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हार्दिक बधाई आदरणीय रीता गुप्ता जी!बहुत सुंदर लघुकथा !आजकल घरों में भी परिवार के सदस्य एक दूसरे के साथ राजनीति करते हैं!शतरंज़ शीर्षक को बखूबी चरितार्थ किया है आपने!
आभार आदरणीय तेज वीर जी .
विषय को पूर्णरूपेण सार्थक करती इस प्रभावोपादक कथा में केवल यह पंक्ितयां / गहराती रात अपने विषैले नुकीले पंजे सुधा के मानस पर हताशा और हार के रूप में जड़े जमाने लगी थी . स्वप्निल भविष्य की उमीदों से झिलमिलाती आँखे और पोर पोर में दौड़ती फुर्ती की घर में बिछ गए बिसात पर आये दिन बुनते षड्यंत्रों से प्रतिस्पर्द्धा चल रही थी ./ अनावश्यक ही प्रतीत होती है। यह कथा इस आयोजन की सबसे स्टीक कथाओं में से एक है। कथा का शीर्षक भी बहुत प्रभावशाली बना है। सादर शुभकामनाएं ।
बढ़िया प्रतिक्रिया
धन्यवाद मिथिलेश जी .
आदरणीय रवि जी धन्यवाद . मुझे भली - भाँती महसूस हो रहा था कि प्रथम पंक्ति पर सवाल उठेंगे ,परन्तु कभी कभी रचना करते वक़्त शब्द -मोह हो जाता है .और दिमाग कहता रह जाता है पर दिल उसे संजो लेता है . वही हश्र मेरा हुआ .आगे से शब्द-मोह त्याग कर सृजन करुँगी .
आदरणीय रीता गुप्ता जी प्रदत विषय पर सुंदर एवं सार्थक लघु कथा हेतु हार्दिक बधाई। पंच लाईन ''अचानक प्यादा ताकदवर हो क्वीन में बदल गया '' कथा के प्रभाव को सशक्त करती है। हार्दिक बधाई।
काश हर पिता आपकी लघु कथा जैसा हो तो नारियों की स्थिति खुद ब खुद मजबूत हो जाए मजा आ गया इतना सकारात्मक अंत देख कर बहुत अच्छी लघु कथा बनी है हार्दिक बधाई आपको आ० रीता जी
धन्यवाद आदरणीय राजेश कुमारी जी ,मेरी कहानी के पिता ,परिस्तिथी वश ही पर बेटी को सशक्त बनाने के दिशा में एक सही कदम जरूर उठाया . सही बेटियों को यूं ही क्वीन बनाना ही चाहिए .
धन्यवाद मदनलाल जी ,आभार .
धन्यवाद आदरणीय मदनलाल जी ,बधाई प्रेषित हेतु .
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