माननीय साथियो,
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के २७ वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है. जैसा कि आप सब को ज्ञात ही है कि तरही मुशायरा दरअसल ग़ज़ल विधा में अपनी कलम की धार चमकाने की एक कवायद मानी जाती है जिस में किसी वरिष्ठ शायर की ग़ज़ल से एक खास मिसरा चुन कर उस पर ग़ज़ल कहने की दावत दी जाती है. इस बार का मिसरा-ए-तरह जनाब श्याम कश्यप बेचैन साहब की ग़ज़ल से लिया गया है जिसकी बहर और तकतीह इस प्रकार है:
"तपकर दुखों की आँच में कुछ तो निखर गया"
मुशायरे की शुरुआत दिनाकं २८ सितम्बर दिन शुक्रवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक ३० सितम्बर दिन रविवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा |
अति आवश्यक सूचना :-
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन
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मैं शाद था कि,रंग चढ़ेगा ज़ीस्त पर
पर कारवाँ गुबार उड़ाकर गुजर गया..........................खूबसूरत शेर...............
आई शबे-विसाल दिनों बाद ज़ीस्त में
पर ये सवाल है कि,सितमगर किधर गया !................क्या बात है, दिन गिने जाते थे इसी दिन के लिए..............
तहेदिल से आभार आदरणीय अरुणकुमार जी
//उनका हुआ है दिल पे असर क्या, न पूछिए
वो शख्स इत्र बन के नफ़स में बिखर गया//
वाह बेहद खूबसूरत शेअर. गिरह भी बाकमाल लगाई है. मतले के ऊला में वजन कुछ गड़बड़ा रहा है, पुन: देख लें. बहरहाल इस सुन्दर ग़ज़ल हेतु मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें अरविन्द चौधरी साहिब.
बहुत धन्यवाद आदरणीय योगराज प्रभाकर जी...
मतला शेर कुछ इस तरह बदलना चाहता हूँ...
कृपया मतला जोड़ दीजिएगा...
मतला शेर----
***
वो आबदार नज़र से दिल में उतर गया
मेरी किताब का हर पन्ना उभर गया
आपके कहे अनुसार मतला बदल दिया गया है आदरणीय अरविन्द चौधरी जी.
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय योगराज प्रभाकर जी...
वाह वाह बहुत बहुत सधी हुई ग़ज़ल कही है अरविन्द जी सभी शेर कमाल के हैं दाद कबूल कीजिये
तहेदिल से आभार आ.राजेश कुमारी जी.
आदरणीय अरविन्द जी
अच्छा प्रयास किया है साहब
दाद क़ुबूल फरमाइए
बहुत बहुत धन्यवाद...
आदरणीय श्री अरविन्द जी हर शेर प्रभावी और सुन्दर है ख़ास कर ये -
वो रात-दिन नहीं कि चहलपहल भी नहीं
वे क्या गए कि आज ज़माना ठहर गया
वाह वाह !!
तहेदिल से आभार आदरणीय ' अभिनव ' जी
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