेरा व्रत है सो सांझ को आरती के बाद ही अन्न ग्रहण करूंगा।’
‘तो दूध ले आता हूं सरकार!’
‘तुम तकल्लुफ मत करो भाई किशन लाल ! मुझे अगर कुछ चाहिए होगा तो मैं खुद ही माँग लूँगा। दरअसल मैं तुमसे एक जरूरी बात करने आया हूँ ।’
‘आप हुक्म कीजिए सरकार।’ किसना हाथ जोड़कर बोला
‘देखो भाई किशन लाल ! कुछ महीने बाद पंचायत के चुनाव होने वाले हैं। मैं चाहता हूं कि इस बार तुम लोगों को भी पंचायत में शामिल किया जाए। तुम्हारे परिवार ने बरसों हमारी सेवा की है तो तुम हमारे भरोसेमंद आदमी भी हो और इस बस्ती के मुखिया भी हो, मैं चाहता हूं कि तुम पंच का चुनाव लड़ो।’
‘मैं माई बाप?’ किसना आश्चर्यचकित था
‘हाँ तुम, हम सभी तुम्हारे साथ है। खर्चे की फिक्र न करना। बस अपनी बस्ती वालों को अपने हाथ में रखना। और अपने भाई की बहू को भी तैयार कर लो। ऐसी पढ़ी-लिखी औरतों की पंचायत को और इस गाँव को बहुत जरूरत है।’
‘जो हुकम सरकार।’
तभी ठाकुर के फ़ोन की घंटी बजी और वो फ़ोन पकड़ कर बाहर की तरफ लपका।
‘हैलो ! प्रणाम नेता जी। काम हो गया, आरक्षित वर्ग के दो घोड़े तो काबू कर लिए हैं। बस अब महिला सरपंच वाला मोहरा फिट करनी बाकी रह गया है। अगर आप आज्ञा दें तो सरपंची के लिए अपनी बड़ी बहू को तैयार करें?’ उत्तर सुनकर ठाकुर के चेहरे पर एकदम लाली दौड़ गई। किसना के झोपड़े से आती उत्साहपूर्ण आवाज़ों को सुन ठाकुर बड़ी हिकारत से जमीन पर थूकते हुए बोला, ‘हुंह !! साले !! प्यादे कहीं के।’
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(मौलिक व अप्रकाशित)
आदरणीय रवि जी, बहुत ही शानदार लघुकथा हुई है. इस प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई. लघुकथा पर पुनः आता हूँ. सादर
धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश भाई । प्रतीक्षारत हूं ।
आदरणीय रवि जी, आयोजन की शुरुआत इस शानदार लघुकथा से करने के लिए सर्वप्रथम बहुत बहुत बधाई.
आपकी लघुकथा विधा पर गज़ब की पकड़ है. कथानक को जिस सधे ढंग से शाब्दिक किया गया है वह अद्भुत है. कथा शुरू से आखिर तक पाठक को बाँध कर रखती है. कथा प्रवाह में बहते बहते कब चरम बिंदु आता है ये पता ही नहीं चलता और एक झटका सा लगता है. वाकई सत्ता कुछ दबंग और प्रभावशाली लोगों के हाथों की कठपुतली है जो अपनी बिसात बिछाते है और प्यादों का अपने अनुसार उपयोग करते है. ठाकुर का चरित्र आज की राजनीतिक व्यवस्था के उन्ही प्रभावशाली और मौकापरस्त लोगों का प्रतिनिधित्व करता है. संविधान और क़ानून व्यवस्था में जिनके उत्थान के लिए उपबंध किये गए है वास्तव में उन्हें इसका लाभ ही नहीं मिलता. गाँवों में ऐसे दृश्य अक्सर देखने में आते है. यही हाल पूरी व्यवस्था का है. वास्तव में यह लघुकथा आज की राजनीतिक व्यवस्था की वास्तविकता का प्रतीकात्मक वर्णन है जो अपने में विद्रूपताओं के सभी आयाम समेटे एक विशाल फलक पर खुलती है. आपने प्रदत्त विषय के अनुरूप अपने शीर्षक को सार्थक करती एक शानदार लघुकथा प्रस्तुत की है. इस प्रस्तुति पर आपको बहुत बहुत बधाई ... सादर
आदरणीय रवि जी आपने अपनी कथा के माध्यम से चुनावी व्यवस्था की चालों का बाखूब पोल खोला है .
वाह !!! गज़ब की चाल ! आपकी लघुकथा में ठाकुर साहिब की और आयोजन में आपकी। इस द्रुत गति के क्या कहने हैं ,
आपकी किसी भी बात में कोई सानी नहीं। मान गए आपको , बधाई कबूल फरमाइए आदरणीय रवि जी।
आदरणीय रवि प्रभाकर जी आप की लघुकथा पढ़तेपढ़ते लगा कि लघुकथा में भाषा का प्रवाह और कथानक का निर्वाह किस रफ्तार से होना चाहिए. पहले भावों पर प्यार का मलहम चढाते चले जाओ. फिर धीरे से अपनी मूल बात पर आ कर लघुकथा को चरम बिंदु पर पहुँचा दो. यही तो लघुकथा कहने का अपना ढंग होता है. आप को इस लघुकथा में यही सब व्यक्त हुआ है. अंतिम पंक्तियों ने लघुकथा का सारा सार को निचोड़ कर रख दिया हैं . आप को आप की इस सशक्त लघुकथा के लिए मेरी हार्दिक बधाई..
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