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आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

सादर अभिवादन ।

पिछले 93 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलम आज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-94 

विषय - "आया सावन झूम के"

आयोजन की अवधि- 10 अगस्त 2018, दिन शुक्रवार से 11 अगस्त 2018, दिन शनिवार की समाप्ति तक

(यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)

बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
नज़्म
हाइकू
सॉनेट
व्यंग्य काव्य
मुक्तक
शास्त्रीय-छंद (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)

अति आवश्यक सूचना :-

रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.

रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.

(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो - 10 अगस्त' 2018, दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा)

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महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करें

मंच संचालक
मिथिलेश वामनकर
(सदस्य कार्यकारिणी टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.

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आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूँ आदरणीय समर कबीर साहिब। कम से कम वरिष्ठ सदस्यों को ऐसी टिप्पणियां देने से गुरेज करना चाहिए। यह रिवाज़ सोशल मीडिया का है ओबीओ का क़तई नही।

//कागजी नाव

रिमझिम बारिश

बच्चों का चाव//

कितना मासूम सा हाइकु है, वाह वाह वाह ! बाकी हाइकु भी उम्दा हुए हैं जिस हेतु मेरी दिली बधाई स्वीकार करें । 

आदरणीया बबिता गर्ग जी सादर, प्रदत्त विषय पर बहुत सुंदर हायकू रचे हैं आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर. 

सावन (कविता)

छंद: दोहावली 

तपा तपा कर जेठ ने, व्याकुल रखा हाल

उमस भरे आषाढ़ ने, और किया बेहाल 

जिसकी दिल में चाह थी, आई वो बरसात,

आया सावन झूम के, पुलक उठा हर गात 

घेवर फिरनी में घुली, अद्भुत एक मिठास,

संधारा ले कर चले, भाई बहनों पास

पानी से तर खेत में, जड़ें पकड़ता धान,

हर किसान की देह में, जैसे आई जान

नए नए पत्ते उगे, हरियाली हर छोर,

खुश्बू ही बिखरी हुई, जग में चारों ओर

कुछ अच्छे कुछ हैं बुरे, इस सावन के रंग

मच्छर-मक्खी भी बढे, बढ़ते कीट-पतंग

देखो चिंता में पड़ा, बैठा एक कुम्हार,

सावन कितनी देर तक, चलना है इस बार 

फल-सब्जी में इल्लियाँ, बढ़ने लगी अपार,

हाय रे अब पड़ रही, महँगाई की मार

सावन जाएगा अभी, भादों पीछे आय,

कुछ को लगे सुहावना, कुछ को बहुत सताय

धीरे धीरे छा रही, त्योहारों की धूम,

भारत जैसा कुछ नहीं, देख लिया जग घूम

भीगो बूंदों में चलो, घर में क्यों हो बंद,

आया सावन झूम के, ढूंढो मृदु आनंद

#मौलिक एवं अप्रकाशित 

विषय पर बेहतरीन प्रस्तुति आदरणीय अजय गुप्ता जी ।

शुक्रिया कनक जी

प्रदत्त विषय को हर आयाम में देखती सुन्दर दोहावली   हार्दिक बधाई आदरणीय अजय जी। .व्याकुल रखा हाल // १०   मात्रा 

शुक्रिया प्रतिभा जी।

और इस भूल को इंगित करने के लिए अति आभार

जनाब अजय साहिब  , प्रदत्त विषय पर सुंदर दोहे हुए हैं मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं l 

आभार तस्दीक़ साहब

आदरणीय अजय गुप्ता जी आदाब,

                             अद्भुत, बेजोड़ और शिल्प में बेमिसाल दोहे । सबकुछ समा दिया आपने इन दोहों में । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

शुक्रिया आरिफ़ साहब

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आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

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