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बाल साहित्य Discussions (213)

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परोपकार |

जंगल में जा लकड़ी चुनता  , सिर पर रख जाता बाज़ार |  सर्दी गरमी या बारिश हो , लकड़ी बेच चले परिवार | एक दिन गया जब जंगल में , वह देखा गज शिश…

Started by Shyam Narain Verma

0 Jun 13, 2013

चंदामामा दूर के

पूर्णिमा के चाँद को देखते ही आज पिंकी फिर मचल उठी,''मुझे चंदा मामा के पास जाना है ,मुझे वहां ले चलो न ,''और इतना कहते ही उसने जोर जोर से र…

Started by Rekha Joshi

2 Jun 12, 2013
Reply by Rekha Joshi

बन्दर मामा // कुशवाहा//

बन्दर मामा // कुशवाहा// --------------------------------------------- बन्दर मामा पहन पाजामा जा पहुंचा चीन  सौ रुपये में एक मिलता मिले वहां…

Started by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA

4 Jun 12, 2013
Reply by वेदिका

भूगोल //कुशवाहा //

भूगोल //कुशवाहा // -------------------- अम्मा मेरी ये बतलाना  सूरज गोल चंदा मामा गोल  रोटी जब तवे तुम  बनाती  रोटी गोल तवा  भी गोल  रहते जि…

Started by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA

3 Jun 12, 2013
Reply by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA

चालाक सियार

चालाक सियार --------------- शेर  जंगल  का  राजा निकला हो कर तैयार भूख लगी भारी उसको मिल जाए कोई शिकार दहाड़ सुन कर शेर की पशु इधर  उधर भागे…

Started by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA

12 Jun 12, 2013
Reply by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA

चिड़िया रानी //कुशवाहा //

चिड़िया रानी //कुशवाहा // --------------- आंगन मेरे दाना चुगने  चिडियाँ रोज रोज हैं आतीं   कीड़े मकोड़े छुपे घास में  बीन बीन कर वो खा जाती…

Started by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA

2 Jun 12, 2013
Reply by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA

तमाशा - सुधीर मौर्य

गावं के मेले मेले में तमाशा आया है दूध की कटोरी में बताशा आया है। तेरी नानी और मेरी नानी एक है हम दोनों की कहानी एक है चमकती धुप में कुहा…

Started by Sudheer Maurya

3 May 22, 2013
Reply by Dr.Prachi Singh

सुंदरी सवैया - बहादुर मुनिया चुहिया / कुमार गौरव अजीतेन्दु

मुनिया चुहिया सब से मिल के रहती, करती न कभी मनमानी। वन के पशु भी खुश थे उससे, कहते - "हम बालक हैं, तुम नानी"। मुनिया इक रोज उठी सुबहे गुझिय…

Started by कुमार गौरव अजीतेन्दु

6 May 7, 2013
Reply by कुमार गौरव अजीतेन्दु

मत्तगयन्द सवैया - कौन यहाँ सबसे बलवाला / कुमार गौरव अजीतेन्दु

बात चली जब जंगल में - "पशु कौन यहाँ सबसे बलवाला"। सूँड़ उठा गजराज कहे - "सब मूरख, मैं दम से मतवाला"। तो वनराज दहाड़ पड़े - "बकवास नहीं, बस…

Started by कुमार गौरव अजीतेन्दु

8 May 7, 2013
Reply by कुमार गौरव अजीतेन्दु

मेरा सपना //कुशवाहा //

मेरा सपना //कुशवाहा // ------------------------ माँ मेरी बहुत है प्यारी  मुझको नित दुलराती है  कई घर काम वह्  करती  तन काट मुझे पढवाती  है …

Started by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA

6 Apr 30, 2013
Reply by बृजेश नीरज

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मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
12 hours ago

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मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
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Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
19 hours ago

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Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
20 hours ago

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मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
yesterday

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मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
yesterday

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मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
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मिथिलेश वामनकर updated their profile
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मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
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Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
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