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इस बार का तरही मिसरा|
"उन्ही के कदमों में ही जा गिरा जमाना है"
वज्न: १२१२१२१२१२१२२२

काफिये के मामले में आप स्वतंत्र है बस इतना ध्यान रखें कि यह मिसरा पूरी ग़ज़ल में कहीं न कही ( मिसरा ए सानी या मिसरा ए ऊला में) ज़रूर आये|

मुशायरे कि शुरुवात शनिवार से की जाएगी| admin टीम से निवेदन है कि रोचकता को बनाये रखने के लिए फ़िलहाल कमेन्ट बॉक्स बंद कर दे जिसे शनिवार को ही खोला जाय|

विशेष : जो फ़नकार किसी कारण लाइव तरही मुशायरा में शिरकत नही कर पाए हैं
उनसे अनुरोध है कि वह अपना बहूमुल्य समय निकाल लाइव तरही मुशायरे की शोभा बढाएं|

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Kya khub warnan hai.
गुरु जी ...दूसरे काफिये में कही गई आपकी यह ग़ज़ल भी कमाल की है..और बहुत कुछ सीखने का मौका भी देती है| इसी सिलसिले में एक शिष्य को जिज्ञासा हो रही है की क्या इस ग़ज़ल का मकता वज्न में है? ..अगर है तो किस तरह यह विस्तार से बता कर अपने शिष्य की जिज्ञासा शांत करें|

हम सबको आपसे बहुत कुछ सीखना है|
न रोकिये यहाँ अभी मुशायरे का रथ,
मजे ही लूटिये मिजाज शायराना है,
बड़ी रकम यूँ ले के मत यहाँ निकलना तुम|
कहीं गली के आगे गुंडों का ठिकाना है|

निसार कर दूं सब जहाँ अगर तू मुस्काये|
इसी अदा पे ही मिटा तेरा दीवाना है||

अजीब शख्स है वो बात अनसुनी करता|
कहीं निगाह उसकी और कहीं निशाना है||

बड़ा कमाल कर गए है सब जो आये है|
छुपे जो खोंपचे में उनको भी बुलाना है||
Itna maza aayega kabhi nhi socha tha. Maza par aa rha to sabko hi batana hai.
तरही का बुलावा था, सोचा आज़माना है ।
कई दिनों से चाहता, देखूँ क्या ये ख़ाना है॥

मसरूफ़ियत थी जान पर और दौरे हुए कई
मिल रहा है आज गो’ मौका नहीं ख़ज़ाना है॥

भइ, कनेक्शनोस्पीड के भी हैं चोंचले कई
फिर भी बनी उम्मीद थी, इनसे पार पाना है॥

करते हुये फ़र्ज़ोकरम, हर मुसाहबी में मस्त
उन्ही के कदमों में ही जा गिरा जमाना है ॥
वाह वाह सौरभ साहब क्या शे'र निकाला है आपने, देर से आये पर जबरदस्त आये, तरही में जान ड़ाल दिये, पर ऐसे काम नहीं चलने वाला, कम से कम पांच शे'र तो कह ही दीजिये, इन्तजार है .......:-)
बयान हालेदिल करें, सुखन रहे ना शौक भर
जो मोहब्बतों को मानते उनसे बतियाना है॥

शख़्शियत मेरी प्याज-सी बोलो खुल जाएँ अभी
क्या मगर हासिल तुम्हें, मतलब नहीं रुलाना है॥
वाह वाह , ये हुई ना बात , बहुत खूब ...
शख़्शियत मेरी प्याज-सी बोलो खुल जाएँ अभी
क्या मगर हासिल तुम्हें, मतलब नहीं रुलाना है॥

क्या बात है ...नकाबपोशी का एक अलग रूप..बेहतरीन
सौरभ सर बहुत खूब..आपकी मसरूफियत से इतनी खूबसूरत ग़ज़ल निकलेगी हमने न जाना था| गिरह का शेर बड़ा उम्दा कहा गया है...और आज कल के परिवेश में प्रासंगिक भी है|

बेहतरीन बेहतरीन बेहतरीन|
माकूल हुश्न जिसका, अंदाज़ कातिलाना है|
उन्ही के कदमों में ही जा गिरा ज़माना है||

दफ अतन ही कभी मोहब्बत हो नहीं जाती|
प्यार की शमा को धीरे-धीरे जलाना है||

समय के साथ ही बदलेंगे भी व्यवहार उनके|
प्यार उनसे हमें कितना है ये जताना है||

गैर हाज़िर में बसंत भी लगे उजाड़ जिनके|
साथ में मौसम-ए-खिंजा लगे सुहाना है||

आज कुछ ऐसा उनके प्यार में कर जायेंगे|
हँस के कल वो कहेंगे की तू दीवाना है||

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