For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सभी साहित्य रसिकों का सादर अभिवादन |

एक नहीं दो नहीं छह-छह ऋतुओं वाले इस देश की प्रकृति का सौंदर्य है ही सबसे निराला| शायद ही कोई साहित्यकार रहा होगा जिसकी कलम ने प्रकृति के इस अनुपम सौंदर्य पर कुछ लिखा न हो | तो आइए इस बार के महा इवेंट में हम लोग ऋतुराज वसंत के स्वागत में अपनी अपनी रचनाओं के माध्यम से बतियाते हैं 'प्रकृति सौंदर्य' के बारे में |

"OBO लाइव महा इवेंट" अंक- ४
विषय :- प्राकृतिक सौंदर्य
आयोजन की अवधि:- दिनांक १ फ़रवरी मंगलवार से ३ फ़रवरी गुरुवार तक


विधाएँ

  1. तुकांत कविता
  2. अतुकांत आधुनिक कविता
  3. गीत-नवगीत
  4. ग़ज़ल
  5. हाइकु
  6. व्यंग्य लेख
  7. मुक्तक
  8. छंद [दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका वग़ैरह] इत्यादि

विशेष:-
अब तक तो आप सभी को सब कुछ पता चल ही चुका है ओबिओ लाइव महा इवेंट के बारे में | बस एक छोटी सी प्रार्थना है, अन्यथा न लें | आप खुद ही सोचिए यदि हमारे सामने १० रचनाएँ हों तो हम में से कितने लोग उन में से कितनी रचनाएँ पढ़ पाते हैं? और उस से भी ज़्यादा ज़रूरी बात ये कि उन रचनाओं के साथ हम कितना न्याय कर पाते हैं? तो, सभी प्रस्तुतिकर्त्तओं से सविनय निवेदन है कि ओबिओ मंच के लाइव फ़ॉर्मेट को सम्मान देते हुए एक दिन में बस एक ही रचना प्रस्तुत करें | हमें खुशी होगी यदि कोई रचनाकार अपनी क्षमता के अनुसार तीन रचनाओं को तीन अलग अलग विधाओं में प्रस्तुत कर सके | यदि कोई व्यक्ति सिर्फ़ एक ही विधा का जानकार है, तो वह व्यक्ति उस एक विधा में भी प्रस्तुति दे सकता है, पर याद रहे:- एक व्यक्ति एक दिन एक रचना (कुल तीन दिनों मे अधिकतम तीन रचनानायें)

यदि किसी व्यक्ति को कोई शंका हो तो यहाँ क्लिक करें  तरही मुशायरा / इवेंट्स से जुड़े प्रश्नोत्तर


अपनी रचनाएँ पोस्ट करने के लिए आयोजन की अवधि के दौरान सुनिश्चित करें कि आप अपनी रचनाएँ पोस्ट करते वक्त पेज नंबर १ पर हों |  आपकी रचनाएँ इस अपील के ठीक नीचे के सफेद रंग वाले बॉक्स "Reply to This' में पेस्ट कर के 'Add to Reply' को क्लिक कर दें |

( फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो ०१ फरवरी लगते ही खोल दिया जायेगा ) 

आप सभी के सहयोग से साहित्य के लिए समर्पित ओबिओ मंच नित्य नयी बुलंदियों को छू रहा है और आप सभी का दिल से आभारी है | इस ४थे महा इवेंट में भी आप सभी साहित्य प्रेमी, मित्र मंडली सहित पधार कर आयोजन की शोभा बढ़ाएँ, आनंद लूटें और दिल खोल कर दूसरे लोगों को आनंद लूटने का मौका दें |

 

नोट :- यदि आप ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के सदस्य है और किसी कारण वश महा इवेंट के दौरान अपनी रचना पोस्ट करने मे असमर्थ है तो आप अपनी रचना एडमिन ओपन बुक्स ऑनलाइन को उनके  इ- मेल admin@openbooksonline.com पर १ फरवरी से पहले भी भेज सकते है, योग्य रचना को आपके नाम से ही महा इवेंट प्रारंभ होने पर पोस्ट कर दिया जायेगा, ध्यान रखे यह सुविधा केवल OBO के सदस्यों हेतु ही है| 

