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लक्ष्य की ओर (संकल्प )
लक्ष्य को संधान कर , संकल्प को साथ ले , वह बस्ती से विदा हुआ । कच्चे रास्ते और मंजिल दूर ,लेकिन इरादा पक्का था ।
एक मुसाफ़िर की निगाह संकल्प पर पड़ी , वह मुग्ध हो उठा ,
"क्या इसका सौदा करोगे ? ढेरों रूपये दूंगा ! "
-- सुनते ही वह उखड़ गया।
" नहीं ! " -- उसकी फटी हुई कमीज़ में से झांकती चिपकी , लिज़लिज़ी गरीबी भी सहम गयी। संकल्प का हाथ थाम , आगे बढ़ गया ।
थोड़ी दूर और जाने पर एक दयावान यात्री उसके पैरों के छालों में से रिसता हुआ मवाद के मानिंद , उसके आत्मबल को भी रिसता हुआ जान , संकल्प के बदले एक चमचमाती मोटर - गाड़ी देने की पेशकश की । एक नजर उसने अपने पैरों की तरफ देख , उसके तरफ आँखें तरेर , संकल्प का हाथ और अधिक कस , गर्वोन्नत- हो, अपनी चाल तेज कर ली ।
लक्ष्य दूर था अभी भी , कि पास गुजरते व्यक्ति का दिल भी संकल्प पर अटक गया । उसके दर-दर भटकने को बेवजह बताते हुए संकल्प के सौदे में एक आलीशान मकान देने की बात कही । वह थक चुका था । संकल्प को देर तक जकड़े रहने के कारण हाथ में झुनझुनी उठ रही थी । घर की कामना या संकल्प······?
अँगुलियों के इशारे से उसको दूर रहने को कह ,बड़ी ही अकड़ से आगे बढ़ गया । इन सब बातों को देख सुन रहे अन्य यात्री प्रभावित हुए । वे लोग उसकी जय -जयकार करने लगे ।
यात्रा पूर्ण हुई कि , हठात् नजदीक से गुजरता हुआ राजनेता का काफिला उसे देख कर रूक गया । एक कार्यकर्ता गाड़ी के पास जाकर राजनेता के कान में फुसफुसाते हुए कुछ कहा , वे एकदम से चौंक उठे । नेता जी गाड़ी में से बाहर आ , उसके समक्ष अति विनम्र भाव से हाथ जोड़ , सविनय निवेदन किये , --" मै आपको अपने मंत्री मंडल में शामिल कर लूंगा , बदले में आप अपना संकल्प मुझे दे दें। "
सुनकर वह ठिठका , अपनी फटी हुई कमीज़ में चिपकी, लिज़लिज़ी गरीबी और पैरों के छालों में से रिसता हुआ मवाद देख तनिक देर सोचा ····· ! पीछे जय जयकार अभी भी जारी था । आँखें चौंधियाईं , एक स्मित मुस्कान होंठों पर कायम हुई। उसने संकल्प का हाथ छोड़ दिया ।
मौलिक और अप्रकाशित
//संकल्प को देर तक जकड़े रहने के कारण हाथ में झुनझुनी उठ रही थी । घर की कामना या संकल्प······?//उसने संकल्प का हाथ छोड़ दिया । उम्दा प्रतिकात्मक रचना .बधाई कांता जी
आपको कथा पसंद आई इसके लिए ह्रदयतल से आभार आदरणीया नयना जी। मेरा हौसला जरा बढ़ गया है।
डर था कथा को लेकर कि जाने क्या होगा रामा रे ! लेकिन ......, अब जो हुआ सो हुआ। हा हा हा हा ........तहेदिल आभार आपका आदरणीया नीता जी मेरा हौसलावर्धन के लिए।
शब्दों से खेलना कोई आपसे सीखे, कांता जी !
हौसला अफजाई और उत्साह वर्धन को मिला कर एक नया शब्द गढ़ दिया - हौसला वर्धन
अंग्रेजी भाषा में ऐसे प्रयोग खूब होते हैं
आदरणीय , लेखन सन्दर्भ में शब्द गढ़न और उचित सम्प्रेषण ही तो मायने रखता है। भाव और शब्दों के ताल -मेल से ही रचना में कथ्य अपना प्रभाव डाल पाती है। यह महज़ खेल नहीं सृजनधर्मिता भी है।
साहित्य साधना भी है ,और आप एक प्रखर लेखक होने के नाते ये जानते है। सादर अभिनन्दन आपका।
आभार आपको आदरणीया बबिता जी , आप सबका साथ होने के कारण ही कुछ लिख पा रही हूँ . सदा साथ रहिएगा ,हिम्मत बनी रहती है। सादर
मेरा आत्मबल बढाने हेतु आभार आपको आदरणीया रश्मि जी। आपकी नज़रों का ही असर है ये की मुझ पर ये मुई राजनीति भी रंग चढ़ा गयी।
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