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इस बार का तरही मिसरा 'बशीर बद्र' साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|
"ज़िंदगी में तुम्हारी कमी रह गई"
वज्न: 212 212 212 212
काफिया: ई की मात्रा
रद्दीफ़: रह गई
इतना अवश्य ध्यान रखें कि यह मिसरा पूरी ग़ज़ल में कहीं न कही ( मिसरा ए सानी या मिसरा ए ऊला में) ज़रूर आये|
मुशायरे कि शुरुवात शनिवार से की जाएगी| admin टीम से निवेदन है कि रोचकता को बनाये रखने के लिए फ़िलहाल कमेन्ट बॉक्स बंद कर दे जिसे शनिवार को ही खोला जाय|

इसी बहर का उदहारण : मोहम्मद अज़ीज़ का गाया हुआ गाना "आजकल और कुछ याद रहता नही"
या लता जी का ये गाना "मिल गए मिल गए आज मेरे सनम"

विशेष : जो फ़नकार किसी कारण लाइव तरही मुशायरा-2 में शिरकत नही कर पाए हैं
उनसे अनुरोध है कि वह अपना बहूमुल्य समय निकाल लाइव तरही मुशायरे-3 की रौनक बढाएं|

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आदरणीया मुमताज साहिबा, मुशायरे का आग़ाज बहुत ही खुबसूरत ग़ज़ल से कर दिया है आपने, और मुशायरे में मजा आ रहा है , जमेगी यह महफ़िल,
मिट गई वक़्त के साथ हर दास्ताँ
एक तस्वीर दिल पर बनी रह गई,
क्या बात है , दिल पर एक निशान छोड़ता हुआ शे'र , दाद देता हूँ ,
Inayaton ka shukriya Ganesh ji
बहुत खूब लिखा है आपने !!
ले गया जाते जाते वो हर एक निशाँ
बस मेरी आँख में एक नमी रह गई

ऐसी बढती गईं ग़म की तारीकियाँ
मुंह छुपाती हुई हर ख़ुशी रह गई

ये शे’र तो मन को भा गए।
Nawaazish ka bahut bahut shukriya
waah Mumtaaz ji bahut khoob kamal .. gzab gzal kahee mashaallha
Asha ji aap ki inaayaten hain
मुमताज़ जी
बेहतरीन ग़ज़ल
mumtaj ji very nice
ऐसी बढती गईं ग़म की तारीकियाँ
मुंह छुपाती हुई हर ख़ुशी रह गई

उस ने जाते हुए मुड के देखा नहीं
एक ख्वाहिश सी दिल में जगी रह गई

उस ने 'मुमताज़' हम को जो बख्शी थी वो
आरज़ू की अधूरी लड़ी रह गई
कारवां तो गुबारों में गुम हो गया
एक निगह रास्ते पर जमी रह गई
सचमुच यह ग़ज़ल की उंचाई है वाह वाह !!
बेहतरीन ग़ज़ल ...
आदरणीय श्री संजीव वर्मा "सलिल" जी द्वारा भेजी गई ग़ज़ल को हुब हु पोस्ट कर रहा हूँ ...........
तरही मुक्तिका

ज़िंदगी में तुम्हारी कमी रह गयी
संजीव 'सलिल'
*
ज़िन्दगी में तुम्हारी कमी रह गयी.
रिश्तों में भी न कुछ हमदमी रह गयी..

गैर तो गैर थे, अपने भी गैर हैं.
आँख में इसलिए तो नमी रह गयी..

जो खुशी थी वो न जाने कहाँ खो गयी.
आये जब से शहर संग गमी रह गयी..

अब गरमजोशी ढूँढ़े से मिलती नहीं.
लब पे नकली हँसी ही जमी रह गयी..

गुम गयी गिल्ली, डंडा भी अब दूर है.
हाय! बच्चों की संगी रमी रह गयी..

माँ न मैया न माता न लाड़ो-दुलार.
'सलिल' घर में हावी ममी रह गयी ...

गाँव में थी खुशी, भाईचारा, हँसी.
अब सियासत 'सलिल' मातमी रह गयी..

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सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक 143 in the group चित्र से काव्य तक
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सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक 143 in the group चित्र से काव्य तक
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सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक 143 in the group चित्र से काव्य तक
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