सादर

नवीन सी चतुर्वेदी
ओबिओ परिवार

Views: 8411

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

बेहतरीन गज़ल ,सारे शेर उत्क्रिष्ट कोटि के , बधाई पान्डेय जी।

नाचता रहता गगन में मगन रह कर  

(मधु गीति सं. १६०५, रचना दि. २ जनवरी, २०११)

 

नाचता रहता गगन में मगन रह कर, हर सितारा टिमटिमाता शून्य रह कर;

झिलमिलाता बुला जाता याद करता, खिलखिलाता हँसे चलता मन लगाता.

 

प्राण की गंगा बहाये ज्योति देता, लुप्त होता जन्म लेता उदित होता;

संदेशे उर के सदा है दिये जाता, निज ग्रहों औ उपग्रहों का सुर सुधाता.

सिमटता जाता अँधेरा शून्य उर का, मिलता जाता ओज तारों के हृदय का;

कभी वह अठखेलियाँ मानव की लखता, उपग्रहों औ सूचना के तन्त्र तकता.

 

वर्ष कितने कभी लगते संदेशों में, द्युति प्रकाशों की कभी आती युगों में;

मरे तारे भी कभी हैं दीखते अब, हुए पैदा अभी जो दीखेंगे फिर कब.

संदेशे सब देते चलते ना समझते, जो नचाता विश्व उसको ना तकाते;

क्या न चलता प्रकाशों से तेज गति वह, प्रभु ‘मधु’ के क्या न करते नियंत्रण सब.

 

रचयिता : गोपाल बघेल ‘मधु’

टोरोंटो, ओंटारियो, कनाडा

www.GopalBaghelMadhu.com

Bahut Sundar Gopal Bhai !!

 

waah adarniya gopaal jee bilkul chhayavaad aa hee gaya kya sundar rachna badhaaeee |
bahut badhiya gopal sahab
बहुत सुंदर रचना गोपाल जी, बधाई

वन्दे मातरम मधु जी,

बहुत ही सुंदर ........

रवानगी ऐसे जैसे कल कल करता झरना निरंतर बहे जा रहा है

अच्छी रचना है गोपाल सर, आपका बहुत बहुत धन्यवाद , आपने अपनी रचना से इस महा इवेंट का शोभा बढाया , एक निवेदन है ओपन बुक्स परिवार के नियमानुसार किसी अन्य साईट/ब्लॉग का लिंक देना वर्जित है | नियम हेतु कृपया नीचे दिया गया लिंक देखे |

http://www.openbooksonline.com/page/5170231:Page:12658

vah gopal ji
हमें ये बताने कि कैसी है ज़न्नत |
खुदा ने है बक्शी  नज़ारों कि दौलत |१|
 
ये अंबर कि चादर, ये धरती का बिस्तर |
मिला  रंगों-बू  से महकता  ये मंजर |२|
 
ये सूरज, ये चंदा, ये तारे, ये बादल |
ये पर्वत,  ये झरने, ये नदियों की कल कल |३|
 
ये चिड़ियों की चूं चूं  औ  रोशन सवेरा |
धवल  चांदनी से नहाया अँधेरा |४|
 
मुस्काये फूलों सा हर एक प्राणी |
सिखाया है दाता ने की मेहरबानी |५|
 
सभी ग़म भुलाके जो खुशियाँ है पानी |
तो  कुदरत की राहों में पाओगे प्रानी |६|
Thnx! Sharda ji!

वाह शेखर जी आपने इतने सुन्दर शब्द चुने और इतनी बढ़िया रचना पढवाई कि मज़ा आ गया 

 

हमें ये बताने कि कैसी है ज़न्नत |
खुदा ने है बक्शी  नज़ारों कि दौलत |१|
 
ये अंबर कि चादर, ये धरती का बिस्तर |
मिला  रंगों-बू  से महकता  ये मंजर |२|
 

व ... वाह क्या मंज़रकशी की है, हर नज़ारा आखों के सामने छा गया  

 

बहुत खूब 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service