परम आत्मीय स्वजन
इस माह के तरही मिसरे की घोषणा करने से पहले पद्म विभूषण गोपालदास 'नीरज' जी के गज़ल विषय पर लिखे गए आलेख से निम्नांकित पंक्तियाँ आप सबसे साझा करना चाहता हूँ |
क्या संस्कृतनिष्ठ हिंदी में गज़ल लिखना संभव है? इस प्रश्न पर यदि गंभीरता से विचार किया जाये तो मेरा उत्तर होगा-नहीं | हर भाषा का अपना स्वभाव और अपनी प्रकृति होती है | हर भाषा हर छंद विधान के लिए उपयुक्त नहीं होती | अंग्रेजी भाषा संसार की अत्यंत समृद्ध भाषा है | लेकिन जिस कुशलता के साथ इस भाषा में सोनेट और ऑड्स लिखे जा सकते हैं उतनी कुशलता के साथ हिंदी के गीत, घनाक्षरी, कवित्त, सवैये और दोहे नहीं लिखे जा सकते हैं | इन छंदों का निर्माण तो उसमे किया जा सकता है परन्तु रस परिपाक संभव नहीं है| ब्रजभाषा और अवधी बड़ी ही लचीली भाषाएं हैं इसलिए जिस सफलता के साथ इन भाषाओं में दोहे लिखे गए उस सफलता के साथ खड़ी बोली में नहीं लिखे जा सके | हिंदी भाषा की प्रकृति भारतीय लोक जीवन के अधिक निकट है, वो भारत के ग्रामों, खेतों खलिहानों में, पनघटों बंसीवटों में ही पलकर बड़ी हुई है | उसमे देश की मिट्टी की सुगंध है | गज़ल शहरी सभ्यता के साथ बड़ी हुई है | भारत में मुगलों के आगमन के साथ हिंदी अपनी रक्षा के लिए गांव में जाकर रहने लगी थी जब उर्दू मुगलों के हरमों, दरबारों और देश के बड़े बड़े शहरों में अपने पैर जमा रही थी वो हिंदी को भी अपने रंग में ढालती रही इसलिए यहाँ के बड़े बड़े नगरों में जो संस्कृति उभर कर आई उसकी प्रकृति न तो शुद्ध हिंदी की ही है और न तो उर्दू की ही | यह एक प्रकार कि खिचड़ी संस्कृति है | गज़ल इसी संस्कृति की प्रतिनिधि काव्य विधा है | लगभग सात सौ वर्षों से यही संस्कृति नागरिक सभ्यता का संस्कार बनाती रही | शताब्दियों से जिन मुहावरों, शब्दों का प्रयोग इस संस्कृति ने किया है गज़ल उन्ही में अपने को अभिव्यक्त करती रही | अपने रोज़मर्रा के जीवन में भी हम ज्यादातर इन्ही शब्दों, मुहावरों का प्रयोग करते हैं | हम बच्चों को हिंदी भी उर्दू के माध्यम से ही सिखाते है, प्रभात का अर्थ सुबह और संध्या का अर्थ शाम, लेखनी का अर्थ कलम बतलाते हैं | कालांतर में उर्दू के यही पर्याय मुहावरे बनकर हमारा संस्कार बन जाते हैं | सुबह शाम मिलकर मन में जो बिम्ब प्रस्तुत करते हैं वो प्रभात और संध्या मिलकर नहीं प्रस्तुत कर पाते हैं | गज़ल ना तो प्रकृति की कविता है ना तो अध्यात्म की वो हमारे उसी जीवन की कविता है जिसे हम सचमुच जीते हैं | गज़ल ने भाषा को इतना अधिक सहज और गद्यमय बनाया है कि उसकी जुबान में हम बाजार से सब्जी भी खरीद सकते हैं | घर, बाहर, दफ्तर, कालिज, हाट, बाजार में गज़ल की भाषा से काम चलाया जा सकता है | हमारी हिंदी भाषा और विशेष रूप से हिंदी खड़ी बोली का दोष यह है कि हम बातचीत में जिस भाषा और जिस लहजे का प्रयोग करते हैं उसी का प्रयोग कविता में नहीं करते हैं | हमारी जीने कि भाषा दूसरी है और कविता की दूसरी इसीलिए उर्दू का शेर जहाँ कान में पड़ते ही जुबान पर चढ जाता है वहाँ हिंदी कविता याद करने पर भी याद नहीं रह पाती | यदि शुद्ध हिंदी में हमें गज़ल लिखनी है तो हमें हिंदी का वो स्वरुप तैयार करना होगा जो दैनिक जीवन की भाषा और कविता की दूरी मिटा सके |
नीरज
१९९२
इस माह का तरही मिसरा भी नीरज जी की गज़ल से ही लिया गया है |
