दिनांक 12 अक्तूबर, 2016 को छन्द काव्य संग्रह “करते शब्द प्रहार” पर अपने संबोधन में मुख्य अतिथि कलानाथ जी शास्त्री में कहाँ कि दोहों में जितनी मारक क्षमता होती है उतनी गंभीरता से दोहे नहीं लिखे जा रहे | उन्होंने स्पष्ट किया कि “सतसैया के दोहरा जो नाविक के तीर” में सही शब्द नाविक नहीं “नावक” है जिसका आशय बहुत गहरी चोट करने वाले तीर से है | दो पंक्तियों के दोहों में मारक प्रहार करने की क्षमता होती है, जिसके तहत पहले तीन चरण में संधान कर अंत में प्रहार करते है | किन्तु मूल शिल्प विधा का उचित निर्वहन नहीं हो रहा | पर लडीवाला जी के “करते शब्द प्रहार” में उल्लेखित दोहों में यह विशेषता देखने को मिलती है |
वही अपने अध्यक्षीय संबोंधन में “तुलसी प्रिया” खंड काव्य एवं गीतिकालोक संकलन के लेखक श्री ओम नीरव जी (लखनऊ) ने बताया कि चार चरणों के दोहों के प्रथम चरण में तीर प्रत्यंचा पर चढाने, दूसरे चरण में संधान करने, तीसरे चरण में और तीव्र दृष्टि डाल अंत में मारक प्रहार करना ही दोहे की सार्थक विशेषता होनी चार्हिये | दोहे की भाषा क्लिष्ट होने से आम जन की समझ से बाहर होने पर दोहे का क्या लाभ ? श्री लडीवाला जी के दोहे सहज सरल भाषा में होने पर भी आम जनता में सभी के लिए सुलभ पठनीय है और अपने जीवन में अनुभव के आधार पर रचित इनके दोहें समाज को दिशा प्रदान करने में सक्षम है | इन्होने दोहों पर आधारित दोहे गीत रचना एवं दोहा मुक्तक को समृद्ध किया हैं | छांदस सृजन को समर्पित यशस्वी-छंद साधक लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला जी की लेखनी से दोहा, रोला, कुण्डलिया, लावणी, सरसी, आल्हा आदि अनेकानेक ऐसे छंदों की उद्भावना निरंतर होती रहती है जिनमे कविता का सत्यं-शिवं-सुंदरम् स्वरूप सर्वत्र साकार होता स्पष्ट दिखाई देता है । आपने स्पष्ट किया कि ये निशक्त नहीं बौद्धिक रूप से सर्वथा सशक्त है | आशा है आने वाले समय में इनकी कलम से और संग्रह आते रहेंगे |
पुस्तक "करते शब्द प्रहार" पर डॉ. साधना प्रधान ने विस्तार से समीक्षा प्रस्तुत करते हुए पुस्तक से अनेक दोहों को पढ़कर सुनाया जिनमे मार्मिक दोहो “देवी कहकर पूजते, करे न आदर मान, देते रहते वेदना, स्वार्थ भरे इन्सान” “वंश चले यदि पूत से, पुत्री भी हक़दार, बिना धरातल क्या उगे, इसपर करें विचार |” - बेटा बेटी सम भले, सम इनके अधिकार, फिर क्यों इनमे भेद करे, बेटी करे पुकार” | घर परिवार में सामंजस्य स्थापित हो इस पर कवि लडीवाला जी ने एक दोहे में लिखा है- “जिस घर द्वेष-कलेश है, उसे नरक ही जान, जहाँ परसपर प्रेम है, वह घर स्वर्ग समान” |
पुस्तक “करते शब्द प्रहार” पर संचालन करते आदरणीया शोभा चंदर जी और श्री विजय मिश्र दानिश जी ने भी अपने विचार प्रस्तुत किये | लेखक लडीवाला ने कुछ दोहें पढ़कर सुनाये जिनमे माँ की ममता, उसकी धैर्यता, गंभीरता और अद्भुत क्षमता का अहसास होता है |
इस अवसर पर ओ.बी.ओ के सदस्य श्री सुशील सरना जी के माध्यम से आदरणीय Saurabh Pandey जी का बधाई सन्देश और पुष्पगुच्छ प्राप्त होने पर लडीवाला ने बताया कि दोहा कुंडलिया आदि छन्दों के सीखने में ओ बी ओ और आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सहित कई सदस्यों को श्रेय है जिनका उल्लेख मैंने अपने आमुख में भी किया है |
श्री अशोक व्यग्र जी के माध्यम से आ. Sanjiv Verma Salil जी के उदगार -
जब 'अशोक' मन, 'व्यग्र' हो करता शब्द प्रहार / तब 'नीरव' में 'ॐ' की गूँज उठे झनकार / कलानाथ रसधार में झलकाते निज बिम्ब / रामानुज से मिल रहे ममता लिए अपार !
