For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-85 (विषय: अहसास)

आदरणीय साथियो,

सादर नमन।
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-85 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। 'अहसास' शब्द के विषय में एक सुह्रदय व संवेदनशील रचनाकार के अलावा और कौन बाखूबी जान सकता है? तो आइए इस विषय के किसी भी पहलू को कलमबंद करके एक प्रभावोत्पादक लघुकथा रचकर इस गोष्ठी को सफल बनाएँ।  
:  
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-85
"विषय: 'अहसास'
अवधि : 29-04-2022  से 30-04-2022 
.
अति आवश्यक सूचना:-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है। देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने/लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
.    
यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.
.
.
मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 2158

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आभार आ.उस्मानीजी।

क्षमा मै  कथ को समझने मे असमर्थ रही. बहरहाल सहभगित की बधाई 

आभार आ.नयना जी।।

युवती ने होश्यारी से विकल जी को आगाह कर दिया। रोचक कथ्य। हार्दिक बधाई आदरणीय

आभार आ.प्रतिभा जी।।

कथा समझने में असमर्थ रही हूँ आदरणीय। सहभागिता हेतु बधाई।

विषय - अहसास
 प्रेम
"मॉम , क्या आपको किसी से प्यार हुआ था ? "
अठारह साल की अपूर्वा का सवाल सुन मैं चौंक सी गई
" बताओ ना " उसने बड़े प्यार से फिर पूछा
मैंने हाँ में सर हिलाया
" सच ! कब ? किससे ? " अपूर्वा उछल पड़ी
" बताओ न प्लीज़ " उसने मेरी दोनो हथेलियाँ अपने हाथों में लेकर मेरी आँखों में झाँकते हुए कहा
" था कोई " मैंने लजाते हुए कहा
" क्लासमेट ? "
मेरा सर ना में देख
" पड़ोसी ? " उसने फिर अंदाज़ लगाया
मैंने फिर से वही दोहराया
" अब इतना सस्पेंस भी मत क्रिएट करो " अबकी वो खीझती हुई बोली
" वो सीनियर थे " मैंने सस्पेंस खत्म किया
" फिर " उसने अपनी आँखें उत्सुकता और जिज्ञासा से बड़ी करते हुए कहा
" फिर क्या " मैंने कंधे उचकाते हुए कहा 
" अच्छा आप लोग कब मिले " अब वो आलथी - पालथी मार दीवान पर मेरे सामने बैठ गई जैसे कोई श्रोता कथा श्रवण के लिए तैयार हो 
"  मुझे प्रेमचंद की कर्मभूमि नही मिल पाई थी तब उन्होंने ही तो अपनी किताब मुझे दी थी ,
 और कहा था 
"मुन्नी और सकीना का चरित्र चित्रण जरूर देख लेना "
मैंने अपनी आवाज़ ज़रा भारी कर उसी गंभीरता से कहा
" जाने कैसे पता चल गया था " मुझे फिर वही आश्चर्य हुआ
" अच्छा तो ऐसे मिले पहली बार " वो  खीखियाई 
" अच्छा प्रपोज़ किसने किया , उसने न " उसने फिर अटकल लगाई
उसका "उसने " मुझे चुभ सा गया
" प्रपोज़- व्रपोज़ हमारे टाइम में कोई नही करता था "
मैं अतीत में खोती हुई बोली
" अरे ! तो किसीको पता कैसे चलता था कि फलां फलां से प्यार करता है " उसने बड़ी हैरानी जताई 
" वो तो आँखे कह जाती हैं " मैंने मन में कहा
" सच आप दोनों में से किसी ने भी किसीसे कुछ नही कहा " जैसे उसे विश्वास ही न हो रहा हो
" हाँ बाबा , किसी ने ऐसा कुछ किसी से नही कहा "
मैंने उसे यकीन दिलाते हुए कहा
" फिर ? " उसने मन की गीली मिट्टी को कुछ और कुरेदते हुए कहा
" फिर तीन साल बाद उनकी शादी होगई , उनकी ही जात वाली लड़की से " मैंने बात पूरी की
" और सब खतम , है न " उसने भी बात खतम करते हुए कहा
" क्यूँ  सब ख़त्म " मैं  छटपटाहट से भर बोली
" पता है जब उन्हें अपनी बीवी की पहली सालगिरह पर कुछ देना था और उन्हें सूझ नही रहा था तब भी उन्होंने सभ्या के हाथ रुपये दे मुझे कहलवाया था कि अपनी पसंद से कोई चीज़ खरीद दूँ "
"और आपने खरीदी ?" अब उसके आश्चर्य का कोई ठिकाना नही था 
" हाँ , सोने की अंगूठी ली थी मैंने स्मिता जी के लिए " मैंने आंखों में प्यार भर कर कहा
" मम्मा, आपको जेलेसी नही हुई " वो अब भी हैरान थी
" क्यूँ हो जलन " मैंने कहा
" क्यूँ न हो " वह अड़ती हुई बोली
" आप तो प्यार करती थी न उससे फिर आप...
वो आपका प्यार वन साइडेड होगा " उसने मुझे समझाइश देते हुए कहा
" प्यार में कोई जलन नही होती ,और न कोई शर्त,दूसरा हमें चाहे ही ये भी नही " मैंने झुंझलाहट में कहा
"मैं जानती हूं वो मुझसे प्यार करते थे , और अब भी करते हैं , तभी तो अभी दो साल पहले सभ्या के भतीजे की शादी में मैंने उनकी आंखों में देखा था "
 मैं आश्वस्त , मगर चुप 
" ओ ssss  , अनकंडीशनल लव " उसने मुझपर हँसते हुए कहा
" प्यार तो अनकंडीशनल ही होता है " मैंने यकीन से कहा
" वैसे भी तू ने पूछा था कि आपने किसीसे प्यार किया था क्या ,ये थोड़ी पूछा था कि किसीने आपसे प्यार किया था या नही "
 मैंने उसके सर पर चपत सी लगाई
" मैं उनसे प्यार करती थी ,
करती हूँ और करती रहूँगी "
मैंने मन ही मन मे बाँहें फैला खुले आसमान तले जोर से चिल्लाते हुए अपने प्यार का ऐलान किया
" कितने इनोसेन्ट हो आप मम्मा ,इसे क्रश कहते हैं "
उसने मुझे इस तरह से बाहों में भर लिया जैसे मैं उसे भरा करती थी
मन कह रहा था
 " यही तो प्यार है पगली,कैसे समझाऊँ तूझे "
मेरी आँखों में राधा, मीरा, ,सुधा ,ललिता जैसे अनगिनत चेहरे घूम रहे थे ।
मौलिक, अप्रकाशित

