For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मोहतरम जनाब समर कबीर साहब के वालिद मरहूम जनाब क़मर साहब एक आला दर्ज़े के शायर थे; यानि ग़ज़लगोई जनाब समर कबीर साहब के खून में है और उनकी ग़ज़ल का हर शे’र इस बात की तस्दीक़ भी करता है।

समरा- एक सौ बारह पृष्ठ, तक़रीबन सौ ग़ज़लें; फ़क़त इतना ही समर साहब का सरमाया नहीं है बल्कि उनके ख़ज़ाने से इन्तख़ाब की गई चन्द ग़ज़लें हैं, जो उनके ग़ज़ल-संग्रह समरा में शामिल हैं। पहले शेर से ही उनकी उस्तादाना झलक सामने आ जाती है।

हमारे दिल में जितनी ख़्वाहिशें हैं

ग़ज़ल में इस क़दर गुंजाइशें हैं

                 #समरा पृष्ठ क्र. 15

मैं निजी तौर पर समर कबीर साहब को जितना जानता हूँ ग़ज़ल को देखने का नज़रिया जितना सुलझा हुआ है उतना ही विस्तृत भी है, उनके सामने ग़लती की कोई गु़ंजाइश नहीं है, ठीक उसी तरह वे दुनिया को देखते हैं। इसकी तासीर उनकी ग़ज़लों में भी दिखती है। अपनी बात कहते हुये समर साहब सचेत भी दिखते हैं कि वो नाशुक्रे न हो जायें इसकी एक नज़ीर देखिये-

हज़ार शुक्र कि हम लोग उनमें शामिल हैं

ख़ुदा का ख़ास करम है नबी की उम्मत पर

 

कोई भी उस मुक़ाबिल ठहर नहीं सकता

जिसे यक़ीन हो यारो ख़ुदा की ताक़त पर

                 #समरा पृष्ठ क्र. 15

 कहन का कमाल:

बीमारी के चलते उनकी नज़र कमज़ोर ज़रूर हुई है लेकिन उनके हुनर की धार मुसल्सल तेज़ हुई है। ज़रा इन अशआर पर नज़र डालिये

आशिकों की आँखों का रुख बदलने लगता है

जब किसी जवानी का चाँद ढलने लगता है

 

इब्तिदा खुशामद से इल्तिज़ा से होती है

और फिर ये होता है नाम चलने लगता है

                   #समरा पृष्ठ क्र. 16

मौका-परस्त लोगों के तौर तरीके समर साहब खूब समझते हैं यह उनके दोनों अशआर से ज़ाहिर हैं।

चाहे रवायती अंदाज़ हो या दुनिया को देखने का जदीद अंदाज़ इनकी ग़ज़लें हर दौर की नुमाइंदगी करती हैं।

दोनों बर्बाद हो गये देखो

दुश्मनी के लिये बचा क्या है

                  #समरा पृष्ठ क्र. 17

अपनी बेबाकी समर साहब कुछ इस तरह व्यक्त करते हैं

समर कोई हमें मुँह न लगाये

अगर सरकार से निस्बत न हो तो

                  समरा पृष्ठ क्र. 23

रिश्तों की अहमियत जनाब अच्छी तरह समझते हैं

खुशनसीबों में नाम है मेरा

भाई मेरा निसार है मुझ पर

                  समरा पृष्ठ क्रं 26

और ज़रा रवायती अंदा़ज़ देखिये

राह पुरख़ार न साया न शजर जानते हो

जान ले लेगा मुहब्बत का सफर जानते हो

 

हाँ यही होती है मेराज-ए-मुहब्बत शायद

अपना घर भूल गये यार का घर जानते हो

                  समरा पृष्ठ क्रं 35

हर शायर अपने दौर का नुमाइंदा होता है लेकिन कभी-कभी वो ऐसी बातें कर जाता है जो कालजयी शेर के रूप में सामने आ जाता है, ये सिर्फ सतत अभ्यास से ही सम्भव है।

सकारात्मक बातें न सिर्फ़ शायर बल्कि पाठकों के अंदर भी ऊर्जा का संचार करते हैं। ये दो अशआर हैं जो समर कबीर साहब की सकारात्मकता को सामने लाते हैं-

झील सा शीतल चाँद सा सुंदर लिक्खा है

हमने जो देखा है मंज़र लिक्खा है

 