मुशायरे की शुरुआत दिनाकं २८ अगस्त दिन रविवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक ३० अगस्त दिन मंगलवार के समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा |
अति आवश्यक सूचना :- ओ बी ओ प्रबंधन से जुड़े सभी सदस्यों ने यह निर्णय लिया है कि "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक १४ जो तीन दिनों तक चलेगा उसमे एक सदस्य आयोजन अवधि में अधिकतम तीन स्तरीय गज़लें ही प्रस्तुत कर सकेंगे | साथ ही पूर्व के अनुभवों के आधार पर यह तय किया गया है कि नियम विरुद्ध और गैर स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये और बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकेगा, यह अधिकार प्रबंधन सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा और जिसपर कोई बहस नहीं की जाएगी |
फिलहाल Reply बॉक्स बंद रहेगा, मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ किया जा सकता है |
"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
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मुईन साहिब, अब आप ने बात छेड़ ही दी है तो बताना अपना फ़र्ज़ समझता हूँ ! दो कारण हैं,पहला तो ये कि आपकी ग़ज़ल निर्दोष होती है जिस पर उंगली उठाना तो गुनाह-ए-अज़ीम होता ! दूसरा कारण ये कि आप अक्सर "दागो और भागो" वाली बात करते हैं, ग़ज़ल डाली और ग़ायब ! लौट कर आते भी हैं तो सिर्फ अपनी ग़ज़ल के इर्द गिर्द ही महदूद रहते हैं ! और मुईन साहिब, मैंने आपकी ग़ज़ल पर अक्सर दिल से और तफसील से ही तब्सिरा किया है - मगर आला हज़रत उस पर बड़ी बेदिली से आधी-पौनी लाईन (वो भी अक्सर अंग्रेजी में और बहुत ही तेज़ी में) लिख कर भाग लेते हैं ! अगर मैंने कुछ गलत कहा हो तो मुझे बताएँ ! बहरहाल आप नाराज़ न हों, आज ही तफसील से एक एक शेअर पर अपने ता'स्सुरात देता हूँ मेरी सरकार ! खुश रहें, सलामत रहें !
सर, यू आर राइट । मगर अब इसका कारण भी जान लीजिये । शायरी की अभी सिर्फ़ एबीसीडी ही आती है मुझे । इसलिये ख़ुद को इस योग्य नहीं समझता कि किसी पर तन्क़ीद करूं । दूसरी बात, कमेंट्स उसी पर करता हूं जिस पोएट्री को समझ पाता हूं । मिसाल के तौर पर इस मुशायरा नम्बर १४ को ही ले लीजिये । अभी सारे नहीं पढ़े हैं । मगर जितने पढ़े हैं, उनमें से कुछ कलामों को छोड़कर मुझे ज़्यादातर पसन्द नहीं आये । किसी में वज़न बराबर नहीं दिखा, किसी में बेतुकापन दिखा । मैं नहीं कहता कि मैं बहुत जानता हूं । बल्कि मैं तो यही कह रहा हूं कि मैं कुछ जानता ही नहीं हूं । समझ में आये तब कमेण्ट्स करूं ना ! अब यह तो मुझसे होगा नहीं कि ख़्वाह-म-ख़्वाह तारीफ़ किये जाऊं । अभी मैं ख़ुद ही शायरी की ग्रामर से अनजान हूं । तो दूसरों को क्या राय दूं ! और फिर, आप लोग बड़े ख़ूबसूरत अन्दाज़ से लोगों की ग़ल्तियां बताते हुए हौसला अफ़्ज़ाई करते हैं । ऐसे में मैं चुप ही रहूं तो अच्छा है । भागने का कारण व्यस्तता भी है । इसीलिये अंग्रेज़ी में लिख कर ही फूट लेता हूं । वापस इसलिये आता हूं कि लोगों द्वारा बताई ग़लतियों पर ध्यान दे सकूं और कमेंट्स करने वालों का धन्यवाद कर सकूं । अगली बात ! आपने मेरे कलाम को निर्दोष कहकर मुझे चने के झाड़ पर चढ़ा दिया है ! अजी महाराज, सीखने दो हमें भी कुछ ! क्यूं हमारा दिमाग़ आसमान पर पहुंचा कर हमारी प्रगति के द्वार बन्द करना चाहते हो ? (जस्ट जोकिंग !) आप