गीत भावाभिव्यक्ति के सबसे सक्षम और सशक्त माध्यम रहे हैं । भक्तिकाल में गीत सूर ,तुलसी मीरा विद्यापति आदि भक्त और अष्टछाप कवियों के माध्यम से मुखरित हुआ । रीतिकाल में कामिनी का हृदयोल्लास बन कर बिखरा ।छायावाद काव्य विमर्श के कई अंगो का दृष्टा बना जिसमे भाव प्रवणता , अभिव्यंजना,संगीतात्मकता, आदि लक्षण प्रमुख थे । प्रयोगवाद ने गीतों को एक नयी दिशा दी परन्तु एक टकराव गीत और नए प्रयोगवाद में तब पैदा हुआ जब आधुनिक बोध और अभिव्यक्ति के लिहाज से गीत की विषय वस्तु को अनुपयुक्त घोषित कर दिया गया । इस विधागत टकराव के कारण नवगीत का जन्म हुआ
बँटवारा कर दो ठाकुर।
तन मालिक का धन सरकारी
मेरे हिस्से परमेसुर।
शहर धुएँ के नाम चढ़ाओ
सड़कें दे दो
झंडों को
पर्वत कूटनीति को अर्पित
तीरथ दे दो
पंडों को।
खीर खांड ख़ैराती खाते
हमको गौमाता के खुर
सब छुट्टी के दिन साहब के
सब उपास
चपरासी के
उसमें पदक कुँअर जू के हैं
खून पसीने
घासी के
अजर अमर श्रीमान उठा लें
हमको छोड़े क्षण भंगुर
समकालीन समाज में व्याप्त बहुमुखी विडम्बनाओं, विरूपता
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हमारे ओबओ मंच पर ही रोहित रूसिया जी मौजूद हैं जो बहुत पहले से ही इस विधा से जुड़े हुए हैं एक अच्छे चित्रकार हैं । नवगीतों को रेखाओं के माध्यम से भी व्यक्त करते रहे हैं उनसे अनुरोध है नवगीत के विषय में और जानकारी दे और गीतों के साथ जो उनके चित्र हैं वो भी हम सब के साथ शेयर करें ।
इस विधा के आदरणीय रोहितरुसिया जी जैसे जानकार की इस मंच पर उपस्थिति है यह जान कर अतीव प्रसन्नता तो हुई लेकिन आश्चर्य भी हुआ कि यह मंच आजतक आपकी उपस्थिति से लाभान्वित नहीं हो पाया. आपकी प्रविष्टियाँ रचनाकर्मियों के लिए उत्प्रेरक का कार्य करतीं. विश्वास है कि आपकी रचनाओं और मार्गदर्शन से यह मंच लाभान्वित होगा.
नवगीत पर एक तथ्यपरक जानकारी तथा सटीक संवाद की कमी आज जाकर पूरी हुई है, सीमाजी. इस विन्दु पर आपके सकारात्मक प्रयास हेतु आपको मैं हृदय से धन्यवाद देता हूँ. यह सही है कि नवगीत की संज्ञा ने जिस तरह से आजके रचनाकारों को आकर्षित ही नहीं, आंदोलित भी किया है, वह मानवीय असंतोष किन्तु अन्वेषणा का अत्युत्तम पहलू है. मानव का मनस नवीनता का हामी है. जब नव गति नव लय ताल छंद नव... उकेरा गया तो यही कारण है कि उक्त गीत जनमानस के मस्तिष्क ही नहीं उर-गह्वर में भी एकदम से व्याप गया.
आपके लेख से निम्नलिखित पंक्तियों को उद्धृत करना चाहूँगा जो नवगीत की पारिभाषिकता को निरुपित कते हैं.
नवगीत की नव्यता काल और अभिव्यक्ति की सीमा से परे है । वास्तव में नव शब्द से ही नव्यता के कभी न ख़त्म होने का बोध हो जाता है । नए बिम्ब ,नए प्रतीक, नए संकेत, भाषा के नए प्रयोग, नयी विषय वस्तु, मिथकीय प्रयोगों के नए आयामों की तलाश और इन सब से ऊपर लयात्मकता की अनिवार्यता ने नवगीत के प्रति लोगों को आकृष्ट किया । सहज सरल वर्तालाप और जनमानस की भाषा, सामायिक विषय और परिस्थितियों के समुच्चय बोधक तत्व ने नवगीत के रूप में काव्य जगत में एक ताज़ी बयार बहा दी
उपरोक्त संदेश उस ज्योतिपुँज सदृश है जिसके आलोक में इस मंच पर रचनाकार इस विधा में अभ्यासरत होंगे.
आपके इस योगदान के लिए यह मंच आभारी है. सबसे अव्वल, आपने नवगीत पर लिखने के मेरे निवेदन को मान दिया, इस हेतु मैं आपका हार्दिक रूप से आभारी हूँ.