विमोचन के पश्चात कवितालोक, जयपुर की प्रथम काव्य शाळा में जयपुर एवं बाहर से आये लग्भग 23-24 कवियों के अतिरिक्त आदरणीय ओम नीरव जी ने मधुर कविताओं से श्रोताओं को मन्त्र मुग्ध कर दिया |
“करते शब्द प्रहार” छंद काव्य संकलन पुस्तक उपलब्ध कराने बाबत -
प्रकाशक के पास से अब सभी पुस्तकें प्राप्त हो गई है | कई मित्रों द्वारा “करते शब्द प्रहार” काव्य संग्रह पुस्तक की मांग की गई है | पुस्तक उपलब्ध कराने बात पर साहित्यकारों की खुद्दारी का श्री Shwetabh Pathak के इस वक्तव्य से अंदाजा लगाया जा सकता है – “ठीक है आपसे मैं वह पुस्तक ले लूंगा पर उसके मूल्य सहित । मुफ्त की पुस्तकें मुझसे पढ़ी नहीं जाती । जब तक उसको खरीदूंगा नहीं , उसका सही मूल्य नहीं दूंगा तब तक पढ़ने में मजा नहीं आता ।“
अपने अध्यक्षीय संबधन में आदरणीय ओम नीरव जी द्वारा भी श्रोताओ से पुस्तक क्रय कर पढने के आग्रह को देखते हुए पुस्तक सुलभता से उपलब्ध कराने हेतु 120/- मूल्य के पुस्तक 30% छूट के साथ उपलब्ध कराने का निर्णय लिया गया है | इच्छुक मित्र मेरे इनबॉक्स में संपर्क कर सकते है |
सादर
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आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला जी की पुस्तक ''करते शब्द प्रहार '' छंद काव्य का वो सृजन है जिसे लाडीवाला जी ने बड़ी आत्मीयता से सृजित किया है। जीवन के हर पहलू को उन्होंने बड़ी ही संजीदगी से चित्रित किया है। ये मेरा सौभाग्य था कि इस पुस्तक के विमोचन के अवसर पर मैं उपस्थित था। आदरणीय कलानाथ शास्त्री जी एवम ओम नीरव जी द्वारा पुस्तक में रचित काव्यांशों की एवम श्री लडीवाला जी के उत्साह,काव्य शिल्प एवम भावों की गहन अनुभूति को अपने शब्द प्रहारों से जीवंत करनी की मुक्त मन से प्रशंसा की। मैं व्यक्तिगत रूप से श्री लड़ीवाला जो को इस श्रेष्ठ काव्य संकलन के लिए हार्दिक बधाई एवम शुभकामना देता हूँ। आशा करता हूँ भविष्य में भी वो अपने सृजन से साहित्य प्रेमियों को लाभन्वित करते रहेंगे। सदर। ...
विमोचन समारोह में आपकी गौरवमयी उपस्थिति और आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी की आपके माध्यम से शुभकामनाए मेरे उत्साह को द्विगुणित कर रही थी भाई श्री सुशील सरना (Sushil Sarna) जी | मुझे ओ ओ बी ओ के प्रतिनिधि के रूप में आपका अहसास हो रहा था | आपका समारोह के अंत तक रुकना और काव्य पाठ करना बहुत अच्छा लगा | आपका ह्रदयतल से आभार |
वे पल मुझे भी सौभाग्य से ही मिले थे, जब यह जानकारी हुई कि आ० सुशील सरनाजी विमोचन समारोह में उपस्थित होंगे. एक आत्मीय के माध्यम से दूसरे आत्मीय के प्रति ऐसे विशिष्ट अवसर पर आदर प्रदर्शित करने का इससे बेहतर और कोई ज़रीया नहीं हो सकता था. मेरी व्यस्तता ने जो सीमाएँ खड़ी कींं, उसे आ० सुशील सरनाजी के माध्यम से टूटते देखना मेरे लिए भी हार्दिक प्रसन्नता का कारण हुआ.
आ० लक्षमण प्रसाद जी को छन्द-संग्रह के लिए हार्दिक बधाइयाँ और अशेष शुभकामनाएँ
सादर
आपकी व्यस्तताओं का मुझे अहसास है आदरणीय सौरभ जी | आपकी शुभकामनाएं मेरे लिए अति महत्वपूर्ण है | सादर आभार स्वीकारे |
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