For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पुस्तक समीक्षा "आशा के दीप " लघुकथा संग्रह , लेखक श्री विजय जोशी "शीतांशु

"आशा के दीप " लघुकथा संग्रह

लेखक श्री विजय जोशी "शीतांशु "

प्रकाशक :-मध्यप्रदेश लेखक संघ भोपाल इकाई

-----------------------------------------------------

कई दिनों के इन्तजार के बाद मेरे हाथ में जब आदरणीय विजय जोशी " शीतांशु " जी की लघुकथा संग्रह "आशा के दीप " आई तो अपार हर्ष का अनुभव महसूस हुआ । उनकी पहली लघुकथा संग्रह पढते हुए मैने पाया की उनकी कलम पर पकड़ बहुत ही संतुलित है । उनके लेखकीय कर्म की सशक्तता को मैंने कथा के शब्द -शब्द पर महसूस की है। कथा में उचित शब्द चयन का निर्वाह उनका तो देखते ही बनता है ।
कहा जाता है कि किसी लेखक की तासीर को आप उनकी रचना से पहचान सकते है । मैने पाया कि आदरणीय विजय जी का प्रकृति प्रेम बहुत गहरा है और पर्यावरण के प्रति सचेतता भी इनकी लघुकथाओं में मिलती है ।
अंधविश्वासों के जंजीरों को तोडने की कुलबुलाहट को उनकी लघुकथाओं में आसानी से देखा जा सकता है , तो वहींं दूसरी तरफ देश में पलती राजनीतिक विसंगतियों से उनका मन त्रस्त भी है। नाते -रिश्तेदारी के प्रति उनकी आस्था तो कथाओं के परिदृश्य में देखते ही बनती है।

पारिवारिक मुल्यों पर उनकी नैतिक जिम्मेदारी समाज और साहित्य दोनों के लिये अवर्णनीय है ।
जैसा की लघुकथा के मापदंड में इसका विसंगतियों से ही जन्म लेना जाहिर है ,इस बात पर आदरणीय विजय जी यहां बिलकुल स्पष्ट हैं। कई जगह कथाओं में तो बेहद तीक्ष्ण पंच बने है जो चौंकाने वाले है पाठकों को।

इनकी कई लघुकथा ने मुझे बेहद प्रभावित किया है जैसे कि उनकी किताब की पहली लघुकथा " अजन्मी बेटी का दर्द " एक करारी चोट है उस सोच पर जहाँ बेटी को कमतर सोच के तहत लिया जाता है । बुढ़ापे में सहारा की आस पाल जिस वंशवृक्ष को पोषित किया उसी ने माँ को जड़ समेत उखाड़ वृद्धाश्रम का दरवाजा दिखाया। ऐसे में अजन्मी बेटी की टीस कोख में ऐसी उठी की पढते हुए पाठकों को भी ह्रदय तक झिंझोर गया ।
" पूजा " लघुकथा एक विधवा की रीति रिवाजों में शामिल ना हो पाने का दर्द है, जो बखूबी बयान हुआ है । हाँलांकि लेखक यहाँ लघुकथा का अंत करते हुए एक जबरदस्त पंच बनाते हुए चूक गये लेकिन भाव और संवेदना को रोपित करने में सफल रहे है ।

अपनी जमीन और संस्कार का असर लेखक के लेखन में साफ - साफ झलकता है ।
"आशा के दीप " उनकी किताब के नाम को सार्थक करती हुई तीक्ष्ण लघुकथा है जिसमें कम्पनी द्वारा भोले भाले कर्मचारी को बोनस सहित अच्छी तनख्वाह की "आशा के दीप" तले अपनी स्वार्थसिद्ध करती योजना को सफल बना कर भरपूर शोषण का रोपित होना हुआ है। यहां कथा बेहद ही मार्मिक बन पड़ी है।

" सब ठीक है " में कितना ठीक है परिवार ? अपने लायक बेटे द्वारा तिरस्कृत होने पर भी पुत्र को "सब ठीक है " का सन्देश भेजता है , लेकिन इन बातों में पिता का दर्द साफ तौर पर हर एक पंक्ति से झलक ही जाता है । राह ताक पथराई आँख ,विदाई के बेला में भी माँ के द्वारा बेटे को आखरी पैगाम भेजना की एक बार घर में बहु को लक्ष्मी पूजन के लिए घर लेकर आना , बेहद मार्मिक बन पड़ा है ।