आदाब। विषयांतर्गत जज़्बात से परिपूर्ण प्रवाहमय बेहतरीन रचना। हार्दिक बधाई आदरणीया दीपाली ठाकुर जी। आरंभ के कुछ.संवाद और कुछ अन्य जगहों पर कसावट कर.या संवाद कम कर यदि संभव हो, तोआकार छोटा किया जा सकता है प्रभाव बाधित किये बिना यदि संभव हो, तो।

आदाब , शुक्रिया आपकी राय पर कोशिश जरूर करूँगी सर मुझे भी आकार बड़ा तो लगा।

कृपया बताइएगा कि मेरी प्रविष्टि पटल पर आप सभी को स्पष्ट प्रकाशित या नहीं या दोबारा पोस्ट करूँ। राय की प्रतीक्षा रहेगी।

विषयांतर्गत  बहुत बढिया रचना . नयी पिढी अब अपनी मा से खुलकर बात करने लगी है. उम्र क ये दौर सभी के बीच से गुजरत है जब किसी के साथ आकर्शन महसूस होता है और तभी संस्कारो की दोर का मजबूत होना बहुत जरुरी है , रचन मे माँ ने अच्ची सीख दी है कि "प्यार तो अनकंडीशनल ही होता है " जैसे राधा, मीरा, 
संवदो से सजी कथा मुझे बहुत पसन्द आयी. बहुत बहुत बधाई आपको

हमारे समय का अफलातूनी प्लेटोनिक लव आज का क्रश। बहुत खूबसूरती से बाँधा है आपने इस बात को अपनी लघुकथा मे।हार्दिक बधाई आदरणीया  थोड़ी कसावट और हो सकती थी। 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"सुनते हैं उसको मेरा पता याद आ गया क्या फिर से कोई काम नया याद आ गया जो कुछ भी मेरे साथ हुआ याद ही…"
2 hours ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।प्रस्तुत…See More
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"सूरज के बिम्ब को लेकर क्या ही सुलझी हुई गजल प्रस्तुत हुई है, आदरणीय मिथिलेश भाईजी. वाह वाह वाह…"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

कुर्सी जिसे भी सौंप दो बदलेगा कुछ नहीं-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

जोगी सी अब न शेष हैं जोगी की फितरतेंउसमें रमी हैं आज भी कामी की फितरते।१।*कुर्सी जिसे भी सौंप दो…See More
yesterday
Vikas is now a member of Open Books Online
Tuesday
Sushil Sarna posted blog posts
Monday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
Monday
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"ओबीओ के मंच से सम्बद्ध सभी सदस्यों को दीपोत्सव की हार्दिक बधाइयाँ  छंदोत्सव के अंक 172 में…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, जी ! समय के साथ त्यौहारों के मनाने का तरीका बदलता गया है. प्रस्तुत सरसी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह ..  प्रत्येक बंद सोद्देश्य .. आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, आपकी रचना के बंद सामाजिकता के…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, आपकी दूसरी प्रस्तुति पहली से अधिक जमीनी, अधिक व्यावहारिक है. पर्वो-त्यौहारों…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service