छन्द
मात्रा या वर्ण को सूत्र में पिरोकर की गयी वाक्य रचना को छन्द कहते है , जैसे व्याकरण द्वारा गद्य का अनुशासन होता है , वैसे ही छन्द द्वारा पद्य का . छन्द शास्त्र के आदि प्रणेता पिंगल नाम के ऋषि थे अतः छन्द को पिंगल के नाम से भी जाना जाता है .
छन्द की परिभाषा निम्न प्रकार से की जा सकती है
सामान्यत: वर्णों और मात्राओं की गेयव्यवस्था को छंद कहा जाता है [१]
या
तुक , मात्रा , लय, विराम , वर्ण आदि के नियमो से आबद्ध पंक्तिया छन्द कहलाती है .
छन्द के अंग
१. वर्ण - वर्ण दो प्रकार के होते है - लघु वर्ण – ह्रस्व स्वर ( अ, इ, उ, चन्द्र बिंदु ) और उसकी मात्रा से युक्त व्यंजन वर्ण को 'लघु वर्ण' माना जाता है, उसका चिन्ह (।) है।
गुरू वर्ण – दीर्घ स्वर ( आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अनुस्वार और विसर्ग ) और उसकी मात्रा से युक्त व्यंजन वर्ण को 'गुरू वर्ण' माना जाता है। इसकी दो मात्राएँ गिनी जाती है. इसका चिन्ह (ऽ) है.
उदाहरणार्थ –
क, कि, र्क – लघु मात्राएँ
का, की, कू , के , कै , को , – दीर्घ मात्राएँ
२. मात्रा - मात्रा केवल स्वर की होती है. लघु मात्रा का चिन्ह (।) तथा गुरू मात्रा का चिन्ह (ऽ) है. मात्रिक छंदों में मात्रा गिनकर ही छन्द की पहचान की जाती है.
३. यति – छन्द को पढ़ते समय प्रत्येक चरण के अंत में ठहराना पड़ता हैं, इस ठहरने को पद्य में 'यति' कहते हैं और गद्य में यह 'विराम ' कहा जाता है.
४. गति – छन्दोबद्ध रचना को लय में आरोह अवरोह के साथ पढ़ा जाता है। छन्द की इसी लय को 'गति' कहते हैं।
५. पद या चरण - छन्द की प्रत्येक पंक्ति को पद या चरण कहते है.
६. तुक - चरण के अंत में आने वाले सामान वर्णों को तुक कहते है.
७. गण - तीन–तीन अक्षरो के समूह को 'गण' कहते हैं. "यमाता राजभान सलगा" सूत्र के आधार पर इनकी संख्या आठ है. वर्णिक छन्दों की पहचान इसी आधार पर की जाती है
सूत्र संकेत नाम मात्राएँ उदहारण
यमाता यगण ISS विद्रोही
मातारा मगण SSS माताजी
ताराज तगण SSI वाचाल
राजभा रगण SIS डूबते
जभान जगण ISI विचार
भानस भगण SII नागरि
नसल नगण III नमन
सलगा सगण IIS रहना
छन्दों के भेद :
छन्दों के मुख्यतः दो भेद होते है
१.मात्रिक २. वर्णिक
मात्रिक छन्द : जिन छन्दों की पहचान केवल मात्राओ के आधार पर की जाती है , वे मात्रिक छन्द होते है. इनमे मात्राओ की समानता एवं संख्या पर ध्यान दिया जाता है . जैसे दोहा , चौपाई , सोरठा आदि .
वर्णिक छन्द : जिन छन्दों की पहचान के लिए वर्णों के क्रम का विचार किया जाता है तथा उसी आधार पर वर्णों की गणना की जाती है . इस प्रकार के छन्द में वर्णों की संख्या , क्रम और स्थानादी नियम नियंत्रित रहते है . जैसे इंद्रवज्रा , उपेंद्रवज्रा आदि
आधुनिक हिंदी कविता के आधार पर एक तीसरे प्रकार के छन्द को मान्यता मिली जिसे मुक्तक छन्द कहा जाता है . इस छन्द के चरणों में वर्णों एवं मात्राओ में किसी का भी ध्यान नहीं रखा जाता तथा केवल केवल लय का विधान होता है.
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प्रिय अरुणेन्द्र जी ...बहुत ही उपयोगी जानकारी ....साहित्य संवर्धन के लिए हमारा सीखना बहुत जरुरी भी है ताकि स्तर कुछ सुधारा जा सके ---बधाई ...जय श्री राधे
भ्रमर जी ..धन्यवाद् ..भारतीय छन्द विधान में सम्मलित होने के पश्चात् मुझे छन्द के विषय में जानने की जिग्जासा ने मुझसे यह लेख लिखवा लिया ....
अरुणेन्द्र जी,
सरल, स्पष्ट और समृद्ध लेख के लिए बधाई
आशा करता हूँ यह लेख एक लेख माला की सुंदर शुरुआत है और आगे भी हमें आपसे और जानकारी मिलती रहेगी
साझा करने के लिए धन्यवाद
अरुणेन्द्र जी छंद विद्या पर आपका यह प्रयास बहुत सराहनीय है एक लाभकारी पोस्ट है बहुत बहुत आभार
भाई अरुणेंद्र जी, छंद विधान की मूल जानकारी देता यह एक ज्ञानवर्द्धक प्रस्तुति है.
आपकी संलग्नता को हार्दिक बधाई.
उत्साह वर्धन के लिए आप सब का आभार
dhanyvaad. mishra ji.
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