" सफेद दाढ़ी वाले बाबा " साम्प्रदायिकता के आग में उठते लपटों में एक सद्भाव पुरूष का बलि चढ जाना वास्तव में एक चिंतन और मनन का विषय है ।

" ममता का साहस " माँ के लिए बच्चे का प्यार को बेहद काव्यमय लघुकथा हुई है । सुंदर अलंकारों का प्रयोग कथा को सुंदर प्रवाह दे गया है ।
वहीं " राष्ट्र भाषा हिन्दी " में यथार्थ के कसौटी पर कसी हुई हिंदी को लेकर हाथी के दांत को सार्थक करती नीति से पूर्ण ये लघुकथा मुझे दंग कर गई ।

" हिस्सा " में दहेज का बदलता स्वरूप से मैं चकित थी । गजब की पंचदार लघुकथा बनी है जो हमेशा लघुकथा के इतिहास में याद की जायेगी ।

" अनुकरण " में पिता का गलत होने का भाव बच्चे के मन में और कैसे अनुकरण करे पिता का ,इस दुविधा को आपने यहाँ बखूबी पेश किया है । सृजनात्मकता तो आपकी लगभग सभी लघुकथाओं में देखने को मिली ।

" सौदागर " पढते हुए मैने अपने ही देश में व्याप्त एक कडवी सच्चाई को अनुभव किया और एहसास हुआ की लेखक सिर्फ अपने अंचल तक ही सीमित नहीं है बल्कि समस्त देश को अपने सुक्ष्म नजरिए से दिल तक महसूस करते है ।
शाल - कम्बल के व्यापार में घाटा होना और हथियारों की खुलेआम खरीद फरोख्त को एक बच्चे के मुख से जो कि इन हथियारों के संदर्भ में खपत होने के अलावा बाकी दुष्परिणामों से अनजान था का कहना कि हम अब शाल - कम्बल ना बेच कर हथियार की दुकान लगाते है इसमें अधिक मुनाफा होगा , अद्भुत सृजन हुई है यह भी ।
लेखक की लगनशीलता , ज्ञानपिपासु प्रवृत्ति का होना भी मैने इनकी कथाओं में महसूस किया है ।

"घोषणा - पत्र " चुनाव राजनीति पर कटाक्ष करता हुआ बेहतरीन लघुकथा है ।
"बाँझ" एक स्त्री जीवन की पीड़ा के कटु सत्य को जाहिर किया है । घर के बाहर सम्मानिता किस तरह घर के अंदर अपने प्रति दुर्व्यवहारों को सहती है का चित्रण पढ कर मन कलप उठा । मै स्त्रियों के इस रूप को बरदास्त नहीं कर पाती हूँ अक्सर । स्त्रियों का इस तरह पढें लिखे होने के बाद भी चुप रह कर अन्याय को बढावा देना अंदर तक खलता रहा है ।
" घर - जमाई " तिरस्कार की परम्परा का निर्वाह जैसी करनी वैसी भरनी के हिसाब किताब को चुकता करते हुए मानवीय संवेदनाओं को क्षीण होने की पराकाष्ठा का वर्णन है ।
लोभीराम का "शुन्य बेलैंस " शब्द सीमा में बँधी हुई बेहद चुस्त दुरूस्त कथा है जिसमें लालच के जाल में उम्र भर की कतर व्योंत का हिसाब पल भर में कोई लूट कर निकल जाता है ।

आजकल की सोशल नेटवर्क के परिवार और दोस्ती पर भी अद्भुत कटाक्ष करते हुए " पडोसी धर्म " कि समस्त दुनिया से तो शुभ कामना पा ली आपने जन्मदिन पर ,लेकिन क्या पडोसी ने विश किया ?
ये कथा समसामयिक विषय पर लिखी गई बेहद कसी हुई रचनाकर्म हुई है ।

दीपक ,बंधन , प्रशिक्षण , राम का चुनाव , और डिग्री पढकर भी प्रभावित हुई हूँ ।
एक कथा हैै " सांत्वना राशी " ,जिसमें नेता जी के संवेदनहीनता को यथार्थ की तथ्यों पर बखूबी कटाक्षयुक्त कथा लिखे है ।

