For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पुस्तक का नाम.......''उधेड़बुन''........अतुकांत काव्य संग्रह ।
गजलकार.........श्री राहुल देव
सम्पर्क......मो0.....09454112975
पुस्तक का मूल्य......रू0 20.00 मात्र पृष्ठ -112
प्रकाशक......अंजुमन प्रकाशन, 942 आर्य कन्या चौराहा मुठठीगंज, इलाहाबाद-211003 उ0प्र0


श्री राहुल देव भार्इ का काव्य संग्रह उधेड़बुन किसी परिचय का मोहताज नहीं है। इसलिए इस पर किसी भूमिका के बगैर ही हम सीधी बात करते है। श्री राहुल भार्इ अपनी कविताओं में स्वयं से संवाद करते हुए विचारशील दृषिटकोण पाठक के सामने रखते है। इनकी वैचारिक भाषा जनसामान्य की है, जिसमें देशज, आम बोलचाल, उर्दू व अग्रेंजी शब्दों के साथ ही साथ अपनत्व जैसे तू, तेरे आदि शब्दों का भी प्रयोग स्वच्छंदता से किया है। इन्होने अपनी संवाद शैली में कहीं कहीं तुकांतता व प्रचलित विधा को पकड़ने की कोशिश करके कविता को और भी सशक्त बनाया है। हां, कहीं कहीं चूक वश व्याकरण व गेयता बाधित लगी है, जो नगण्य के सामान। फिर भी इस पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है।
श्री राहुल भार्इ कोर्इ कविता नहीं लिखते हैं बल्कि वह तो आपसे आत्मा की आवाज बनकर कोरे कागज पर शब्द क्रम में स्याह हो जाती है। आप अपनी आत्मा से बात करते हुए कहते है- 


मेरे अंतस के दोषों मेे
श्रम प्रसूति सपर्धा से
बनूं मैं पूर्ण इकार्इ जीवन की
गूंजे तेरा निनाद उर में हर क्षण..।

.....इनकी कविता स्वयं से बातें करती हुर्इ मन मुग्धा सी हैं-
चूल्हे की दो मोटी रोटिया
और तनिक नमक के साथ
लोटा भर ठण्डा पानी
तुम्हारे आगे रखा है....।

........सपने से उगी कविता और उगे सूरज के लाल आंखें तरेरने तक मधुर कलरव धुन सी कविता हृदयपटल पर छपकर मस्तिष्क में गूंजती रहती है-
जो ढूंढ़ता हूं मैं किताबों में
वह मिलता नहीं
आदमी की असलियत
-----जो दिखता नहीं है.....।

.....ओह कामना बहि्र मौन व्यथा चिन्तन में खोया मन ...क्या मिला?..कविता नायक तुम डरे हुए हो विश्व नर से ऐसा क्या है....?
है विजन मरूभूमि सा
प्रयास कर तू हो मगर.....


कवि अपने अंतस की समस्त उदगारों को उड़ेलना चाहता है, यही कौतुक भी है......। जिस कर्म का लिलार गीता में लिखा है, सफल है। वह जीव जो रस भूल गया और याद रखता है, बस एक मात्र र्इश...। यही इस मन: द्वार का धीश है। राहुल भार्इ की कविता नवजीवन में तन के बीज से अंकुरित नि:शेष है-वह वट वृक्ष सा विस्तार, सघन, शीतल, नीड़, आश्रम तप आदि जैसा ही दृश्य का प्रसार है।


'अन्तद्र्वन्द' 'प्रतीक' पूंछ कर सदैव सेज पर आराम करती वह ओंस की बूंद को परख कर पाप रहस्यों की पोल खोलती हुर्इ आगे बढ़ जाती है। पथिक भ्रमित न होना बच्चे और दुनियां अपनाकर टेढ़ी मेढ़ी पगडंडियों पर जीवन में कांटे भी फलते हैं। सिर्फ कविता के लिए सौंदर्य आधा सच जैसे इस कलियुग में अब जो दंगल..बकरी बनाम शेर..ही फबता है। वर्तमान के सामाजिक परिवेश में तमाम विकृतियां झाड़ के समान फैली हुर्इं हैं। जिन्हे स्वयं की सुविधा के लिए अपनाकर समृध्द जीवन का मुखौटा पहन कर खुले आम समाज में विचरण कर रहे हैं, का नाकाब उतारने हेतु ही... 'भ्रष्टाचारं उवाच..! अक्स में मैं और मेरा शहर जिसमें कविता और कविता दो बहने हैं। एक हारा हुआ आदमी जो स्वयं के असितत्व से दो-दो हाथ करता हुआ अनिशिचत जीवन: एक दशा दर्शन के झरोखों से झांकता, फुफकारता हवाओं का रूख बदलने में अथक प्रयासरत के फलस्वरूप वह सफल भी है।


