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आचमनीय है इस ‘काव्य-कलश’ का सुधा-सलिल -डा0 गोपाल नारायन श्रीवास्तव

                     तंत्र में कलश एक निर्धारित माप का घड़ा होता है जिससे मांगलिक विधान किये जाते है  I इन विधानों में कलश में सभी तीर्थो का…

Started by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव

2 Oct 17, 2014
Reply by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव

एक संक्षिप्त टिप्पणी

सौरभ पांडेयजी के " इकड़ियाँ जेबी से " पढ़ा। इसमे संकलित सभी रचनाएँ साधारण है. उतनी जितनी कि हवा, धूप या पानी हो सकते हैं।  या यूँ कहें कि ख…

Started by ASHISH ANCHINHAR

0 Aug 25, 2014

पुस्तक समीक्षा – ‘’सच का परचम’’ ( ग़ज़ल संग्रह – अभिनव अरुण ) - समीक्षक - ज़हीर कुरैशी - भोपाल

पुस्तक समीक्षा – ‘’सच का परचम’’ ( ग़ज़ल संग्रह – अभिनव अरुण )  - समीक्षक - ज़हीर कुरैशी - भोपाल       आज जबकि पुस्तक प्रकाशन एक व्यवसाय मात्र…

Started by Abhinav Arun

5 Aug 1, 2014
Reply by gumnaam pithoragarhi

कोहरा सूरज धूप

समीक्षा ---जगदीश पंकज   'कोहरा सूरज धूप'--संस्कृति के भावी संवाहक का प्रयाण गीत   जब कोई  रचनाकार अपने समय के सरोकारों के साथ उपस्थित होता…

Started by JAGDISH PRASAD JEND PANKAJ

1 Jul 13, 2014
Reply by बृजेश नीरज

कोहरा सूरज धूप

समीक्षा ---जगदीश पंकज   'कोहरा सूरज धूप'--संस्कृति के भावी संवाहक का प्रयाण गीत   जब कोई  रचनाकार अपने समय के सरोकारों के साथ उपस्थित होता…

Started by JAGDISH PRASAD JEND PANKAJ

0 Jul 12, 2014

“सत्य के नहीं होते पँख”: मेरी दृष्टि में .. रचनाकार :श्री त्रिलोक मोहन पुरोहित

मानव जीवन को प्रभावित करने की दृष्टि से विश्व-भर में साहित्य से अधिक ज्ञान की कोई विधा नहीं है.इसमें भी कविता की अपरिमेयता और क्षमता सर्वो…

Started by Deepika Dwivedi

0 Jun 12, 2014

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी पुस्तक - " इकड़ियाँ जेबी से "पर मेरे विचार

इकड़ियाँ  जेबी से ‘ये इयकड़ियाँ नहीं अनमोल अशरफियाँ है’ आ0 योगराज सर की ये पंक्ति इस रचना संकलन के लिए एकदम उपयुक्त बैठती है । आदरणीय सौरभ पा…

Started by annapurna bajpai

2 Apr 30, 2014
Reply by Saurabh Pandey

'इकडियाँ जेबी से' - लोकधर्मी सुवास का शब्दांकन

समीक्षा --जगदीश पंकज 'इकडियाँ जेबी से' सौरभ पाण्डेय का प्रथम काव्य-संग्रह है । शीर्षक पहली नज़र में चौंकाता है जो संग्रह की इसी नाम से एक…

Started by JAGDISH PRASAD JEND PANKAJ

1 Apr 29, 2014
Reply by Saurabh Pandey

‘‘कोहरा सूरज धूप’’ एक समर्थ कवि के आने की आहट

जीवन काल में बहुत कुछ प्रथम बार घटता है। कुछ घटनाये पूर्व नियोजित होती हैं और कुछ अप्रत्याशित। अप्रत्याशित पर तो किसी का कोई वश नही है परन्…

Started by बृजेश नीरज

4 Apr 20, 2014
Reply by बृजेश नीरज

आदरणीय बृजेश 'नीरज ' की पुस्तक -' कोहरा सूरज धूप ' मेरे विचार मे

कोहरा सूरज धूप   आदरणीय बृजेश नीरज जी की काव्य कृति कोहरा सूरज धूप अपने नमानुकूल ही छाप छोड़ती है । जिस प्रकार सर्दी मे कोहरा छाया होता है औ…

Started by annapurna bajpai

1 Apr 17, 2014
Reply by बृजेश नीरज

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Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार । सर यह एक भाव…"
5 hours ago

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मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आदरणीय सुशील सरना जी बहुत बढ़िया दोहा लेखन किया है आपने। हार्दिक बधाई स्वीकार करें। बहुत बहुत…"
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Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार"
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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार । सुझाव के लिए हार्दिक आभार लेकिन…"
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Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"अच्छे दोहें हुए, आ. सुशील सरना साहब ! लेकिन तीसरे दोहे के द्वितीय चरण को, "सागर सूना…"
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मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion कामरूप छंद // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"सीखे गजल हम, गीत गाए, ओबिओ के साथ। जो भी कमाया, नाम माथे, ओबिओ का हाथ। जो भी सृजन में, भाव आए, ओबिओ…"
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मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion वीर छंद या आल्हा छंद in the group भारतीय छंद विधान
"आयोजन कब खुलने वाला, सोच सोच जो रहें अधीर। ढूंढ रहे हम ओबीओ के, कब आयेंगे सारे वीर। अपने तो छंदों…"
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मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion उल्लाला छन्द // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"तेरह तेरह भार से, बनता जो मकरंद है उसको ही कहते सखा, ये उल्लाला छंद है।"
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मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion शक्ति छन्द के मूलभूत सिद्धांत // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"शक्ति छंद विधान से गुजरते हुए- चलो हम बना दें नई रागिनी। सजा दें सुरों से हठी कामिनी।। सुनाएं नई…"
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"गुरुतोमर छंद के विधान को पढ़ते हुए- रच प्रेम की नव तालिका। बन कृष्ण की गोपालिका।। चल ब्रज सखा के…"
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मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion हरिगीतिका छन्द के मूलभूत सिद्धांत // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
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