आदरणीय साहित्य प्रेमियो,
सादर वन्दे |
ओबीओ लाईव महा-उत्सव के 27 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | पिछले 26 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने 26 विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलम आज़माई की है | जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तेज़ करने का अवसर प्रदान करता है |
इस आयोजन के अंतर्गत कोई एक विषय या एक शब्द के ऊपर रचनाकारों को अपनी रचनाएँ प्रस्तुत करना होता है | इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है:-
विषय - संकल्प
आयोजन की अवधि- 6 जनवरी-13 दिन रविवार से 8 जनवरी-13 दिन मंगलवार तक
नया वर्ष विगत वर्ष की कोख से ही पैदा होता है । उसी के गुण-धर्म लेता है । यह अवश्य है कि हम अपने अनुभवों के लिहाज से कुछ और समृद्ध होते हैं। अपनी उपलब्धियों को जी सकने के क्रम में हम और परिपक्व हुए होते हैं। अपनी गलतियों को समझने और परिष्कार करने के क्रम में हम थोड़ा और संयत हुए होते हैं । जहाँ व्यक्तिगत उपलब्धियों से व्यक्तिगत लाभ होता है, वहीं सामुदायिक और सामाजिक उपलब्धियों का आकाश अत्यंत विस्तृत होता हुआ जगती को लाभान्वित करता है । ठीक उसी तरह, गलतियाँ वैयक्तिक होती हैं तो उनसे एक व्यक्ति या उस परिवार के कुछ सदस्य प्रभावित होते हैं, लेकिन सामुदायिक और सामाजिक लिहाज से हुई गलतियों का ख़ामियाज़ा मात्र वर्ग, समुदाय या समाज ही नहीं, कई-कई बार सम्पूर्ण राष्ट्र भोगता है ।
क्यों न हम अपने औचित्यों, अपनी उपलब्धियों तथा अपनी भूलों के संदर्भ में संल्कल्प लें ! जो हो गया उसकी क्षतिपूर्ति संभव नहीं. परन्तु, जो कुछ सार्थक बचा हुआ है उसे अक्षुण्ण रखने का संकल्प ! यह संकल्प व्यक्तिगत स्तर पर, सामाजिक स्तर पर अथवा राष्ट्रीय स्तर पर लिया जा सकता है ।
तो आइए मित्रो, उठायें अपनी कलम और दे डालें अपने"संकल्प" को एक काव्यात्मक अभिव्यक्ति | बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य-समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए | महा-उत्सव के लिए दिए विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित पद्य-रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते है | साथ ही अन्य साथियों की रचनाओं पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं ।
उदाहरण स्वरुप साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --
शास्त्रीय-छंद (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका इत्यादि)
अति आवश्यक सूचना : OBO लाइव महा उत्सव अंक- 27 में सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अधिकतम तीन स्तरीय प्रविष्टियाँ ही दे सकेंगे | नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटा दिया जाएगा | यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी |
(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 6 जनवरी-13 दिन रविवार लगते ही खोल दिया जायेगा )
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रचें सुखी संसार ,सभी हिल मिल रह पाएँ
मिट जाएँ सब द्वेष ,प्रेम - पुष्प खिल जाएँ ....wah!
तपता जितना तेज़, स्वर्ण बन जाता कुंदन
पाना हो आसान,करे दृढ़ निश्चय जब मन ...wah!wah! Jyotirmai ji दोनों कुण्डलिया विषय से न्याय करती हुई बधाई!
. हार्दिक आभार अवनीश जी .
तपता जितना तेज़, स्वर्ण बन जाता कुंदन
पाना हो आसान,करे दृढ़ निश्चय जब मन.........बिलकुल सही है.
सुन्दर कुंडलिया छन्दों की प्रस्तुति पर बधाई स्वीकारें.
अशोक कुमार रक्ताले जी आपका हार्दिक आभार.
तपता जितना तेज़, स्वर्ण बन जाता कुंदन
पाना हो आसान,करे दृढ़ निश्चय जब मन .... वाह!
दोनों ही कुण्डलिया छंद बहुत सुन्दर बन पड़े हैं आदरणीया पन्त जी...
सादर बधाई स्वीकारें...
हार्दिक आभार संजय मिश्रा ``हबीब `` जी .रचना पसंद करने के लिए।
आपका हार्दिक आभार संजय मिश्रा ``हबीब ``जी.
ज्योतिर्मल पन्त जी, बहुत ही सुंदर कुंडलिया....हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिये
गीत
'लें संकल्प सुरक्षा का'
कभी यौन दुष्कर्म न हो अब लें संकल्प सुरक्षा का.
रक्तबीज बो गयी दामिनी महिलाओं की रक्षा का..
सीता को आदर्श मानती भारत की हर नारी है.
फिर क्यों पश्चिम के लिबास में फिरती बदन उघारी है.
महिलायें इस और ध्यान दें आया समय परीक्षा का.
रक्तबीज बो गयी दामिनी .................................
टीवी सीडी मोबाइल कम्प्यूटर का उपयोग करें.
अनुशासन की लक्ष्मण रेखा का भी उसमें योग करें.
आता है पापी रावण भी लिए कटोरा भिक्षा का.
रक्तबीज बो गयी दामिनी .................................
शीला को हो शील सुरक्षित मुन्नी अब बदनाम न हो.
घर लौटे परिवार हमारा बाहर वक्त-ए-शाम न हो.
संस्थान हों सावधान रुख बदले शिक्षा दीक्षा का.
रक्तबीज बो गयी दामिनी .................................
अपने संस्कार भूले हम क्यों इतना गुमराह हुए.
भारतीय लज्जा को तज हम अंगरेजी बाराह हुए.
क्या खोया क्या पाया हमने आया समय समीक्षा का.
रक्तबीज बो गयी दामिनी .................................
बलात्कार के अपराधी को सख्त सजा तो दी जाये.
अंग भंग कर दंड विधा माथे पर अंकित की जाये.
जहाँ जाय दुनिया में उसको हंटर मिले उपेक्षा का.
रक्तबीज बो गयी दामिनी .................................
कभी यौन दुष्कर्म न हो अब लें संकल्प सुरक्षा का.
रक्तबीज बो गयी दामिनी महिलाओं की रक्षा का..
आलोक सीतापुरी
सीता को आदर्श मानती भारत की हर नारी है.
फिर क्यों पश्चिम के लिबास में फिरती बदन उघारी है.
महिलायें इस और ध्यान दें आया समय परीक्षा का.
रक्तबीज बो गयी दामिनी .................................बहुत सुन्दर रचना हार्दिक बधाई कबूले श्री योगेन्द्र बी सिंह अलोक सीतापुरी जी
रक्तबीज बो गयी दामिनी महिलाओं की रक्षा का..बिलकुल सटीक ...
अपने संस्कार भूले हम क्यों इतना गुमराह हुए.
भारतीय लज्जा को तज हम अंगरेजी बाराह हुए.
क्या खोया क्या पाया हमने आया समय समीक्षा का.
रक्तबीज बो गयी दामिनी .................................
आदरणीय आलोक सीतापुरी जी सादर, सदैव से ही आपकी लेखनी आकर्षित करती रही है बहुत ही सुन्दर रचना कि प्रस्तुति दी है आपने हार्दिक बधाई स्वीकारें.
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