तो बस ग़लतियां बताया करो महामहिम ! आपने लिखा है : "बहरहाल आप नाराज़ न हों, आज ही तफसील से एक एक शेअर पर अपने ता'स्सुरात देता हूँ मेरी सरकार ! " मगर अभी तक आपके उन ताअस्सुरात का मुन्तज़िर हूं । एक राय देना चाहता हूं । ओबीओ पर हर ईवेंट में दो सैक्शन हुआ करें । एक सैक्शन में ऐडमिन जी उन कलामों को रखा करें, जो शायरी के ऐतबार से ठीक हों । दूसरे में नई प्रतिभाओं का कलाम रखा जाया करे । इससे नए लोग भी सीख पाएंगे और वो लोग जो एक बार ओबीओ पर आकर दुबारा नहीं आते, बार-बार आया करेंगे । (जी जनाब, शायरी के रसिकों का एक तबक़ा ऐसा भी है, जो बड़ी उमीदों से ओबीओ पर आता है, मगर जब उसका सामना अपरिपक्व शायरी से होता है, तो फिर वो लौट कर नहीं आता ।) कड़वी बातों के लिये क्षमा चाहूंगा ।
मुईन जी, जो कलाम बकौल आपके "बेतुके" थे कम-अज-कम उनकी जानिब इशारा तो करना था ! आप ओबीओ परिवार का हिस्सा हैं, आपका भी फ़र्ज़ बनता है अपने साथियों को दुरुस्त करने का ! आपके दो सेक्शन वाला सुझाव वाक़ई बढ़िया है - इस पर हम लोग गंभीरता से विचार करेंगे ! और रही अपरिपक्वता की बात तो वो केवल ओबीओ ही में नहीं है, तकरीबन हर जगह ही पाई जाती है, और भाई, जो रास्ता भूलते हैं वो ही नए रास्ते तलाशते हैं ! मगर इस अपरिपक्वता को दूर किया जाना बहुत ज़रूरी है ! इत्मिनान रखें, आपकी कोई भी बात मुझे कडवी नहीं लगी ! इल्तिजा है कि अपनी बेशकीमती राय से मंच को नवाजते रहा करें !
सॉरी सर, लेकिन मैंने यह नहीं कहा कि "बेतुके थे" । मैंने कहा कि "बेतुकापन दिखा" । अब यह तो मेरी नज़रों का फ़ितूर है कि मुझे कोई चीज़ बेतुकी दिखी । रही बात उस ओर इशारा करने की, तो भाई जी, तुसी सब जाणदे हो । और आपने जो राय देने की बात की है, तो सर, मैं किस मुंह से राय दूं ! मुझे अभी शायरी की व्याकरण नहीं आती है । फिर भी, अगली बार से कुछ कहने की कोशिश किया करूंगा ।
इस बेबाक राय ने दिल खुश कर दित्ता मुईन जी !
जब बात निकली ही है तो मैं भी एक बात कहना चाहता हूँ कि तरही मुशायरा - १४ कहन के लिहाज से जितना अच्छा चल रहा है बह्र के लिहाज़ से उतना ही बुरा
इसे सुधारने के लिए यह किया जा सकता है कि मुशायरा खत्म होने के बाद अच्छी, बा-बह्र रचनाओं को चुन कर अलग से प्रोत्साहित करें
कब तक इस डर से चुप बैठा जाए कि बे-बह्र लिखने वाले या जिनको बह्र की जानकारी नहीं है वो बुरा मान जायेंगे ?
१४ महीने कम तो नहीं होते सीखने के लिए ....
मुईन जी जी से काफी हद तक सहमत हूँ
वीनस, आप इस परिवार का ही अंग है - खुलके बात कहा करें ! आपकी हर राय को वजन दिया जायेगा, इत्मिनान रखें ! अगर आप जैसे लोग ही नज़रें फेर लेंगे तो कैसे चलेगा भाई ? इस बात का मुझे भी इल्म है कि बहुत सी रचनाएँ किसी न किसी रूप में भटकी हुई होती हैं, मगर उनके भटकाव को दूर करने का काम भी तो हम सब को मिलजुल कर ही करना पड़ेगा न ? या कोई बाहर से आयेगा इस काम के लिए ?
मुझसे आप सहमत हैं, इसपर नहीं , बल्कि आपकी कही गई अन्य बातों पर सिर्फ़ इतना ही कहूंगा वीनस जी, कि...... "जेब्बात...!"
//कब तक इस डर से चुप बैठा जाए कि बे-बह्र लिखने वाले या जिनको बह्र की जानकारी नहीं है वो बुरा मान जायेंगे ? १४ महीने कम तो नहीं होते सीखने के लिए ....//
बुरा न लगे बड़े भाइयों .. यदि मैं इस बातचीत का अंग बन रहा हूँ जबकि सिर-पैर कुछ नहीं जानने के कारण अवाक् ज्यादा हूँ.
