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मत्तगयन्द सवैया - कौन यहाँ सबसे बलवाला / कुमार गौरव अजीतेन्दु

बात चली जब जंगल में - "पशु कौन यहाँ सबसे बलवाला"।

सूँड़ उठा गजराज कहे - "सब मूरख, मैं दम से मतवाला"।
तो वनराज दहाड़ पड़े - "बकवास नहीं, बस मैं रखवाला"।
बंदर पेड़ चढ़ा हँसते - "मुझसे टकरा, कर दूँ मुँह काला"॥

लोमड़, गीदड़ और सियार सभी झपटे - "रुक जा, सुन थोड़ा"।
नाम "गधा" अपना यदि आज तुझे हमने जम के नहिं तोड़ा।
देख हुआ अपमान गधा पिनका, निकला झट से धर कोड़ा।
भाल, जिराफ, कुते उलझे, दुलती जड़ भाग गया हिनु घोड़ा॥

गैंडु प्रसाद चिढ़े, फुँफु साँप बढ़ा डसने विषदंत दिखाते।
मोल, हिपो उछले हिरणों पर, भैंस खड़ी खुर-सींग नचाते।
ऊँट, बिलाव कहाँ चुप थे, टकराकर बाघ गिरे बलखाते।
बैल, कँगारु भिड़े, चुटकी चुहिया बिल में छुप ली घबराते॥

पालक, गाजर ले तब ही छुटकू खरहा घर वापस आया।
पा लड़ते सबको, छुटकू अपने मन में बहुते घबराया।
बात सही बतला सबने उसको अपना सरपंच बनाया।
"एक रहो, इसमें बल है" कह के उसने झगड़ा सुलझाया॥

(मेरी पिछली बाल कहानी - गुलगुल खरगोश और नशे के सौदागर)

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Replies to This Discussion

भाई अजीतेन्दुजी, आपके इस प्रयास और ढंग की जितनी तारीफ़ की जाय कम होगी. खड़ी बोली में मत्तगयंद सवैया छंद ही नहीं किसी सवैया छंद को रचना कितना दुरूह कार्य है यह कहने की बात नहीं. लेकिन जिस उत्साह से आपने शिशुओं केलिए इसकी रचना की है वह आपके रचनाकर्म को असीम ऊँचाइयाँ देता है. जिस आयु वर्ग केलिए यह रचना प्रस्तुत हुई है उस आयु वर्ग के लिए सामान्य रचना तक कठिन कार्य है. आपकी रचनाधर्मिता और आपका पद्य-बोध सम्माननीय तो है ही, अनुकरणीय भी है.

आपका प्रयास हर तरह से प्रशंसनीय है. वैसे एकाध शब्दों को पढ़ कर देख लिये होते तो श्रुति-भ्रम की स्थिति न बनती. लेकिन यह रचना की ऊँचाई को देखते हुए छोटी बात है. फिर भी.....

आपकी संवेदनशीलता और आपके रचना-प्रयास को यथोचित सम्मान मिले .. शुभ शुभ.. .

आदरणीय गुरुदेव, आपने आशीर्वाद दे दिया.......मेहनत सफल हो गई। कुछ नया करने को जी चाह रहा था सो इस तरह का प्रयास किया। आपके द्वारा दिये गये सुझावों एवं इंगित बिन्दुओं से तो हमेशा कुछ नया सीखने को मिलता है। बहुत-बहुत आभार.....

प्रिय कुमार गौरव जी, 

बहुत बहुत बधाई इस बेहद सुन्दर, सुगढ़, अनुकरणीय प्रयास पर.

बाल रचनाएं यदि छंद बद्ध हों, तो मज़ा ही आ जाता है पढने में.....सुबह सुबह मन प्रसन्न हो गया इतने सुन्दर चित्र के साथ, पूरी  जंगल और जानवरों की बातें करती कहानी, वो भी नैतिक शिक्षा के साथ, मत्तगयन्द सवैया छंद में पढ़ कर.

आपको बहुत बहुत शुभकामनाएं, आप नित ऐसी नयी नयी रचनाएं रचें और बच्चों के हृदयों में छा जाएँ ऐसी ही शुभकामनाएं है.

* एक बात पर आपका ध्यान चाहती हूँ, क्या हमें संज्ञा शब्दों के रूप में कोइ परिवर्तन करना चाहिए, जैसे भालू को भाल , कुत्ते को कुते,... इस बात पर ज़रा पूरी जानकारी ले लें और हम सब के साथ सांझा करें .

सस्नेह.

आदरणीया प्राची दीदी, आपका बहुत-बहुत आभार। थोड़ा नया करने के विचार से इस तरह की रचना की। बाल रचनाओं का एक अलग ही मजा होता है।

दीदी आपने जिन शब्दों की ओर इशारा किया है उनमें "भाल" शब्द मैने साहनी के हिन्दी-अँग्रेजी शब्दकोश से लिया है जिसका अर्थ "भालू" लिखा गया। हाँ, "कुते" शब्द जो है वो मैने इस सोच के साथ डाला था कि इसका उच्चारण "कुत्ते" जैसा ही होता मुझे प्रतीत हुआ। अब ऐसा करना कितना सही है इसका निर्णय तो गुरुदेव सौरभ सर और आप सहित अन्य विद्वजनों को ही लेना होगा। मैं तो स्वयं अभी सीख रहा हूँ।

रचना को सराहने हेतु पुनः आभार.....

बहुत सुन्दर मन मोहक मत्तगयन्द सवैया और वह भी बच्चो और बड़ो सभी की मन भावक आपकी जितनी प्रशंसा की हवे कम है । दिल से बधाई स्वीकारे भाई श्री कुमार गौरव अजितेंदु जी 

आपका बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण सर.......

स्नेही कुमार जी 

रचना धर्म तो न जानू 

पढ़ कर आनंद आया 

बधाई 

सादर 

हार्दिक आभार काकाश्री................

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