कुछ कथाओं में मैने कहानी का कथानक भी महसूस किया है जो लघुकथा में नहीं होना चाहिए था । कहानीनुमा इस रचना में कालखंड दोष भी लगता है ।
" माँ की आत्मा " एक अच्छी संवेदनशील रचना होते हुए भी ये लघुकथा के मानकों से बाहर है ।
कुल ४६ लघुकथाओं में मैने करीब ५ से ६ लघुकथाओं पर मेरी संतुष्टि नहीं हुई है । हालांकि आदरणीय विजय जी की यह पहली लघुकथा संग्रह है इस के मद्देनजर मैं इस संग्रह से प्रभावित भी हूँ ।
आने वाले दिनों में उनके लघुकथा के प्रति रुझान इस विधा को नयी ऊचाइयां प्रदान करेगी इसका मुझे पक्का यकीन है। महेश्वर की माटी की खुशबू देशव्यापी महक बिखेर कर इस लघुकथा विधा का परचम लहरायेगी इसका मुझे यकीन है।

कान्ता रॉय
भोपाल

Views: 1111

Replies to This Discussion

"आशा के दीप"- लघु कथा संग्रह की समीक्षा मैंने ओबीओ पर जिस आशा के साथ पढ़ना शुरू किया ,वह निश्चित रूप से पूर्ण हुई।अपने नामानुरूप समीक्षक ने बड़ी सुन्दरता से लेखक की लघु कथाओं का क्रमशः कथानक, उसकी सार्थकता,समसामयिकता सम्प्रेषणता, शैली, पंच लाइन इत्यादि पर शोध कार्य समान विश्लेषण कर पाठकों को पूरी तरह संतुष्ट कर पुस्तक खरीदने या पढ़ने अथवा पुनः पढ़ने को अभिप्रेरित ही नहीं किया, वरन लेखक की कहानी की छाप छोड़ने वाली लघु कथाओं पर उचित टिप्पणी कर लेखक को समुचित मार्गदर्शन भी दिया, उसकी लेखनी के दीप सदा प्रज्वलित रखने के लिए ही नहीं वरन उसके आलोक से समाज को प्रकाशित करने के लिए भी।
मेरी तरफ से समीक्षक आदरणीया कान्ता राय जी को और लघु कथा संग्रह के ओजस्वी लेखक आदरणीय विजय जोशी जी को इस सफल लेखन हेतु तहे दिल बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ।

_शेख़ शहज़ाद उस्मानी
शिवपुरी म.प्र.
आदरणीया कांता जी आपने इस पुस्तक की समीक्षा उच्च कोटि की लेखन शैली कर ओबीओ परिवार में जहाँ साहित्य मनीषियों का विशिष्ट् समुदाय है। मेरी साहित्य समाज में उपस्थिति दर्ज करवाई है। मैं आपका मन की अन्नत गहराइयों से आपका स्वागत कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ। आपका स्नेह आशीर्वाद व आदरणीय गुरु जी योगराज जी का मार्गदर्शन मिलता रहे। आभार दी।
Attachments:

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Vikas is now a member of Open Books Online
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
Monday
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"ओबीओ के मंच से सम्बद्ध सभी सदस्यों को दीपोत्सव की हार्दिक बधाइयाँ  छंदोत्सव के अंक 172 में…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, जी ! समय के साथ त्यौहारों के मनाने का तरीका बदलता गया है. प्रस्तुत सरसी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह ..  प्रत्येक बंद सोद्देश्य .. आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, आपकी रचना के बंद सामाजिकता के…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, आपकी दूसरी प्रस्तुति पहली से अधिक जमीनी, अधिक व्यावहारिक है. पर्वो-त्यौहारों…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी  हार्दिक धन्यवाद आभार आपका। आपकी सार्थक टिप्पणी से हमारा उत्साहवर्धन …"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंद पर उपस्तिथि उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार। दीपोत्सव की…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय  अखिलेश कॄष्ण भाई, आयोजन में आपकी भागीदारी का धन्यवाद  हर बरस हर नगर में होता,…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी छन्द पर उपस्तिथि और सराहना के लिए हार्दिक आभार आपका। दीपोत्सव की हार्दिक…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service