ऐसा भी होता है क्या? कि, न जानने वाले या कम जानने वाले बुरा मान जायेंगे? तो फिर किसका अहित करेंगे? या ऐसे कौन-कौन लोग हैं जिनकी ओर, वो भी ऐसे, इशारा किया जा रहा है? दूसरे, क्या ये मंच इस तरह की चर्चाओं के लिये है भी क्या? हम क्यों इतना भर नहीं सोच पा रहे हैं? इस तरह की बातें आपस में कर लें, क्या यह ज्यादा उचित नहीं होगा? वर्ना, जो नहीं जानते या नहीं जानना चाहते उन्हें न केवल कोफ़्त होगी, उनका मन भी खट्टा होगा कि आये थे हरि भजन को ओटन लगे कपास.
आगे, आप सभी गुणीजन हैं. भला-बुरा जानते हैं, सोचते हैं. एक बात अवश्य कहना चाहूँगा कि यदि कुछ चीज़ों की जानकारी है तो अवश्य साझा करना चाहिये और कम-जानकारों को देख-जान कर सिखाना चाहिये. वर्ना.. "बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर... " जैसी बात याद आने लगती है.
इधर ओबीओ पर बहुत से नये सदस्यों का आगमन हुआ है. इस तरह की चर्चाओं से वो भी इस तरह के आयोजन में पुराने और परिपक्व सदस्य उन नये सदस्यों के सामने क्या जाहिर करना चाहते हैं !!?
मोईन भाई, जैसा की आपने कहा -
१-शायरी की अभी सिर्फ़ एबीसीडी ही आती है मुझे । इसलिये ख़ुद को इस योग्य नहीं समझता कि किसी पर तन्क़ीद करूं
२-दूसरी बात, कमेंट्स उसी पर करता हूं जिस पोएट्री को समझ पाता हूं ।
३-मगर जितने पढ़े हैं, उनमें से कुछ कलामों को छोड़कर मुझे ज़्यादातर पसन्द नहीं आये । किसी में वज़न बराबर नहीं दिखा, किसी में बेतुकापन दिखा ।
४-अभी मैं ख़ुद ही शायरी की ग्रामर से अनजान हूं । तो दूसरों को क्या राय दूं !
कृपया उक्त चार बिन्दुओं को देखे और पुनः विचार करे ....क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि आप सबको गोल-गोल घुमा रहे है, जानते भी नहीं , जिस पोएट्री को समझते है उसी पर कमेंट्स करते है, वजन आदि कि भी बात करते है ...हुजुर आप कहना क्या चाहते है ?
स्पष्ट है कि आप के पास इल्म है |
भाई मेरे, जल्दबाजी और काम सबके पास है, क्या इतनी जल्दबाजी ठीक है कि आप देवनागरी में कमेंट्स ना कर सके, देवनागरी तो छोडिये आप Thanks भी ना लिख सके thnx से काम चलाते है |
ओ बी ओ मंच तैयार करने के पीछे यह मकसद है कि परिपक्व और अपरिपक्व सभी लोगो को एक मंच पर लाया जाय ताकि परिपक्व के सानिध्य में रहकर अपरिपक्व सीख सकें और "सीखने-सिखाने" का मकसद पूर्ण हो सके |
//(जी जनाब, शायरी के रसिकों का एक तबक़ा ऐसा भी है, जो बड़ी उम्मीदों से ओबीओ पर आता है, मगर जब उसका सामना अपरिपक्व शायरी से होता है, तो फिर वो लौट कर नहीं आता ।)//
किन्तु परिपक्व जन यदि इसलिए ओ बी ओ पर नहीं आते कि यहाँ अपरिपक्व शायर कलम आजमाइश करते है , तब तो सीखने-सिखाने का सिलसिला हो चुका. परिपक्व लोग अपना इल्म कब्र में साथ-साथ लेते जायेंगे | ऐसे परिपक्व लोग जो अपने ज्ञान को बाँटना नहीं चाहते उनसे हाथ जोड़कर प्रार्थना है कि वो ओ बी ओ परिवार से दूर ही रहें तो अच्छा है और यहाँ आने की जरुरत नहीं है. हम अपने कम संसाधनों के बावजूद इस "सीखने-सिखाने" के मंच को चलाते रहेंगे. हमें नामी-गिरामी लोगो को जोड़ अपना नाम चमकाने का शौक नहीं है, जिस नेक काम को करने का बीड़ा ओ बी ओ टीम ने उठाया है उसके लिए सदैव तत्पर है |
//कड़वी बातों के लिये क्षमा चाहूंगा ।///
मोईन भाई मैं भी यदि कुछ तल्ख़ बातें कह दिया होऊंगा तो क्षमा चाहूँगा |
ओ बी ओ सीखने-सिखाने का एक मंच है ..........जो कि सभी को आपस में एक दूसरे को सहयोग देने के लिए ही प्रेरित करता है .........यहाँ पर आप सभी का सदैव स्वागत है.......
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