सादर
सौरभ जी आपकी प्रेरणा से ही मैं यह लेख तैयार कर सकी हूँ | नव गीत के के प्रति मेरा रुझान हुआ है यह निश्चित है पर पारंपरिक गीत विधा को अभी भी मैं उससे कम नहीं परखती | नवगीत गीतकारों को जहां पारंपरिक गीत के कई बन्धनों से मुक्त हो सृजन की छूट देता है और उन्मुक्त रचना कर्म के लिए प्रेरित करता है वहीं गेयता को शर्त के रूप में रख कर कहीं न कहीं माधुर्य को भी संजो कर रखता है | विषय वस्तु का भी विस्तार मिलता है | साहित्यिक शब्द संसार के अतिरिक्त आंचलिक शब्द ,नए शब्दों का सृजन भी अभिव्यक्ति को सहज बनाते हैं | नचिकेता जी के एक गीत का मुखड़ा देखिये
विलगाओ मत मुझे
प्यार से
हे मेरी तुम ...ये शायद मिथकीय प्रयोंगों की कारा से स्वतंत्र होने का एक सुखद अहसास है
सीमा जी
मैं भी नवगीत के प्रति पूर्णिमा वर्मन जी द्वारा उकसाने { :) } पर आकृष्ट हुआ था और नवगीत की पाठशाला के लिए कुछ एक नवगीत लिखे थे फिर ओ बी ओ पर भी एक नवगीत पोस्ट किया है और एक दो नवगीत और लिखा है मगर अभी मैं उससे संतुष्ट नहीं हो सका हूँ
ग़ज़ल के बाद मुझे इस विधा ने ही प्रभावित किया है
आपने नवगीत पर जैसा तथ्य परक लेख प्रस्तुत किया है वैसा तो आज तक नवगीत की पाठशाला में भी प्रस्तुत नहीं किया जा सका है
मुझे इस लेख की सख्त जरूरत थी इसके महती कार्य के लिए विशेष बधाई स्वीकार करें
निवेदन है कि इस महती कार्य को आगे भी जारी रखें
मुझे नवगीत के शिल्प की बहुत कम समझ है इसलिए इस क्रम में अगली पोस्ट नवगीत के शिल्प विधान पर केंद्रित हो कर आए तो मजा आ जाये
पूर्णिमा जी जिस आस्था और समर्पण के साथ हिंदी भाषा और नवगीत के प्रचार और प्रसार के लिए कार्य कर रहीं हैं वो प्रशंसनीय है वीनस जी नवगीत की पाठशाला से मैं अभी ही जुडी हूँ शायद आप प्रारंभ के दिनों में इस कार्यशाला से जुड़े होंगे इस समय तो वहाँ कई लेख मौजूद हैं आप देख सकते हैं :) इस लेख को तैयार करने के लिए भी मैंने उन्हें पढ़ा है | नव गीत तो शिल्प प्रधान नहीं है गीत में गेयता का तत्व ही अनिवार्य है | छंद संबंधी कोई विशेष आग्रह नहीं है ,तुकांत शब्दों का कोई विशेष बंधन नहीं है , झ के साथ ज का तुक चलेगा श के साथ ष मान्य है :)
आपका गीत देखा ......पारंपरिक गीत विधा में यह तुक बिलकुल भी स्वीकृत नहीं होता जिसका प्रयोग आपने किया है (हर जगह व्यापार तारी)
पिट चुके हैं,
बिक रहे हैं
बहुत खूब गीत है आपका पर यदि अंतरे को थोडा छोटा रखा जाये तो .........ये मेरा अपना मत है बिलकुल व्यक्तिगत विचार नव गीत के शिल्प को अभी मुझे भी समझना है
लेख की सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद
//झ के साथ ज का तुक चलेगा//
ऐसा करने से नव-गीतकार ही नहीं, नव-नव-नव गीतकार भी बचें तो श्रेयस्कर. .. :-)))
अब मात्रिकता और शब्द-निर्वहन संबन्धी एक छोटे पोस्ट की आवश्यक बन रही है जो किसी गेय कविता की जान होती है. समय दें.
सादर
तुक के सन्दर्भ में कही गयी आपकी बात से मैं भी सहमत हूँ ........मैं सिर्फ उन बिन्दुओं को इंगित कर रही थी जिन्होंने नवगीत लेखन को सरल और सहज बनाने में सहायता की
आप जैसा कहिये.......मैं पूर्ण सहयोग के लिए हाज़िर हूँ
सीमाजी, हमने अपने उपरोक्त कहे में अपने लिए टास्क लिया है ... :-)))
आप इसे निभायें तो अति उत्तम !!!
सौरभ जी गुरु जनो का काम गुरुजनों को ही शोभता है .........हम तो पीछे पीछे चल रहे हैं जब आप सर घुमा कर किसी कार्य की तरफ इशारा करेंगे हाज़िर हो जायेंगे
एक आदरणीय सीमा जी आपका आलेख सुरूचिपूर्ण है एवं इसपर चल रहे विमर्श को पढ़ कर बड़ा आनन्द आया । पूर्णिमा दी का कार्य इस विधा पर अनुपम है अपने समूह में वे इसपर काफी अच्छी चर्चा भी करती हैं साथ ही राजेन्द्र गौतम जी जैसे नवगीतकारों के नवगीत भी साझा करती हैं, गौतम सर भी बीच-बीच में अपने नवगीत फेसबुक पर साझा करते हैं, ये ऐसे लोग हैं जो हमेशा ऊर्जावान रहते हैं एवं दूसरों को भी ऊर्जान्वित करते रहते हैं अभी कुछ दिन पूर्व ही गौतम सर ने अपना एक नवगीत साझा किया था ' इस शहर में' । इस कड़ी में इस मंच द्वारा बड़ी अच्छी शुरुआत की गई है जिसके लिए सभी आदरणीय गुरूजनों को मेरा नमन अर्पित है ।
आदरणीय सीमा जी
सादर अभिवादन
विधा की जानकारी हेतु आभार
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