आज उसी पर फूल वफ़ा के खिलते हैं

तुमने जिस धरती को बंजर लिक्खा है

                समरा पृष्ठ क्र. 37

किसी शेर की खासियत है कि सारी बातें इशारों में होती है, ये इशारा देखिये

इक जगह खाली है मेरे दिल में

और वैसे तो कमी कुछ भी नहीं है

                समरा पृष्ठ क्र. 58

दो मिसरों में कितनी गहरी बात कह गये कि पढ़ने वाला भी सोच में पड़ जायेगा।

 

भाषायी संतुलन

समर साहब शब्दों के इस्तेमाल को लेकर संजीदा रहते हैं, ये नये ग़ज़लगो के लिये अनुरणीय है। इनकी पकड़ उर्दू पर बहुत अच्छी है और ये बहुत ज़ियादा भाषायी प्रयोग नहीं करते।

काफ़ियाबंदी

निश्तर ख़ानक़ाही के शब्दों में- “जो शायर काफ़िये को ध्यान में रखकर शेर कहते हैं वो काफ़िये द्वारा शासित होकर रह जाते हैं।“

जबकि समर साहब की उस्तादाना झलक यहाँ भी दिख जाती है। उनके अशआर में काफ़िये पर ज़रा भी ज़ोर नहीं पड़ता बल्कि सहज ही शे’र में घुल-मिल जाते हैं यानि ये काफ़िये के ग़ुलाम नहीं हैं

कैसे बाज़ार में आ जाती है इज़्ज़त मेरी

मेरे अह्बाब ज़माने को ख़बर करते हैं

 

जिनके सीनो में शहादत की तलब होती है

ज़िन्दगी मौत के साये में बसर करते हैं

                #समरा पृष्ठ क्र. 74

 

नज़र पर जब तलक पर्दा रहेगा

तुम्हारा अक्स भी धुँधला रहेगा

 

वहाँ मेरी ख़मोशी काम देगी

वो अपनी आग में जलता रहेगा

                #समरा पेज क्र. 92

 

बिम्बों व प्रतीकों का तार्किक प्रयोग

बिम्बों व प्रतीकों के साथ छेड़छाड़ आज के शुअरा में आम है लेकिन समर साहब इसकी सख़्त मुख़ाल्फ़त करते हैं। ये संजीदगी इनकी ग़ज़लों में भी नज़र आती है। नये शायर इनकी किताब से बहुत कुछ सीख सकते हैं।

 

किताब का नाम- समरा

प्रकाशक- अंजुमन प्रकाशन, इलाहाबाद, उप्र

मूल्य- 120 रू. मात्र्

 

शिज्जु शकूर

रायपुर- छत्तीसगढ़

मौलिक व् अप्रकाशित

Views: 731

Replies to This Discussion

आपने गोया दिल ही निकाल कर रख दिया, शिज्जू भाई. बहुत खूब अंदाज़ और उतनी ही साफ़ग़ोई से आपने समीक्षा लिखी है. कोई लाग-लपेट नहीं बस सीधी बात. इस ढंग से विन्दुवत कहने के लिए समीक्षक के पास उस शेरी मज़मुआ की भी बेपनाह ताक़त हुआ करती है. वो ताकत आपको बिला शक़ ’समरा’ से मिली है. एक शाइर कैसा हो को लेकर अधिक सोचना नहीं होता, हमारे सामने समर साहब हैं. ज़ाती तौर पर यारों के यार और ग़ज़लग़ोई के सरदार. और ऐसा मैं किसी बहाव में नहीं कह रहा. 

हार्दिक बधाई आपको और समरा के लेखक को. जो स्वयं में एक अद्भुत व्यक्तित्व के धनी हैं. 

भाई, एक और बात. आपकी इस समीक्षा ने मेरा दायित्वबोध बढ़ा दिया है.

शुभ-शुभ

 

आपका बहुत बहुत शुक्रिया सर । समर कबीर साहब की ग़ज़लों पर कुछ कहना बहुत मुश्किल है उनकी शख़्सियत के आगे मैं बहुत छोटा हूँ। जो दिल में था लिख दिया। मैं बस यह बताना चाह रहा था समरा क्या है और उससे क्या सीखा जा सकता है।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service