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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
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रिश्तों की गर्माहट शायद ये ही होती है
मिलना जुलना, साथ किसी का अच्छा लगता है।
shaandar rachna tilak raj jee ki.....bahut hi badhiya....admin jee ko dhanybaad
कैसे कह दूँ तन्हाई का दर्द सताता है
यादों की दुनिया में अक्सर मेला लगता है।
खुबसूरत ग़ज़ल हेतु बधाई तिलक सर , सभी शे'र अच्छे लगे , किन्तु गिरह का शे'र न होना थोडा कचोट रहा है | व्यस्तता के पल में भी मुशायरे में आपकी शिरकत तारीफ के काबिल है , बहुत बहुत धन्यवाद |
बेहद भावपूर्ण प्रस्तुति-------
'दोपहरी भर खोया रहता है जो दुनिया में
सॉंझ ढले घर उसका आना अच्छा लगता है।
बधाई कबूल हो |
शाम ढले इस सूने घर में मेला लगता है,
ग़म दर्द विरह के मारों का मजमा लगता है।
sanjay ji ye bdhiyaa lga ......
छुटपन से ही बेईमानी उसको आती है,
वो भारत के मुस्तक़बिल का नेता लगता है।
करारा तंज और बेहतरीन शेर
उससे दो थप्पड़ खाकर हंसना मेरी मजबूरी है,
दुनिया क्या जाने वो मेरा बेटा लगता है।
दानी साहब यह शेर उन हर औलादों को सोचने पर ज़रूर मज़बूर कर देगा जो खुद को इसमे शरीक पाते हैं|
ढेरों दाद कबूल कीजिये|
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