मेरे मन के अन्त:स्थल के प्रेम पथ का पथिक निस्वार्थ रह कर अनितम इच्छा को संजोए पथ पर आरूढ़ हुआ है। इस जीवन से उपजे जटिल से जटिलतम प्रश्नो के उत्तर बूझता है-नशा अपराधी सज्जनों के लिए और तुम कौन शीर्षक से अपृच्छ प्रश्न...दुर्जन हो क्या? ...मेरे सृजक तू बता ये दुनिया ये जिन्दगानी एक टुकड़ा आकाश मेरे लिए क्या रेत है? कवि के हृदय को बखूबी स्पष्ट करती है। राजस्थान की एक लड़की शहर की सड़़कें महाप्रलय क्या बचा? कवि ने प्रत्येक विषय पर खूब सोच विचार कर लिखा है-अनहद नाद गांव से शहर तक कवि क्या ऐसा होता है!

 
जहां देखो जिस पथ पर चलो, बस। परिवर्तन के चौराहे हैं। पग-पग पर सैकड़ों मार्ग दर्शक, दिशा सूचक पट लिए खड़ें हैं। जीवन की यही नियति भी हैै। मानव और मानवता तो रही नहीं, बस। जिधर भी नजर घुमाओं सियासी दलों के झण्डे एक दो नही बल्कि झुण्डों में दलदल में गड़े हुए हैं। किस दल का झण्डा कितने गहरे दलदल में फसा हुआ है अनुमान लगाना भी कठिन है। किस दल का झण्डा मेंरा है, मैं भूल चुका हूं। बस इन सब का प्रतिउत्तर-एक आसक्ति की स्वीकारोक्ति से मिल जाता है।


समीक्षा की समय सीमा समाप्त होती है। ----समालोचना के क्षेत्र में पधारने के लिए धन्यवाद।
हार्दिक साभार सहित-  गडढा मुक्त----- पुस्ता चुस्त,  कविताओं की प्रस्तुति हेतु आपको ढेरों शुभकामनाओं सहित-साधुवाद व हार्दिक बधार्इ। आशा करता हूं कि आपकी आत्मा की आत्मा से बातें करने वाली सिलसिलेवार कविताओं का संग्रह पुन: पुन: प्राप्त होता रहेगा। सादर, 


शुभ-शुभ!

Views: 587

Replies to This Discussion

भाई केवल प्रसादजी ने जिस मनोयोग से काव्य-संग्रह ’उधेड़बुन’ की समीक्षा की है वह चकित भी करती है तो यह उनके एक पाठक के तौर पर सतत सतर्क होते जाने का प्रमाण बनकर भी सामने आती है. इस व्यवस्थित तथ्यपरकता के लिए मैं केवलभाईजी को हृदय से धन्यवाद देता हूँ.
यों यह अवश्य है कि समीक्षा प्रस्तुति के क्रम में केवल भाईजी अपने तईं तटस्थ दीखने का प्रयास करते हैं. लेकिन यह भी उतना ही सत्य है कि प्रस्तुत पाठकीय-समीक्षा में केवलभाईजी कविताओं के सापेक्ष कई ऐसी बातें कर जाते दीखे हैं जहाँ रचनाओं की बौद्धिक सीमाओं का भी अतिक्रमण हुआ दीखा है. लेकिन लेखक से व्यक्तिगत पहचान होने का अतिरेक इस तरह के अतिक्रमण का अक्सर कारण बन जाया करता है.
इस प्रस्तुति के लिए भाई केवल प्रसादजी को हृदय से बधाई.
शुभेच्छाएँ

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
10 hours ago
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
22 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"जिन स्वार्थी, निरंकुश, हिंस्र पलों का यह कविता विवेचना करती है, वे पल नैराश्य के निम्नतम स्तर पर…"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Jul 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Jul 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Jul 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service